बस यूं ही
वो जमाना हवा हुआ जब आदमी अपनी भावना अपने तक ही सीमित रखता था। भावना का इजहार नहीं करता था। वो भावना चाहे प्रेम से सबंधित हो या भक्ति से ओतप्रोत हो या फिर देशभक्ति से सराबोर। अब भावनाएं अंदर तक नहीं रहती है और ना ही कोई रखना चाहता। भावनाएं अब बाहर आने को बेताब व बेचैन रहती हैं। क्योंकि जमाना अब भावनाओं को प्रचारित करने व भुनाने का है। जो अपनी भावना का प्रदर्शन जितना ज्यादा करता है, वो उतना ही बड़ा भक्त या देशभक्त कहलाने लगा है, लिहाजा होड़ लगी है। इस भेड़चाल में कोई पीछे नहीं रहना चाहता। भक्ति व देशभक्ति का जिक्र इसीलिए, क्योंकि इन दिनों दोनों से ही वास्ता पड़ रहा है। दरअसल, जहां मैं रहता हूं, वहां बगल में एक मंदिर है और सामने नगर विकास न्यास का कार्यालय है। इन दोनों ही स्थानों पर आजकल भावनाओं का जबरदस्त प्रदर्शन हो रहा है। दरअसल, नगर विकास न्यास कार्यालय के आगे कर्मचारियों का धरना चल रहा है। कार्यालय के प्रवेश द्वार पर बाकायदा शामियाना लगा है। वहां सुबह से लेकर शाम तक आंदोलनकारी ताशपत्ती खेलते हैं। सुबह कार्यालय खुलने के समय उनकी सभा होती है। अपनी मांगों के समर्थन में वो नारेबाजी करते है, व्यवस्था को कोसते हैं। इसके बाद लाउडस्पीकर पर ऊंची आवाज में देशभक्ति के तराने गूंजते हैं। कभी ' कर चले हम फिदा जानो तन साथियो' तो कभी ' एे मेरे वतन के लोगों' बजता है। यह तमाम घटनाक्रम देखने के बाद मुझे एेसा लगने लगा कि कार्यालय आने वाले लोग शायद आंखों पर पट्टी बांधकर आते हैं या फिर आंखें मूंदकर आते है, इसलिए उनको धरने पर बैठे लोग दिखाई नहीं देते। या फिर इन लोगों को थोड़ा ऊंचा सुनता है, और इनको सुनाने के लिए आंदोलनकारियों ने लाउडस्पीकर लगा रखा है। खैर, अंदर बैठे लोग काम करना चाहते या आंदोलन करने वालों की मांगें ही एेसी हैं यह अलग विषय है लेकिन आंदोलन जारी है। यहां थोड़ी सी राहत वाली बात यह है कि लाइडस्पीकर वाला काम थोड़ी देर के लिए ही होता हे। अनवरत नहीं चलता। हालांकि भावनाओं या पीड़ाओं का इजहार या समाधन आंदोलनकारियों व कार्यालय के बीच ही होना है। लेकिन आंदोलनकारियों को लगता है कि काम शायद लाउडस्पीकर लगाने से जल्दी होगा।
कमोबेश यही हाल मंदिर का है। वहां तो एक किलोमीटर तक सड़क पर स्पीकर लगा दिए गए हैं। सामने सरकारी अस्पताल व आसपास कई निजी नर्सिंग होम है, इसके बावजूद ऊंची आवाज में लाइडस्पीकर बजते हैं। एक ही तरह का जाप होता है। गाने वाले शिफ्ट के हिसाब से बदल जाते हैं लेकिन जाप अनवरत जारी है। वैसे मामला भक्त व भगवान से जुड़ा है। कहा जाता है कि भक्ति एकांत में होती है। भक्त शांत मन से भी याद कर ले भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। फिर भी लाउड स्पीकर बजता है। शायद इसलिए क्योंकि लाइडस्पीकर के बिना भावनाओं का इजहार बेहतर तरीक से नहीं होता। फिलहाल भक्तों व देशभक्तों को मेरा सलाम। लाउड स्पीकर बजने पर दो चार लाइन पांच दिन पहले एफबी पर क्या लगाई, कई भक्तों का तो जैसे पारा ही चढ़ गया। फलां धर्म में यह, फलां धर्म में वो, आप उनको तो कुछ कहते नहीं और हिन्दू धर्म पर चोट करते हो। वाकई लोगों के विचार व उनके प्रकट करने के तरीके से मैं हैरान था। अरे भई मैं जिस चीज से प्रभावित हूं, पहले उसी की ही तो बात करूंगा। मैं जमाने को बदलने की कैसे सोच सकता हूं जब तक खुद ही ना बदलूं। और खुद बदलने के लिए मेरे जैसा भूल से भी कोई पहल करता है तो लोग टूट के पड़ते हैं गोया मौके की तलाश में ही थे। अजब जमाने की गजब तस्वीर इससे अलग क्या होगी भला। खैर, बात भावनाओं के इजहार की थी। किसी ने लाउड स्पीकर लगाकर प्रदर्शित की तो मैंने लिख कर कर दी। वैसे भी देश में इन दिनों बोलबाला भी भक्तों और देशभक्तों का ही है। फिलहाल तो दोनों की तूती जमकर बोल रही है। एेसे में मेरी यह हल्की सी गुस्ताखी माफ हो। अब सब मिलकर मिलकर भक्तों व देशभक्तों के लिए एक जयकारा लगाते हैं। भक्त और भगवान की जय। देशभक्त और देश की जय।
वो जमाना हवा हुआ जब आदमी अपनी भावना अपने तक ही सीमित रखता था। भावना का इजहार नहीं करता था। वो भावना चाहे प्रेम से सबंधित हो या भक्ति से ओतप्रोत हो या फिर देशभक्ति से सराबोर। अब भावनाएं अंदर तक नहीं रहती है और ना ही कोई रखना चाहता। भावनाएं अब बाहर आने को बेताब व बेचैन रहती हैं। क्योंकि जमाना अब भावनाओं को प्रचारित करने व भुनाने का है। जो अपनी भावना का प्रदर्शन जितना ज्यादा करता है, वो उतना ही बड़ा भक्त या देशभक्त कहलाने लगा है, लिहाजा होड़ लगी है। इस भेड़चाल में कोई पीछे नहीं रहना चाहता। भक्ति व देशभक्ति का जिक्र इसीलिए, क्योंकि इन दिनों दोनों से ही वास्ता पड़ रहा है। दरअसल, जहां मैं रहता हूं, वहां बगल में एक मंदिर है और सामने नगर विकास न्यास का कार्यालय है। इन दोनों ही स्थानों पर आजकल भावनाओं का जबरदस्त प्रदर्शन हो रहा है। दरअसल, नगर विकास न्यास कार्यालय के आगे कर्मचारियों का धरना चल रहा है। कार्यालय के प्रवेश द्वार पर बाकायदा शामियाना लगा है। वहां सुबह से लेकर शाम तक आंदोलनकारी ताशपत्ती खेलते हैं। सुबह कार्यालय खुलने के समय उनकी सभा होती है। अपनी मांगों के समर्थन में वो नारेबाजी करते है, व्यवस्था को कोसते हैं। इसके बाद लाउडस्पीकर पर ऊंची आवाज में देशभक्ति के तराने गूंजते हैं। कभी ' कर चले हम फिदा जानो तन साथियो' तो कभी ' एे मेरे वतन के लोगों' बजता है। यह तमाम घटनाक्रम देखने के बाद मुझे एेसा लगने लगा कि कार्यालय आने वाले लोग शायद आंखों पर पट्टी बांधकर आते हैं या फिर आंखें मूंदकर आते है, इसलिए उनको धरने पर बैठे लोग दिखाई नहीं देते। या फिर इन लोगों को थोड़ा ऊंचा सुनता है, और इनको सुनाने के लिए आंदोलनकारियों ने लाउडस्पीकर लगा रखा है। खैर, अंदर बैठे लोग काम करना चाहते या आंदोलन करने वालों की मांगें ही एेसी हैं यह अलग विषय है लेकिन आंदोलन जारी है। यहां थोड़ी सी राहत वाली बात यह है कि लाइडस्पीकर वाला काम थोड़ी देर के लिए ही होता हे। अनवरत नहीं चलता। हालांकि भावनाओं या पीड़ाओं का इजहार या समाधन आंदोलनकारियों व कार्यालय के बीच ही होना है। लेकिन आंदोलनकारियों को लगता है कि काम शायद लाउडस्पीकर लगाने से जल्दी होगा।
कमोबेश यही हाल मंदिर का है। वहां तो एक किलोमीटर तक सड़क पर स्पीकर लगा दिए गए हैं। सामने सरकारी अस्पताल व आसपास कई निजी नर्सिंग होम है, इसके बावजूद ऊंची आवाज में लाइडस्पीकर बजते हैं। एक ही तरह का जाप होता है। गाने वाले शिफ्ट के हिसाब से बदल जाते हैं लेकिन जाप अनवरत जारी है। वैसे मामला भक्त व भगवान से जुड़ा है। कहा जाता है कि भक्ति एकांत में होती है। भक्त शांत मन से भी याद कर ले भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। फिर भी लाउड स्पीकर बजता है। शायद इसलिए क्योंकि लाइडस्पीकर के बिना भावनाओं का इजहार बेहतर तरीक से नहीं होता। फिलहाल भक्तों व देशभक्तों को मेरा सलाम। लाउड स्पीकर बजने पर दो चार लाइन पांच दिन पहले एफबी पर क्या लगाई, कई भक्तों का तो जैसे पारा ही चढ़ गया। फलां धर्म में यह, फलां धर्म में वो, आप उनको तो कुछ कहते नहीं और हिन्दू धर्म पर चोट करते हो। वाकई लोगों के विचार व उनके प्रकट करने के तरीके से मैं हैरान था। अरे भई मैं जिस चीज से प्रभावित हूं, पहले उसी की ही तो बात करूंगा। मैं जमाने को बदलने की कैसे सोच सकता हूं जब तक खुद ही ना बदलूं। और खुद बदलने के लिए मेरे जैसा भूल से भी कोई पहल करता है तो लोग टूट के पड़ते हैं गोया मौके की तलाश में ही थे। अजब जमाने की गजब तस्वीर इससे अलग क्या होगी भला। खैर, बात भावनाओं के इजहार की थी। किसी ने लाउड स्पीकर लगाकर प्रदर्शित की तो मैंने लिख कर कर दी। वैसे भी देश में इन दिनों बोलबाला भी भक्तों और देशभक्तों का ही है। फिलहाल तो दोनों की तूती जमकर बोल रही है। एेसे में मेरी यह हल्की सी गुस्ताखी माफ हो। अब सब मिलकर मिलकर भक्तों व देशभक्तों के लिए एक जयकारा लगाते हैं। भक्त और भगवान की जय। देशभक्त और देश की जय।
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