कल यानी 22 जून का दिन मेरे लिए खास होता है। इस बार गांव में मकानों की मरम्मत के सिलसिले में 18 जून को गांव गया था। 21 जून शाम को वहां से चलकर 22 जून सुबह श्रीगंगानगर पहुंचना तय था। लेकिन एन वक्त पर प्लान बदला और फिर तय किया कि 22 को सुबह जल्दी चलकर शाम चार बजे तक श्रीगंगानगर पहुंच जाऊंगा। हर बार इसी बस से जाता हूं। खैर, सुबह छह बजे उठ भी गया लेकिन...थोडी सी देर और सोने के लालच में आंख ऐसी लगी कि जागा तब घड़ी 9.58 बजा रही थी। मेरे होश फाख्ता हो गए थे। फटाफट घर का सारा सामान जमाया। कमरों के ताले लगाए....फिर तैयार हुआ तब तक 11.30 हो गए थे। घर की चाबी काकीसा को देने गया तो उन्होंने खाना खाने को कहा लेकिन मुझे और लेट नहीं करनी थी। मैंने छाछ एक कप पीया और फटाफट बस स्टैंड आया। वहां आकर पता चला कि बसों की हड़ताल है। अब संकट यही था अगले शहर के स्टेंड तक कैसे पहुंचा जाए। खैर,एक बाइक सवार से लिफ्ट मांगी और सुलताना आया...तेज धूप व उमस से मैं पसीना पसीना था...। तभी वहां जूस की रेहड़ी पर बिल्व का जूस पीया...और बस का इंतजार करने लगा। साढे बारह हो चुके थे तभी बस आई....और उससे चिड़ावा पहुंचा। वहां भी आधा घंटे के इंतजार के बाद बस आई और पिलानी पहुंचा। तब तक दो बज चुके थे। पिलानी में प्यास लगी तो पानी की बोतल ली लेकिन पानी पीते ही गले में तेज दर्द होने लगा...पानी की एक बूंद गटकना भी बड़ा पीडादायक लगा। गले में अचानक तकलीफ मेरी समझ से बाहर थी। राजगढ पहुंचा तब तक 3.50 हो गए थे। वहां भादरा के लिए बस खड़ी थी लेकिन ठसाठस भरी थी, लिहाजा मैं उससे नीचे उतर गया और दूसरी बस का इंतजार करने लगा। इस बीच सेव का ज्यूस लाया। बोतल एकदम ठंडी थी...जैसे ही पहला घूंट लिया गले में तेज जलन और चिरमिराहट होने लगी। दर्द से पसीना पसीना हो गया था। बोतल को बैग में रखकर में बस में आकर बैठ गया। साढे चार बजे चुके थे। बस की रवानगी का टाइम पांच बजे था। मतलब घर से राजगढ तक की 75 किमी की दूरी में साढे पांच घंटे बीत गए थे। पांच बजे चलकर बस साढे छह बजे भादरा पहुंची...यहां चाय पी तो कुछ आराम सा मिला...फिर तय किया कि ठंडे पानी से ही तकलीफ है। इसके बाद ठंडे पानी की बजाय सामान्य पानी ही पीया।
भादरा से बस सवा सात बजे रवाना हुई। हनुमानगढ पहुंचा तब सवा दस हो चुके थे। मुझे हार हाल में बारह बजे से पहले श्रीगंगानगर पहुंचना था लेकिन तब श्रीगंगानगर के लिए कोई साधन नहीं था..। पूछा तो बताया कि बस तो है लेकिन साढे ग्यारह बजे आएगी....मेरे माथे पर शिकन थी...पता था साढे ग्यारह चलकर बारह बजे तक श्रीगंगानगर नहीं.पहुंचा जाएगा। ऐसे में तय किया कि हनुमानगढ से गाड़ी किराये पर ली जाए। गाड़ी फोन पर बुक करवाकर मैं उसका इंतजार करने लगा। तभी एक कार आकर रुकी, मैं उम्मीद भरी नजरों से उसकी ओर गया...और यकीनन जैसा सोचा वैसा ही हुआ...कार श्रीगंगानगर ही आ रही थी। मैं फटाफट उसमें बैठा। रात 11.29 पर उसने मुझे श्रीगंगानगर के चहल चौक उतारा। उस वक्त वहां कोई ऑटो रिक्शा नहीं था, लिहाजा करीब डेढ किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय की....घर पहुंचा तब तक पौने बारह हो गए थे। उस वक्त बच्चे व निर्मल मेरा ही इंतजार कर रहे थे। पसीने से शरीर कचपचा रहा था, सो सबसे पहले बाथरूक घुसा। नहाकर बाहर निकला तो तीनों ने कमरे का गेट बंद कर दिया...लाइट आफ की और कहा अब बाहर आओ....बाहर गया तो मेज पर केक सजा था....सरप्राइज था यह मेरे लिए...इसके अलावा दो टी शर्ट भी बतौर उपहार मेरे लिए लाई गई थी....फिर हम सबने मिलकर केक काटा....एक दूसरे को विश किया....रात का एक बजने को था....तेज धूप व उमस में बारह घंटे की यात्रा वह भी सात अलग अलग साधनों से तय करने के बाद थकान से बदन दोहरा होना तय था लेकिन वर्षगांठ के जश्न में यह सारी थकावट दूर हो गई थी...एक यादगार दिन.....।
भादरा से बस सवा सात बजे रवाना हुई। हनुमानगढ पहुंचा तब सवा दस हो चुके थे। मुझे हार हाल में बारह बजे से पहले श्रीगंगानगर पहुंचना था लेकिन तब श्रीगंगानगर के लिए कोई साधन नहीं था..। पूछा तो बताया कि बस तो है लेकिन साढे ग्यारह बजे आएगी....मेरे माथे पर शिकन थी...पता था साढे ग्यारह चलकर बारह बजे तक श्रीगंगानगर नहीं.पहुंचा जाएगा। ऐसे में तय किया कि हनुमानगढ से गाड़ी किराये पर ली जाए। गाड़ी फोन पर बुक करवाकर मैं उसका इंतजार करने लगा। तभी एक कार आकर रुकी, मैं उम्मीद भरी नजरों से उसकी ओर गया...और यकीनन जैसा सोचा वैसा ही हुआ...कार श्रीगंगानगर ही आ रही थी। मैं फटाफट उसमें बैठा। रात 11.29 पर उसने मुझे श्रीगंगानगर के चहल चौक उतारा। उस वक्त वहां कोई ऑटो रिक्शा नहीं था, लिहाजा करीब डेढ किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय की....घर पहुंचा तब तक पौने बारह हो गए थे। उस वक्त बच्चे व निर्मल मेरा ही इंतजार कर रहे थे। पसीने से शरीर कचपचा रहा था, सो सबसे पहले बाथरूक घुसा। नहाकर बाहर निकला तो तीनों ने कमरे का गेट बंद कर दिया...लाइट आफ की और कहा अब बाहर आओ....बाहर गया तो मेज पर केक सजा था....सरप्राइज था यह मेरे लिए...इसके अलावा दो टी शर्ट भी बतौर उपहार मेरे लिए लाई गई थी....फिर हम सबने मिलकर केक काटा....एक दूसरे को विश किया....रात का एक बजने को था....तेज धूप व उमस में बारह घंटे की यात्रा वह भी सात अलग अलग साधनों से तय करने के बाद थकान से बदन दोहरा होना तय था लेकिन वर्षगांठ के जश्न में यह सारी थकावट दूर हो गई थी...एक यादगार दिन.....।
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