बस यूं ही
सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से हार के साथ ही भारत का फाइनल खेलने का सपना टूट गया है। लीग मैचों में चमकदार प्रदर्शन व टॉप क्रम की जबरदस्त के फॉर्म के चलते भारत का दावा मजबूत माना जा रहा था, लेकिन सेमीफाइनल में एेसा नहीं हुआ। भारत का टॉप क्रम ताश के पत्तों के तरह धराशायी हो गया। शुरू के चार खिलाड़ी तो तू चल मैं आया की तर्ज पर आउट होते गए। स्कोर बोर्ड पर जब भारत के 24 रन बने थे तब तक चार धुरंधर पैवेलियन का रास्ता पकड़ चुके थे। वैसे कीवियों ने जब 50 ओवर में 239 रन बनाए तो लगा भारतीय टीम यह लक्ष्य आसानी से पा लेगी, क्योंकि लीग मैचों का इतिहास ही एेसा रहा था। बरसात के कारण एक से दो दिन के हुए इस वनडे के परिणाम को लेकर क्रिकेट प्रेमियों में काफी उत्सुकता थी। एेसा लग रहा था भारत का फाइनल में खेलने का सपना पूरा होने जा रहा है लेकिन एेसा हो न सका। न्यूजीलैंड के गेंदबाजों ने भारतीय खिलाडि़यों का सस्ते में समेटना शुरू किया तो दर्शक एक तरह से सहम गए। रोहित, विराट व राहुल लगातार आउट हुए। पांच रन पर तीन आउट। दिनेश कार्तिक व ऋषभ पंत ने जमने का प्रयास किया लेकिन कार्तिक का एक मुश्किल कैच पकड़ उनको भी पैवेलियन की राह दिखा दी। कार्तिक की जगह आए पांडया ने
जरूर कुछ शॉट्स खेले लेकिन वो कई बार आउट होते होते भी बचे। पंत व पांडया के बीच जब साझेदारी 47रन की हुई तो पंत आउट हो गए। इसके बाद धोनी व पांडया के बीच 21 की पार्टनरशिप हुए लेकिन 92 रन पर पांडया भी आउट हो गए। इस तरह 30.3 ओवर में छह विकेट पर स्कोर 92 रन था तो भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के मन के किसी कोने में हार की आशंका प्रबल होने लगी थी। धोनी को कार्तिक व पांडया के बाद उतारने की हालांकि आलोचना भी हुई। क्योंकि दिनेश कार्तिक 25 गेंदों पर 6 बनाकर आउट हुए। इसी तरह लोकेश राहुत ने सात गंेदों पर एक, रोहित ने चार गेंदों पर एक तथा विराट ने छह गंेदों पर एक रन बनाया। इस तरह से शुरू के चार बल्लेबाजों ने नौ रन बनाने के लिए 42 गेंद मतलब सात ओवर खेले। इतना ही नहीं पांडया व पंत जैसे स्ट्रॉक प्लेयर भी शुरूआती विकेट गिरने से इतने दबाव में आए कि वो भी काफी धीमा खेले। पंत ने 32 रन बनाने के लिए 56 गेंद खेली जबकि पांडया ने इतने ही रनों के लिए 62 गेंदों का सामना किया। इस तरह से इन दोनों बल्लेबाजों ने 64 रन बनाने के लिए 118 गेंद मतलब 19.4 ओवर खेल लिए। यानी की चार की औसत से भी रन नहीं बनाए। पुछल्लों से वैसे भी बल्लेबाजी की उम्मीद नहीं की जा सकती। लिहाजा, भुवनेश्वर एक गेंद पर शून्य, चहल पांच पर पांच तथा बुमराह बिना कोई रन बनाए जीरो पर नाबाद रहे। इस तरह से भारत के सात बल्लेबाजों ने 14 रन ही बनाए।
मैच का दूसरा पक्ष धोनी व जड़ेजा से जुुड़ा है। यह दोनों भारतीय टीम को जीत तो नहीं दिला पाए लेकिन इन दोनों बल्लेबाजों ने मैच में न केवल रोमांच पैदा किया बल्कि एक बार जीत की उम्मीद भी जगा दी। जडेजा ने मैच के तीनों फोरमेट गेंदबाजी, क्षेत्ररक्षण व बल्लेबाजी में सबसे शानदार प्रदर्शन कर न केवल चयनकर्ताओं को सोचने पर मजबूर किया बल्कि आलोचकों का मुंह भी बंद कर दिया। इन दोनों बल्लेबाजों ने 17.2 आेवर में 116 रन की साझेदारी कर भारत को एक बार जीत की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया था लेकिन बदकिस्मत रहे कि टीम को जीत नहीं दिला सके। एक ऊंचा शॉट खेलने के चक्कर में जड़ेजा 48वें ओवर में शॉर्ट लॉन्ग ऑन पर लपके गए। जड़ेजा ने 59 गेंदों पर 77 रन की धमाकेदार पारी खेली। इस पारी में उनके चार छक्के भी शामिल रहे। जड़ेजा के बाद सारी जिम्मेदारी पूर्व भारतीय कप्तान धोनी के कंधों पर थी। उन्होंने 49वें ओवर की पहली गेंद पर जिस अंदाज में छक्का मारा उसने विरोधी खेमें हलचल मचा दी। इसी ओवर की तीसरी गेंद पर दूसरा रन लेने के प्रयास में गुप्टिल के सीधे थ्रो पर धोनी रन आउट हो गए। इसी के साथ भारत की हार तय हो गई । आखिरकर 49.3 ओवर में 221 रन भारतीय टीम ऑलआउट हो गई। इस तरह सात खिलाडि़योंने जहां 14 रन बनाए वहीं पांचवें से लेकर आठवें क्रम पर उतरे चार बल्लेबाजों ने 191 रन बनाए। पांचवां बड़ा स्कोर अतिरिक्त रनों का रहा। भारतीय में 16 रन अतिरिक्त बने।
बहरहाल, खेल में हार जीत चलती रहती है लेकिन कम स्कोर के मुकाबले में शुरुआती झटके खाने के बाद इस तरह करीब आकर काफी सालता है। यह हार भारतीय टीम व क्रिकेट प्रेमियों को कई दिनों तक तकलीफ देगी। भारत के पास विश्व कप जीत की हैट्रिक बनाने की मौका था, जो छूट गया। क्रिकेट वैसे भी किस्मत का खेल है। और किस्मत कीवियों के साथ थी। भारत की हार पर कई तरह के जुमले बनेंगे, बन भी गए। हार की समीक्षा भी होगी। कई तरह की बातें होंगी, एेसा होता तो यह हो जाता। वैसा होता तो वो हो जाता। खैर, होता कुछ नहीं क्योंकि क्रिकेट होता का नहीं, है का खेल है।
सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से हार के साथ ही भारत का फाइनल खेलने का सपना टूट गया है। लीग मैचों में चमकदार प्रदर्शन व टॉप क्रम की जबरदस्त के फॉर्म के चलते भारत का दावा मजबूत माना जा रहा था, लेकिन सेमीफाइनल में एेसा नहीं हुआ। भारत का टॉप क्रम ताश के पत्तों के तरह धराशायी हो गया। शुरू के चार खिलाड़ी तो तू चल मैं आया की तर्ज पर आउट होते गए। स्कोर बोर्ड पर जब भारत के 24 रन बने थे तब तक चार धुरंधर पैवेलियन का रास्ता पकड़ चुके थे। वैसे कीवियों ने जब 50 ओवर में 239 रन बनाए तो लगा भारतीय टीम यह लक्ष्य आसानी से पा लेगी, क्योंकि लीग मैचों का इतिहास ही एेसा रहा था। बरसात के कारण एक से दो दिन के हुए इस वनडे के परिणाम को लेकर क्रिकेट प्रेमियों में काफी उत्सुकता थी। एेसा लग रहा था भारत का फाइनल में खेलने का सपना पूरा होने जा रहा है लेकिन एेसा हो न सका। न्यूजीलैंड के गेंदबाजों ने भारतीय खिलाडि़यों का सस्ते में समेटना शुरू किया तो दर्शक एक तरह से सहम गए। रोहित, विराट व राहुल लगातार आउट हुए। पांच रन पर तीन आउट। दिनेश कार्तिक व ऋषभ पंत ने जमने का प्रयास किया लेकिन कार्तिक का एक मुश्किल कैच पकड़ उनको भी पैवेलियन की राह दिखा दी। कार्तिक की जगह आए पांडया ने
जरूर कुछ शॉट्स खेले लेकिन वो कई बार आउट होते होते भी बचे। पंत व पांडया के बीच जब साझेदारी 47रन की हुई तो पंत आउट हो गए। इसके बाद धोनी व पांडया के बीच 21 की पार्टनरशिप हुए लेकिन 92 रन पर पांडया भी आउट हो गए। इस तरह 30.3 ओवर में छह विकेट पर स्कोर 92 रन था तो भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के मन के किसी कोने में हार की आशंका प्रबल होने लगी थी। धोनी को कार्तिक व पांडया के बाद उतारने की हालांकि आलोचना भी हुई। क्योंकि दिनेश कार्तिक 25 गेंदों पर 6 बनाकर आउट हुए। इसी तरह लोकेश राहुत ने सात गंेदों पर एक, रोहित ने चार गेंदों पर एक तथा विराट ने छह गंेदों पर एक रन बनाया। इस तरह से शुरू के चार बल्लेबाजों ने नौ रन बनाने के लिए 42 गेंद मतलब सात ओवर खेले। इतना ही नहीं पांडया व पंत जैसे स्ट्रॉक प्लेयर भी शुरूआती विकेट गिरने से इतने दबाव में आए कि वो भी काफी धीमा खेले। पंत ने 32 रन बनाने के लिए 56 गेंद खेली जबकि पांडया ने इतने ही रनों के लिए 62 गेंदों का सामना किया। इस तरह से इन दोनों बल्लेबाजों ने 64 रन बनाने के लिए 118 गेंद मतलब 19.4 ओवर खेल लिए। यानी की चार की औसत से भी रन नहीं बनाए। पुछल्लों से वैसे भी बल्लेबाजी की उम्मीद नहीं की जा सकती। लिहाजा, भुवनेश्वर एक गेंद पर शून्य, चहल पांच पर पांच तथा बुमराह बिना कोई रन बनाए जीरो पर नाबाद रहे। इस तरह से भारत के सात बल्लेबाजों ने 14 रन ही बनाए।
मैच का दूसरा पक्ष धोनी व जड़ेजा से जुुड़ा है। यह दोनों भारतीय टीम को जीत तो नहीं दिला पाए लेकिन इन दोनों बल्लेबाजों ने मैच में न केवल रोमांच पैदा किया बल्कि एक बार जीत की उम्मीद भी जगा दी। जडेजा ने मैच के तीनों फोरमेट गेंदबाजी, क्षेत्ररक्षण व बल्लेबाजी में सबसे शानदार प्रदर्शन कर न केवल चयनकर्ताओं को सोचने पर मजबूर किया बल्कि आलोचकों का मुंह भी बंद कर दिया। इन दोनों बल्लेबाजों ने 17.2 आेवर में 116 रन की साझेदारी कर भारत को एक बार जीत की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया था लेकिन बदकिस्मत रहे कि टीम को जीत नहीं दिला सके। एक ऊंचा शॉट खेलने के चक्कर में जड़ेजा 48वें ओवर में शॉर्ट लॉन्ग ऑन पर लपके गए। जड़ेजा ने 59 गेंदों पर 77 रन की धमाकेदार पारी खेली। इस पारी में उनके चार छक्के भी शामिल रहे। जड़ेजा के बाद सारी जिम्मेदारी पूर्व भारतीय कप्तान धोनी के कंधों पर थी। उन्होंने 49वें ओवर की पहली गेंद पर जिस अंदाज में छक्का मारा उसने विरोधी खेमें हलचल मचा दी। इसी ओवर की तीसरी गेंद पर दूसरा रन लेने के प्रयास में गुप्टिल के सीधे थ्रो पर धोनी रन आउट हो गए। इसी के साथ भारत की हार तय हो गई । आखिरकर 49.3 ओवर में 221 रन भारतीय टीम ऑलआउट हो गई। इस तरह सात खिलाडि़योंने जहां 14 रन बनाए वहीं पांचवें से लेकर आठवें क्रम पर उतरे चार बल्लेबाजों ने 191 रन बनाए। पांचवां बड़ा स्कोर अतिरिक्त रनों का रहा। भारतीय में 16 रन अतिरिक्त बने।
बहरहाल, खेल में हार जीत चलती रहती है लेकिन कम स्कोर के मुकाबले में शुरुआती झटके खाने के बाद इस तरह करीब आकर काफी सालता है। यह हार भारतीय टीम व क्रिकेट प्रेमियों को कई दिनों तक तकलीफ देगी। भारत के पास विश्व कप जीत की हैट्रिक बनाने की मौका था, जो छूट गया। क्रिकेट वैसे भी किस्मत का खेल है। और किस्मत कीवियों के साथ थी। भारत की हार पर कई तरह के जुमले बनेंगे, बन भी गए। हार की समीक्षा भी होगी। कई तरह की बातें होंगी, एेसा होता तो यह हो जाता। वैसा होता तो वो हो जाता। खैर, होता कुछ नहीं क्योंकि क्रिकेट होता का नहीं, है का खेल है।
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