टिप्पणी
बढ़ते यातायात दबाव को कम करने के लिए हाल ही झुंझुनूं जिला मुख्यालय पर बरसों पुराने प्राइवेट बस स्टैंड को स्थानांतरित किया गया। यह काम काफी समय से लंबित था परन्तु इसे करने की हिम्मत न तो किसी जिला कलक्टर ने दिखाई और न ही जनप्रतिनिधि ने। लेकिन नए जिला कलक्टर ने यह काम कर दिखाया।
जिला कलक्टर के फैसले का कतिपय दुकानदारों और बस ऑपरेटर्स ने विरोध भी किया था लेकिन उन्होंने न केवल विरोध को दरकिनार किया बल्कि जनहित से जुड़े काम को ‘सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे’ की तर्ज पर मुकाम तक पहुंचा दिया। इस फैसले से आज झुंझुनूं शहर की अंदरूनी यातायात व्यवस्था में सुधार हुआ है। झुंझुनूं का उदाहरण इसलिए, क्योंकि इस तरह के कामों और फैसलों की जरूरत श्रीगंगानगर को भी है। लेकिन दुर्भाग्य है कि यहां इतनी हिम्मत न तो जिला प्रशासन दिखा पाता है और न ही जनप्रतिनिधि।
शहर की यातायात और पार्किंग व्यवस्था किसी से छुपी हुई नहीं है लेकिन जिम्मेदारों ने आंखें मूंद रखी है। परेशान तो जनता को होना है और वह हो रही है, होती रहे, अपनी बला से। लोकसेवकों व जनप्रतिनिधियों की सेहत पर इसका क्या फर्क पड़ता है। हाल-फिलहाल तो जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने एेसा कोई काम भी नहीं करके दिखाया, जिससे जनता को किसी तरह की राहत मिली हो। अफसोस की बात तो यह है कि यहां आने वाले लोकसेवक शुरू-शुरू में तो हरकत दिखाते हैं, इसके बाद उनके दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं। हां इन जिम्मेदारों के कुछ काम इस तरह के होते हैं, जिनका जनहित से कोई सरोकार नहीं होता। बिलकुल ‘अंधा पीसे कुत्ता खाए’ कहावत की तरह। ताजा मामला वेडिंग जोन का है। शहर में पार्किं ग के लिए छोड़ी गई नाममात्र की जगह भी अब वेंडिंग जोन में जाने वाली है। मतलब पार्किं ग के लिए शहर में कोई जगह ही नहीं है। नगर परिषद का इस फैसले को लेकर बड़ा ही हास्यास्पद बयान आया है। परिषद की दलील है कि पार्किंग के लिए जिला कलक्टर से बात की जाएगी। मतलब आग लगने के बाद कुआं खोदा जाएगा। अगर वेंडिंग जोन का निर्णय छह माह पहले का है तो उसी वक्त पार्कि ंग पर भी चर्चा हो जानी चाहिए थी। खैर, एेसा नहीं है कि शहर में पार्किंग के लिए जगह नहीं है। जगह है लेकिन जिला प्रशासन और नगर परिषद के अधिकारियों में चुनौती स्वीकार कर काम करवाने का माद्दा चाहिए। पूर्व के बने प्रस्तावों को टटोला जा सकता है। उन प्रस्तावों को लेकर आई अड़चनों पर चर्चा कर दूर किया जा सकता है। करने को श्रीगंगानगर में बहुत कुछ है लेकिन कोई करे तब ना। आज झुंझुनूं जिला कलक्टर को जनता ने पलकों पर इसलिए बैठाया कि उन्होंने एक बड़ी समस्या का समाधान सूझबूझ से कर दिखाया। पलकों पर बैठाने का काम श्रीगंगानगर की जनता भी कर सकती है लेकिन यहां के अधिकारी पहले वैसी सूझबूझ तो दिखाएं।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 24 जुलाई 19 के अंक में प्रकाशित।
बढ़ते यातायात दबाव को कम करने के लिए हाल ही झुंझुनूं जिला मुख्यालय पर बरसों पुराने प्राइवेट बस स्टैंड को स्थानांतरित किया गया। यह काम काफी समय से लंबित था परन्तु इसे करने की हिम्मत न तो किसी जिला कलक्टर ने दिखाई और न ही जनप्रतिनिधि ने। लेकिन नए जिला कलक्टर ने यह काम कर दिखाया।
जिला कलक्टर के फैसले का कतिपय दुकानदारों और बस ऑपरेटर्स ने विरोध भी किया था लेकिन उन्होंने न केवल विरोध को दरकिनार किया बल्कि जनहित से जुड़े काम को ‘सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे’ की तर्ज पर मुकाम तक पहुंचा दिया। इस फैसले से आज झुंझुनूं शहर की अंदरूनी यातायात व्यवस्था में सुधार हुआ है। झुंझुनूं का उदाहरण इसलिए, क्योंकि इस तरह के कामों और फैसलों की जरूरत श्रीगंगानगर को भी है। लेकिन दुर्भाग्य है कि यहां इतनी हिम्मत न तो जिला प्रशासन दिखा पाता है और न ही जनप्रतिनिधि।
शहर की यातायात और पार्किंग व्यवस्था किसी से छुपी हुई नहीं है लेकिन जिम्मेदारों ने आंखें मूंद रखी है। परेशान तो जनता को होना है और वह हो रही है, होती रहे, अपनी बला से। लोकसेवकों व जनप्रतिनिधियों की सेहत पर इसका क्या फर्क पड़ता है। हाल-फिलहाल तो जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने एेसा कोई काम भी नहीं करके दिखाया, जिससे जनता को किसी तरह की राहत मिली हो। अफसोस की बात तो यह है कि यहां आने वाले लोकसेवक शुरू-शुरू में तो हरकत दिखाते हैं, इसके बाद उनके दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं। हां इन जिम्मेदारों के कुछ काम इस तरह के होते हैं, जिनका जनहित से कोई सरोकार नहीं होता। बिलकुल ‘अंधा पीसे कुत्ता खाए’ कहावत की तरह। ताजा मामला वेडिंग जोन का है। शहर में पार्किं ग के लिए छोड़ी गई नाममात्र की जगह भी अब वेंडिंग जोन में जाने वाली है। मतलब पार्किं ग के लिए शहर में कोई जगह ही नहीं है। नगर परिषद का इस फैसले को लेकर बड़ा ही हास्यास्पद बयान आया है। परिषद की दलील है कि पार्किंग के लिए जिला कलक्टर से बात की जाएगी। मतलब आग लगने के बाद कुआं खोदा जाएगा। अगर वेंडिंग जोन का निर्णय छह माह पहले का है तो उसी वक्त पार्कि ंग पर भी चर्चा हो जानी चाहिए थी। खैर, एेसा नहीं है कि शहर में पार्किंग के लिए जगह नहीं है। जगह है लेकिन जिला प्रशासन और नगर परिषद के अधिकारियों में चुनौती स्वीकार कर काम करवाने का माद्दा चाहिए। पूर्व के बने प्रस्तावों को टटोला जा सकता है। उन प्रस्तावों को लेकर आई अड़चनों पर चर्चा कर दूर किया जा सकता है। करने को श्रीगंगानगर में बहुत कुछ है लेकिन कोई करे तब ना। आज झुंझुनूं जिला कलक्टर को जनता ने पलकों पर इसलिए बैठाया कि उन्होंने एक बड़ी समस्या का समाधान सूझबूझ से कर दिखाया। पलकों पर बैठाने का काम श्रीगंगानगर की जनता भी कर सकती है लेकिन यहां के अधिकारी पहले वैसी सूझबूझ तो दिखाएं।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 24 जुलाई 19 के अंक में प्रकाशित।
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