Tuesday, June 11, 2019

मेरी आंध्रा यात्रा- 7

यहां से ऑटो वाला मुझे सीधे होटल की तरफ ले आया। मैं उसको हिन्दी में कहता रहा कि बाकी पार्टियों के कार्यालय तो अभी दिखाए ही नहीं है लेकिन वह मेरी बात समझ नहीं पाया। मैंने उसको पैसे दिए और सीधे सुरेश के पास गया और उसका उलाहना देते हुए कहा कि ऑटो वाले ने तो चिटिंग कर ली। सारे कार्यालय दिखाने के नाम पर सिर्फ दो जगह ले गया और पूरे पैसे ले लिए। सुरेश के पास भी मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं था। दोपहर हो चुकी थी। मैंने रुम पर कपड़े बदले और सीधा रेस्टारेंट पहुंच गया और स्पेशल थाली का ऑर्डर कर दिया। अचानक काउंटर पर बैठी महिला के मोबाइल से ' तावड़ा मंदो पड़ ज्या रे..' गीत सुना तो चौंका। मुझे यकीन हो गया था कि यह भी कोई राजस्थानी ही है। भोजन के करने के बाद मैं काउंटर पर आया और पैसे देने के बाद महिला से पूछा आप राजस्थान के हैं क्या? मेरा सवाल सुनकर उन्होंने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया है और अब मेरा अगला सवाल था, राजस्थान में कहां के तो, उसने कहा चूरू के हैं। चूरू में कहां के तो उन्होंने रतननगर के नाम लिया। मैंने उनको जब खुद के बारे में बताया तो बतौर राजस्थानी दोनों के चेहरे पर मुस्कान दौडऩी लाजिमी थी। भोजन के बाद मैं रुम पर आया और लैपटॉप बैड पर जमा कर खबर लिखी। खबर पूर्ण करने के बाद थोड़ा लेट गया। शाम होने को थी। नहाकर बाहर निकला क्योंकि आरके बीच पर मात्र आधा घंटे में ही पसीने-पसीने हो गया था। बड़ी तेज उमस थी वहां। खैर, बाजार में एक थड़ी पर चाय पी। देखा उस चाय वाले ने डस्टबीन रखा हुआ था। चाय पीने वाले डिस्पोजल गिलास उसी डस्टबीन में डाल रहे थे। शाम गहरा चुकी थी। अब खाने की इच्छा कम थी, लिहाजा एक परांठा रूम में ही मंगवा लिया। रेट चालीस रुपए लिख रखी थी लेकिन बिल आया पचास रुपए का। कारण जाना तो बताया कि दस रुपए सर्विस चार्ज है। मैंने कहा कि आपने रूम में रेट कार्ड रखा है। इसका मतलब तो यही है कि आपके होटल का ही है, तो फिर काहे का सर्विस चार्ज? वह मेरी बात का संतोषजनक जवाब नहीं दे सका। मैंने परांठा खाया। और टीवी पर आईपीएल देखने लगा। मैच समाप्ति के बाद नींद आने को थी। सोने से पहले तय कर लिया था कि अगले दिन ग्रामीण क्षेत्र में चलना है और वहां क्या चल रहा है, इस पर काम करना है। साथ ही यह भी तय किया है सुबह होटल से चैक आउट हो जाऊंगा और घूमते-घूमते जहां रात होगी वहीं पर रूक जाऊंगा। अगले दिन का प्लान फाइनल करके मैं सो गया। होटल में मुझे दो दिन हो गए थे। सुबह उठा और सबसे पहले उसी थड़ी वाले के पास गया। चाय पी और फिर पैदल ही एक लंबा चक्कर लगाकर होटल आ गया। सामान पैक करने के बाद मैं अगले पड़ाव की तैयारी में जुट गया।
क्रमश:

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