सुबह मैंने साथी गोपाल जी शर्मा को फोन लगाया। गोपाल जी इन दिनों पत्रिका भोपाल में हैं। उनसे करीब छह साल पुरानी जान-पहचान है। मैं भिलाई था तब वो वहां शाखा प्रभारी बनकर आए थे। करीब डेढ़ साल हमने भिलाई में साथ बिताया। हर संडे को हम सपरिवार घूमने जाते थे। इसके बाद मैं बीकानेर आ गया और गोपाल जी पहले जबलपुर और फिर भोपाल आ गए। उन्होंने मेरे को हबीबगंज रेलवे स्टेशन पर मिलने की बात कही। दस बजे के करीब गाड़ी पहुंची और मैं अपने कोच से बाहर निकलकर गोपाल जी को तलाशने लगा। अचानक दूर मेरी नजर उन पड़ी। हम दोनों एक दूसरे की तरफ बढ़े। पहले गले मिले और फिर गोपाल जी ने खाने का पैकेट थमा दिया, हंसकर बोले दो सप्ताह तक बाहर का खाना है आज तो घर का खाओ। हम करीब पांच साल बाद मिले थे। बातें बहुत थी करने को लेकिन वक्त ने इजाजत नहीं दी। गाड़ी का स्टॉपेज यहां मात्र दो मिनट का ही था। गाड़ी चली हमने हाथ- हिलाकर एक दूसरे से विदा ली। थोड़ी देर में होशंगाबाद आ गया और जैन दपंती भी उतर गया। अब केबिन में मैं अकेला ही था। दोपहर होने को आई। मैंने गोपाल जी दिया वह पैकेट खोला। परांठे, आलू की सूखी सब्जी, तली हुई हरी मिर्च के साथ एक गुंजिया व एक आगरा का पेठा भी था। करीब पच्चीस साल के बाद यह पहला मौका था जब बिना नहाए मैंने खाना खाया। मजबूरी थी, क्योंकि पूरे चौबीस घंटे बाद गंतव्य पहुंचना था, इसलिए भूखा रहना उचित नहीं समझा। गाड़ी बैतूल के जंगल से होते हुए महाराष्ट की सीमा मे प्रवेश कर चुकी थी। शाम पांच बजे नागपुर रेलवे स्टेशन आया। अब मेरे सामने की बर्थ पर एक शख्स तशरीफ ला चुके थे। नाम था मोहम्मद सिकंदर। मध्यप्रदेश के बालाघाट के रहने वाले थे। मिर्च के बड़े व्यापारी थे। मिर्च मंडी खम्मम से मिर्चोँ की खरीद फरोख्त के सिलसिले में ही जा रहे थे। बातों का सिलसिला आगे बढ़ा और थोड़ी देर में हम परिचित की तरह बतियाने लगे। तभी वो ही अटेडेंट फिर आया। सिकंदर भाई को चद्दर, तकिया व कंबल देकर चला गया। यहां भी चद्दर मैली थी, तो सिकंदर भाई ने लपका दिया। रात गहराते जा रही थी। सोने की तैयारी थी। तभी एक स्टेशन और आया। दो युवक और चढ़े। उनके वार्तालाप से आभास हो गया था कि मैं तेलंगाना की सीमा में प्रवेश कर चुका हेूं। रात करीब चार बजे सिकंदर भाई खम्मम उतरे। उनसे दुआ सलाम करके मैं फिर लेट गया। सुबह सात बजे आंध्रप्रदेश का विजयवाड़ा शहर आया। ऊपर की दोनों बर्थ पर बैठे युवक यहां उतर गए थे। मेरे सामने एक युवक आकर बैठा तो बगल भी एक सज्जन आ गए। साइड बर्थ पर भी एक व्यक्ति आ गए। करीब आधा घंटे रुकने के बाद ट्रेन चल पड़ी । विजयवाड़ा आंध्रप्रदेश के बीच में है। विजयवाड़ा से आधा प्रदेश उत्तर में तो आधा दक्षिण में रह जाता है। मुझे उत्तर की ओर जाना था।
क्रमश:
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