जनहित से जुड़ा कोई भी काम हो, वह उम्मीदों पर खरा उतरे तथा मुकाम तक पहुंचे, इसके लिए उसका क्रियान्वयन बेहतर तरीके से होना जरूरी होता है। विडम्बना यह है कि श्रीगंगानगर के कई सरकारी विभागों की कार्यशैली इस तरह की है कि जनहित से जुड़े कामों का क्रियान्वयन होना तो दूर उल्टे वह जनता के गले की फांस बन जाते हैं। शहर को कैटल फ्री करने का काम भी कुछ इसी तरह का है। शहर के किसी भी हिस्से में चले जाओ आपको निराश्रित पशु घूमते-फिरते मिल जाएंगे। इनसे लगातार जान-माल की हानि हो रही है। फिर भी जिम्मेदारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। यूं भी कह सकते हैं कि जिम्मेदारों ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ कर इस समस्या को लाइलाज बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। निराश्रित पशुओं की धरपकड़ के प्रयास तो न के बराबर हैं। निराश्रित पशुओं की समस्या दिन प्रतिदिन इतनी विकराल होती जा रही है कि श्रीगंगानगर के दो विधायक विधानसभा में इस मामले को उठा चुके हैं।
इधर, शहर में निराश्रित पशुओं को पकडऩे का काम लगभग बंद ही पड़ा है। बात निराश्रित पशुओं तक ही सीमित नहीं है। शहर में कई जगह खुलेआम तबेले चल रहे हैं। जगह-जगह हरे चारे की टाल खुली हुई हैं। इन पर कोई रोक टोक या पाबंदी नहीं है।
वैसे किसी भी काम के लिए सबसे पहले जरूरत इच्छा शक्ति की होती है। शहर को कैटल फ्री बनाने की दिशा में इच्छाशक्ति का अभाव सबसे बड़ी वजह है। जिला कलक्टर ने एक बार जरूर पहल करते हुए मिर्जेवाला रोड गोशाला के पशु अन्य गोशालाओं में भिजवाए, लेकिन उसके बाद मामला ठंडा है। वहां करीब पांच-सौ साढ़े पांच गोवंश की क्षमता बताई गई है जबकि वर्तमान में वहां सौ-सवा के करीब ही गोवंश है। फिर भी निराश्रित पशु नहीं पकड़े जा रहे। जितना मोटा बजट इन निराश्रित पशुओं व गोशालाओं के नाम पर खर्च हो रहा है, उसका लाभ शहर को मिलता दिखाई नहीं दे रहा। रोटांवाली में परिषद की 22 बीघा जमीन थी, वहां बड़ी गोशाला बन सकती थी। ज्यादा पशुओं को वहां रखा जा सकता था लेकिन उसकी बजाय मिर्जवाला रोड पर चार बीघा में नंदीशाला खोली गई। इतना ही नहीं सूरतगढ़ विधायक ने भी पिछले दिनों एक सुझाव दिया था कि सूरतगढ़ के बारानी क्षेत्र में काफी जगह है। वहां बड़ी गोशाला खोली जा सकती है। उनका सुझाव भी काबिलेगौर है। क्योंकि सरकारी अनुदान के अलावा चारे व पैसे की मदद यहां के दानदाताओं से हो सकती है। शहर की तमाम टालें एेसे ही दानदाताओं के दम पर ही तो चल रही हैं। पंजाब की तर्ज पर गोशालाओं के रोटी/चारा आदि के वाहन रखे जा सकते हैं लेकिन बात इच्छाशक्ति पर ही आकर ठहरती है।
बहरहाल, आंख बंद करके और हाथ पर हाथ धरकर बैठने से समस्या का समाधान नहीं होगा। समस्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है, इसका समय रहते समाधान खोजना जरूरी, वरना सडक़ पर सुगमता से चलना किसी सपने की तरह हो सकता है। देखने की बात तो यह है कि जिम्मेदार कब जागते हैं और इच्छाशक्ति दिखाते हैं।
वैसे किसी भी काम के लिए सबसे पहले जरूरत इच्छा शक्ति की होती है। शहर को कैटल फ्री बनाने की दिशा में इच्छाशक्ति का अभाव सबसे बड़ी वजह है। जिला कलक्टर ने एक बार जरूर पहल करते हुए मिर्जेवाला रोड गोशाला के पशु अन्य गोशालाओं में भिजवाए, लेकिन उसके बाद मामला ठंडा है। वहां करीब पांच-सौ साढ़े पांच गोवंश की क्षमता बताई गई है जबकि वर्तमान में वहां सौ-सवा के करीब ही गोवंश है। फिर भी निराश्रित पशु नहीं पकड़े जा रहे। जितना मोटा बजट इन निराश्रित पशुओं व गोशालाओं के नाम पर खर्च हो रहा है, उसका लाभ शहर को मिलता दिखाई नहीं दे रहा। रोटांवाली में परिषद की 22 बीघा जमीन थी, वहां बड़ी गोशाला बन सकती थी। ज्यादा पशुओं को वहां रखा जा सकता था लेकिन उसकी बजाय मिर्जवाला रोड पर चार बीघा में नंदीशाला खोली गई। इतना ही नहीं सूरतगढ़ विधायक ने भी पिछले दिनों एक सुझाव दिया था कि सूरतगढ़ के बारानी क्षेत्र में काफी जगह है। वहां बड़ी गोशाला खोली जा सकती है। उनका सुझाव भी काबिलेगौर है। क्योंकि सरकारी अनुदान के अलावा चारे व पैसे की मदद यहां के दानदाताओं से हो सकती है। शहर की तमाम टालें एेसे ही दानदाताओं के दम पर ही तो चल रही हैं। पंजाब की तर्ज पर गोशालाओं के रोटी/चारा आदि के वाहन रखे जा सकते हैं लेकिन बात इच्छाशक्ति पर ही आकर ठहरती है।
बहरहाल, आंख बंद करके और हाथ पर हाथ धरकर बैठने से समस्या का समाधान नहीं होगा। समस्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है, इसका समय रहते समाधान खोजना जरूरी, वरना सडक़ पर सुगमता से चलना किसी सपने की तरह हो सकता है। देखने की बात तो यह है कि जिम्मेदार कब जागते हैं और इच्छाशक्ति दिखाते हैं।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 20 जुलाई के अंक में प्रकाशित ।
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