प्रसंगवश
पड़ोसी प्रदेश पंजाब से राजस्थान आने वाले नहरी पानी को लेकर कमोबेश हर साल बवाल मचता है। अक्सर तो पानी की मात्रा में उतार-चढ़ाव ही प्रमुख मुद्दा बनता रहा है लेकिन इस बार जल प्रदूषण का मामला भी चर्चा में है। लोकसभा-विधानसभा में भी इसकी गूंज सुनाई दी है। गुरुवार को राजस्थान व पंजाब के मुख्यमंत्रियों की चंडीगढ़ में बैठक हुई। इसमें न केवल पानी में प्रदूषण को लेकर चिंता जताई गई, समाधान की तरफ कदम बढ़ाने का भरोसा मिला, बल्कि राजस्थान के हिस्से के पानी और इसकी मात्रा बढ़ाने की राह भी खुलती नजर आई। हालांकि जिन मसलों पर बात हुई व सहमति बनी, उनके लिए अभी इंतजार करना होगा। इतना ही नहीं, उन पर क्रियान्वयन भी आसान काम नहीं है।
हरिके हैडवक्र्स से निकलने वाले फिरोजपुर फीडर की लाइनिंग कई जगह से क्षतिग्रस्त है। इससे पानी निर्धारित क्षमता के हिसाब से नहीं मिल पाता। इस फीडर की रिलाइनिंग की डीपीआर तैयार कर केन्द्रीय जल आयोग को भिजवाई जाएगी। सरहिन्द व राजस्थान फीडर का काम भी होना है। इसके लिए 2022 तक की समय सीमा तय हुई। इसके अलावा इंदिरा गांधी फीडर के हैड रेगुलेटर की क्षमता बढ़ाने पर सहमति बनी है। खास बात यह भी थी कि इस बैठक में राजस्थान की तय हिस्सेदारी का मामला भी प्रमुखता से उठा। अतीत में दोनों प्रदेशों में सरकारें तो बदलीं लेकिन जल समझौते के तहत पंजाब से राजस्थान को उसके हिस्से का पानी अभी तक नहीं मिल सका है। बावजूद इसके दोनों मुख्यमंत्रियों की आला अधिकारियों की मौजूदगी में हुई यह बैठक उम्मीद की किरण जगाती है। दोनों प्रदेशों में एक ही दल की सरकार है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों मुख्यमंत्रियों की बीच हुई वार्ता के सार्थक परिणाम सामने आएंगे। यदि ईमानदारी से और निर्धारित समयावधि में काम होंगे तो यकीनन इंदिरा गांधी नहर के अंतिम छोर के जिलों को लाभ होगा। यह लाभ भी दो तरह का होगा। एक तो पानी की कमी भी दूर होगी, दूसरा पानी में प्रदूषण भी कम होगा। मतलब कृषि व स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभदायक।
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राजस्थान पत्रिका के संपादकीय पेज पर आज 27 जुलाई 19 के अंक में प्रकाशित ।
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