सहरा में जैसे बहार आ जाए,
बैचेन मन को करार आ जाए।
ख्वाबों-ख्यालों में गुम हों किसी के,
और सामने से जैसे यार आ जाए।
तूफां में थाम ले गर हाथ कोई,
हसंते हसंते दरिया पार हो जाए।
बेताबियों का तब आलम न पूछिए,
बेवजह-बेसबब जब प्यार हो जाए।
बेखुदी में पुकारें कभी खुदा को,
बेताब निगाहों को तेरा दीदार हो जाए।
जमाने की रुसवाइयों से डरता है 'माही',
कभी कहीं किसी से इजहार ना हो जाए।
बैचेन मन को करार आ जाए।
ख्वाबों-ख्यालों में गुम हों किसी के,
और सामने से जैसे यार आ जाए।
तूफां में थाम ले गर हाथ कोई,
हसंते हसंते दरिया पार हो जाए।
बेताबियों का तब आलम न पूछिए,
बेवजह-बेसबब जब प्यार हो जाए।
बेखुदी में पुकारें कभी खुदा को,
बेताब निगाहों को तेरा दीदार हो जाए।
जमाने की रुसवाइयों से डरता है 'माही',
कभी कहीं किसी से इजहार ना हो जाए।
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