Tuesday, December 17, 2019

उच्च शिक्षा की उपेक्षा क्यों

प्रसंगवश
प्रदेश में सरकार बदले भले ही नौ माह हो गए हैं लेकिन उच्च शिक्षा की सरकार ने अभी तक सुध नहीं ली है। समूचे प्रदेश का आलम यह है कि अधिकतर कॉलेज कार्यवाहक प्राचार्यों के सहारे चल रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो हकीकत चौंकाने वाली है। प्रदेश के 244 सरकारी कॉलेजों में से महज 76 कॉलेजों में ही प्राचार्य हैं, शेष 168 कॉलेज में प्राचार्य ही नहीं हैं। वहां कार्यवाहक प्राचार्यों के सहारे काम चलाया जा रहा है। सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र के जिलों के सरकारी कॉलेजों में ही प्राचार्यों के सभी पद रिक्त हैं। जोधपुर के 12, तो झालावाड़ जिले के आठ सरकारी कॉलेज कार्यवाहक प्राचार्यों के भरोसे ही चल रहे हैं।
इस प्रकार के हालात कहीं न कहीं अध्ययन में बाधक बनते हैं। व्याख्याताओं की ही मानें तो कार्यवाहक या कामचलाऊ व्यवस्था थोड़े समय के लिए तो कारगर हो सकती है, लेकिन पूरे शिक्षा सत्र में इस तरह के हालात किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराए जा सकते हैं। दूसरी बड़ी दिक्कत कार्यवाहक प्राचार्यों के समक्ष आती है। उनके लिए सहकर्मियों से काम करवाना भी किसी चुनौती से कम नहीं होता है। कॉलेजों में आए दिन होने वाले आयोजनों के लिए जिम्मेदारी तय करना कार्यवाहक प्राचार्यों के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है। मौजूदा सरकार ने स्कूलों में अध्यापकों के रिक्त पद भरने में तो काफी हद तक सफलता पाई है, लेकिन उच्च शिक्षा में अभी तक सरकार के असरदार कदम का सभी को बेसब्री से इंतजार है। वैसे पद केवल प्राचार्यों के ही नहीं, व्याख्याताओं के भी खाली हैं। सरकार को जितना जल्दी हो सके, इस तरफ ध्यान देना चाहिए ताकि अध्ययन कार्य प्रभावित न हो। साथ ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को किसी प्रकार की तकलीफ न हो। देखना होगा कि इस दिशा में सरकार कितनी जल्दी कोई कदम उठा पाती है।

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राजस्थान पत्रिका के राजस्थान के तमाम संस्करणों में 21 सितंबर को संपादकीय पेज पर प्रकाशित प्रसंगवश..।

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