Tuesday, December 17, 2019

पैसे की बर्बादी!

टिप्पणी
सौन्दर्यीकरण के नाम पर नगर विकास न्यास एक बार फिर शिव चौक से जिला अस्पताल की सडक़ पर प्रयोग कर रहा है। यहां सडक़ के डिवाइडर पर रैलिंग लगाई जा रही है। रैलिंग लगाने का आइडिया किसका है तथा यह क्यों जरूरी समझा गया यह तो न्यास के अधिकारी बेहतर जानते हैं लेकिन सौन्दर्यीकरण के नाम पर सरकारी पैसों की जितनी बर्बादी इस जगह पर हुई है, शहर में शायद ही दूसरी जगह पर हुई हो। यह एक तरह से पैसे का दुरुपयोग ही है। इससे पहले टाइल लगाने के नाम पर इसी मार्ग पर पैसे बर्बाद किए गए थे। टाइल लगाने तथा सडक़ के एक तरफ छोटी सी दीवार बनाकर बड़ा ही हास्यास्पद काम किया गया था। सडक़ के एक तरफ डिवाइडरनुमा दीवार बनाना बड़ा ही बेतुका व अव्यावहारिक काम था। इसकी वजह से न केवल सडक़ संकरी हुई बल्कि वर्तमान में यह डिवाइडरनुमा दीवार अवैध पार्किंग की बड़ी वजह बन चुकी है। शिव चौक से जिला अस्पताल तक बजरी रेते का काम सडक़ पर खुलेआम हो रहा है। रात को सडक़ पर ट्रकों की पार्किंग की लंबी कतार लगती है। रविवार को इसी सडक़ पर दुपहिया वाहनों का बाजार सजता है। सोचिए इस तरह के हालात में यहां से गुजरने वाले वाहन चालकों की मनोस्थिति कैसी होगी।
नगर विकास न्यास को यकीनन शहर में सौन्दर्यीकरण के काम करने चाहिए लेकिन उसका जनता का कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ भी तो मिले। रैलिंग लगाने से यह सडक़ चौड़ी नहीं होगी। वैसे भी रैलिंग ठीक तरह से लगेगी भी नहीं, क्योंकि इस डिवाइइर पर बीच-बीच में ट्री गार्ड भी लगाए हुए हैं, जिनमें कइयों में पौधे सूख चुके हैं तो कई जगह मरणासन्न स्थिति में हैं। अभी तक थोड़ी सी दूरी में यह रैलिंग लगाई गई है उसमें ट्री गार्डों की जगह को छोड़ा गया है। डिवाइडर पर पोल भी लगे हैं। रैलिंग की जद में यह भी आएंगे। इन तमाम हालात से लगता नहीं है कि रैलिंग लगने की बाद इस मार्ग का सौन्दर्य बढ़ जाएगा। बेहतर होता नगर विकास न्यास के अधिकारी इस मार्ग की अन्य परेशानियों को देखते, महसूस करते और उनके समाधान का रास्ता खोजते। सरकारी पैसा खर्च करने की सार्थकता भी तभी है जब उसका इस्तेमाल जनहित के लिए किया जाए। काम जनोपयोगी हो। अगर जन ही गायब है या जन की उपेक्षा कर मनमर्जी से फैसला थोपा जाता है तो यह एक तरह से पैसे की बर्बादी ही है। कितना बेहतर होता नगर विकास न्यास अपनी नाक के नीचे बने पार्क को ठीक करने का बीड़ा ही उठा लेता।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 20 सितंबर 19 के अंक में प्रकाशित टिप्पणी।

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