कितना खौफ होता है शाम के अंधेरे में,
पूछो उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।
जी हां किसी शायर का यह शेर आज भी कितना मौजूं हैं। वाकई परिंदों के घर नहीं होते। वैसे परिंदों का कोई स्थायी ठिकाना भी नहीं होता। उनके लिए न तो मजहब की कोई दीवार खड़ी होती है और ना ही कोई सरहद आड़े आती है। याद होगा, नब्बे के दशक में एक फिल्म आई थी, रिफ्यूजी। इसमें अभिषेक बच्चन व करीना कपूर मुख्य भूमिका में थे। इसी फिल्म का एक गाना बेहद चर्चित हुआ था। इसके बोल थे, पंछी नदिया पवन के झौंके, कोई सरहद ना इनको रोके.. दरअसल, यह इसलिए कहा था कि परिंदों, नदियों व हवा के झौकों की कोई सरहद नहीं होती और ना ही कोई स्थायी ठिकाना। लगते हाथ इस शेर पर भी गौर फरमाइए, ये हम क्या बना बैठे, कहीं मंदिर तो कहीं मस्जिद बना बैठे, हमसे तो जात अच्छी है परिंदों की, कभी मंदिर पर जा बैठे तो कभी मस्जिद पर जा बैठे। लब्बोलुआब यही है कि परिंदों का कोई स्थायी घर नहीं होता। वो अपनी मर्जी के मालिक हैं। परिंदों का कोई धर्म व जात भी नहीं होती है। तभी तो यह शेर कहा गया है, परिंदों के यहां फिरकापरती क्यूं नहीं होती, कभी मजिस्द पे जा बैठे कभी मंदिर पे जा सब बैठे। खैर, परिंदों के ठिकाने मतलब आशियाने से याद आया कि परिंदों के लिए भी अब स्थायी आशियाने भी बनने लगे। देश में इस तरह के प्रयोग कई जगह हो चुके हैं। अब श्रीगंगानगर में भी इसी तरह का एक आशियाना बना है, जो सोमवार को शुरू हुआ। कल्याण भूमि में बनाए गए परिंदों के इस आशियाने को नाम दिया गया है पक्षी विहार। आधुनिक भाषा में इसे परिंदों का फ्लैट भी कह सकते हैं। विविध रंगों से सजे इस पक्षी विहार में कुल 312 घर हैं। यह 32 फुट ऊंचा है और इसमें 13 मंजिलें हैं। इसमें एक साथ 642 परिंदे रह सकते हैं। यह पक्षी विहार परिंदों को कितना रास आएगा यह तो आने वाला समय बताएगा। फिलहाल यह चर्चा का विषय जरूर बना हुआ है। साथ में एक सवाल भी जेहन में है कि आखिर इस तरह के आशियानों की जरूरत ही क्यों पड़ीं? जगह-जगह कंकरीट के जंगल खड़े हो गए शायद इसलिए। हरियाली और पेड़ गायब होते गए। एेसे में परिंदे कहां जाएं, कहां ठिकाना बनाएं। घरों से चिड़िया की चहचहाट गायब हो चली है। किसी कवि ने कहा भी है,
एक पंछी के दर्द का फसाना था,
टूटे थे पंख और उड़ते हुए जाना था
तूफान तो झेल गया
पर अफसोस वो डाल टूट गई, जिस पर उसका आशियाना था...
बहरहाल, अब चिंतन व मनन इस बात का भी होना चाहिए कि परिंदों की डाल टूटती क्यों हैं? उनका आशियाना उजड़ता क्यों हैं?
जी हां किसी शायर का यह शेर आज भी कितना मौजूं हैं। वाकई परिंदों के घर नहीं होते। वैसे परिंदों का कोई स्थायी ठिकाना भी नहीं होता। उनके लिए न तो मजहब की कोई दीवार खड़ी होती है और ना ही कोई सरहद आड़े आती है। याद होगा, नब्बे के दशक में एक फिल्म आई थी, रिफ्यूजी। इसमें अभिषेक बच्चन व करीना कपूर मुख्य भूमिका में थे। इसी फिल्म का एक गाना बेहद चर्चित हुआ था। इसके बोल थे, पंछी नदिया पवन के झौंके, कोई सरहद ना इनको रोके.. दरअसल, यह इसलिए कहा था कि परिंदों, नदियों व हवा के झौकों की कोई सरहद नहीं होती और ना ही कोई स्थायी ठिकाना। लगते हाथ इस शेर पर भी गौर फरमाइए, ये हम क्या बना बैठे, कहीं मंदिर तो कहीं मस्जिद बना बैठे, हमसे तो जात अच्छी है परिंदों की, कभी मंदिर पर जा बैठे तो कभी मस्जिद पर जा बैठे। लब्बोलुआब यही है कि परिंदों का कोई स्थायी घर नहीं होता। वो अपनी मर्जी के मालिक हैं। परिंदों का कोई धर्म व जात भी नहीं होती है। तभी तो यह शेर कहा गया है, परिंदों के यहां फिरकापरती क्यूं नहीं होती, कभी मजिस्द पे जा बैठे कभी मंदिर पे जा सब बैठे। खैर, परिंदों के ठिकाने मतलब आशियाने से याद आया कि परिंदों के लिए भी अब स्थायी आशियाने भी बनने लगे। देश में इस तरह के प्रयोग कई जगह हो चुके हैं। अब श्रीगंगानगर में भी इसी तरह का एक आशियाना बना है, जो सोमवार को शुरू हुआ। कल्याण भूमि में बनाए गए परिंदों के इस आशियाने को नाम दिया गया है पक्षी विहार। आधुनिक भाषा में इसे परिंदों का फ्लैट भी कह सकते हैं। विविध रंगों से सजे इस पक्षी विहार में कुल 312 घर हैं। यह 32 फुट ऊंचा है और इसमें 13 मंजिलें हैं। इसमें एक साथ 642 परिंदे रह सकते हैं। यह पक्षी विहार परिंदों को कितना रास आएगा यह तो आने वाला समय बताएगा। फिलहाल यह चर्चा का विषय जरूर बना हुआ है। साथ में एक सवाल भी जेहन में है कि आखिर इस तरह के आशियानों की जरूरत ही क्यों पड़ीं? जगह-जगह कंकरीट के जंगल खड़े हो गए शायद इसलिए। हरियाली और पेड़ गायब होते गए। एेसे में परिंदे कहां जाएं, कहां ठिकाना बनाएं। घरों से चिड़िया की चहचहाट गायब हो चली है। किसी कवि ने कहा भी है,
एक पंछी के दर्द का फसाना था,
टूटे थे पंख और उड़ते हुए जाना था
तूफान तो झेल गया
पर अफसोस वो डाल टूट गई, जिस पर उसका आशियाना था...
बहरहाल, अब चिंतन व मनन इस बात का भी होना चाहिए कि परिंदों की डाल टूटती क्यों हैं? उनका आशियाना उजड़ता क्यों हैं?
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