37वीं लघु कथा
छावनी क्षेत्र के मुख्य दरवाजे पर शहर के प्रतिष्ठित व वरिष्ठ डाक्टर याचक की भूमिका में थे। वो बार-बार अपनी मजबूरी भी बता रहे थे लेकिन सेना पुलिस के जवानों पर कुछ असर नहीं था। जवानों ने साफ कहा, हमारे लिए सब बराबर हैं, आपको लाइन में लगना ही होगा। लंबे इंतजार के बाद आखिरकार डाक्टर का नंबर आया और वो अंदर बच्चे की स्कूल तक जाने में सफल हो गए। समय बीतता गया। एक दिन डाक्टर चिकित्सालय में अपने कैबिन में बैठे थे। अचानक सेना का जवान आया और बोला, डाक्टर साहब हमारे अधिकारी आए हैं, कृपया थोड़ा जल्दी चैक करवा दो। अचानक डाक्टर को पुराना वाकया याद आया, उन्होंने अपने मातहत को फोन लगाया और कहा जो आदमी लाइन में लगे हैं, उनको लाइन के हिसाब से ही चैक करना है। ध्यान रहे कोई लाइन न तोड़े। दो घंटे बाद सैन्य अधिकारी का नंबर आया। अब डाक्टर साहब के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। वो सोच रहे थे, इंतजार की पीड़ा कैसी होती है, आज इस सैन्य अधिकारी को कुछ तो एहसास हुआ होगा।
छावनी क्षेत्र के मुख्य दरवाजे पर शहर के प्रतिष्ठित व वरिष्ठ डाक्टर याचक की भूमिका में थे। वो बार-बार अपनी मजबूरी भी बता रहे थे लेकिन सेना पुलिस के जवानों पर कुछ असर नहीं था। जवानों ने साफ कहा, हमारे लिए सब बराबर हैं, आपको लाइन में लगना ही होगा। लंबे इंतजार के बाद आखिरकार डाक्टर का नंबर आया और वो अंदर बच्चे की स्कूल तक जाने में सफल हो गए। समय बीतता गया। एक दिन डाक्टर चिकित्सालय में अपने कैबिन में बैठे थे। अचानक सेना का जवान आया और बोला, डाक्टर साहब हमारे अधिकारी आए हैं, कृपया थोड़ा जल्दी चैक करवा दो। अचानक डाक्टर को पुराना वाकया याद आया, उन्होंने अपने मातहत को फोन लगाया और कहा जो आदमी लाइन में लगे हैं, उनको लाइन के हिसाब से ही चैक करना है। ध्यान रहे कोई लाइन न तोड़े। दो घंटे बाद सैन्य अधिकारी का नंबर आया। अब डाक्टर साहब के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। वो सोच रहे थे, इंतजार की पीड़ा कैसी होती है, आज इस सैन्य अधिकारी को कुछ तो एहसास हुआ होगा।
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