Tuesday, December 17, 2019

संकट में कपास किसान

प्रसंगवश
न रमा कपास के बजाय श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों में बीटी कपास का रकबा तो बढऩे के बावजूद बीटी कपास की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित नहीं हो रही। बीटी कपास का रकबा बढऩे का प्रमुख कारण यही था क्योंकि इसमें रोग कम लगते हैं और कीटनाशकों का छिड़काव भी कम करना पड़ता है। नरमा कपास में काश्तकार को आठ से दस बार कीटनाशक का छिड़काव करना पड़ता था। बीटी कपास का बीज भले की महंगा हो लेकिन छिड़काव की मशक्कत से मिली राहत ने काश्तकारों ने बीटी कपास की खेती को अपनाया। भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्ष 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने का भरोसा दे रहे हों लेकिन मौजूदा हालात से लगता नहीं कि किसानों को दिखाया गया यह सपना पूरा हो पाएगा। कृषि आदानों में बीज, खाद और कीटनाशकों की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ डीजल व चुगाई आदि का खर्चा भी बढ़ता जा रहा है।
पिछले साल भारतीय कपास निगम ने मीडियम स्टेपल कपास का समर्थन मूल्य 5150 रुपए तथा लोंग स्टेपल कपास का मूल्य 5450 रुपए प्रति क्विंटल तय किया था। इस बार यह मूल्य दोनों ही श्रेणियों में 105-105 रुपए बढ़ाया गया है। फिर भी यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। दूसरी विसंगति यह है कि कई बार बाजार मूल्य अधिक होने पर भारतीय कपास निगम कपास की व्यावसायिक खरीद ही नहीं करता। सफेद सोने के नाम से पहचान रखने वाली कपास का अन्य कृषि जिंसों की तरह से भंडारण नहीं हो सकता। ऐसे में इसे निकालते ही मंडी में लाना मजबूरी होती है। मंडियों में नरमा-कपास की आवक शुरू हो चुकी है, अक्टूबर-नवंबर में यह काम जोर पकड़ेगा। किसान मांग कर रहे हैं कि भारतीय कपास निगम को बाजार दर पर व्यावसायिक खरीद करनी चाहिए। ऐसा करने से बाजार व निगम के बीच भावों की प्रतिस्पर्धा होगी, जिसका फायदा किसानों को होगा। ऐसा संभव हुआ तभी किसानों को अपनी जिंस का लागत मूल्य सही मुनाफे के साथ मिल पाएगा।
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राजस्थान पत्रिका के संपादकीय पेज पर समस्त राजस्थान में 28 सितंबर के अंक में प्रकाशित मेरा प्रसंगवश...

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