बस यूं.ही
श्रीगंगानगर शहर की चर्चा में अगर यहां के रेलवे स्टेशन को भी शामिल कर लिया जाए तो मेरी अतीत की कई यादें जवान हो जाती हैं। श्रीगंगानगर के रेलवे स्टेशन से जुड़ाव हुआ तो बस होता ही चला गया। 2001 में पहली बाइलाइन खबर श्रीगंगानगर रेलवे स्टेशन की वजह से ही मिली थी। यहां रहने वाले एक यायावर व निशक्त की कलाकारी को देखा तो उसे शब्दों में ढाला। शीर्षक था 'गजब का हुनरमन्द'। हाथ कोहनी तक कटे होने के बावजूद उस यायावर की कपड़े पर कशीदाकारी गजब की थी।
इसी खबर का जिक्र भोपाल से प्रकाशित होने वाली इन हाउस पत्रिका में भी हुआ था। संयोग देखिए मेरे किराये का मकान भी रेलवे स्टेशन के नजदीक ही था। और आफिस भी आजाद टाकीज की फाटक से पटरियां पार करने के बाद पुलिस लाइन की सामने वाली गली में था। रात दो ढाई बजे आफिस से निकलकर पुलिस कंट्रोल रूम के बगल में स्थित दुकान से चाय पीना और अलसुबह तक वहीं पर टीवी देखना रोजमर्रा का हिस्सा था। पुलिस कंट्रोल.रूम भी रेलवे स्टेशन.के ठीक सामने है।
एक और बड़ी खबर भी रेलवे स्टेशन से ही संबधित थी। हालांकि प्राथमिक सूचना चाय वाले ने दी थी। उसने बताया कि शेखावतजी , स्टेशन पर एक महिला ने बच्चे को जन्म दिया। उसकी बात सुन मैं स्टेशन की ओर दौड़ पड़ा। प्लेटफॉर्म एक पर विमंदित महिला अखबार पर रखे पकोड़े खा रही थी जबकि उससे पैदा हुआ बच्चा रो रहा था, लेकिन उसको संभालने की चिंता महिला को नहीं थी। गर्मी का मौसम था। सन 2002 का रहा होगा। यह नजारा देख मैं सहम गया था....उस प्रसूता को न खुद की सुध थी न उस नवजात की। मैं अपने एक साथी के साथ पुलिस चौकी गया...वहां.बैठे पुलिस वाले ने पहले तो हमारा नाम पता पूछा और फिर आफिस फोन करके हमारी जानकारी ली। इसके बाद उसने कहा, महिला आपकी क्या लगती है तथा यहां तो रोज ही ऐसा होता है, वो किस किस का दुख दूर करेंगे। निराशाजनक जवाब पाकर हम चौकी से हैड मोहर्रिर कक्ष की तरफ बढे। वहां पंखा तेज गति से चल रहा था। टेबल पर रखी अश्लील साहित्य की पुस्तक के पन्ने पंखें की हवा से फड़फड़ा रहे थे। सीट खाली थी। वहां कोई नहीं था। इसके बाद हम वापस लौटकर.वहीं आए और थानाधिकारी के बारे पूछा तो बताया गया वो अपने आवास चले गए और आराम फरमा रहे हैं। रात के करीब साढे तीन बजे चुके थे। पुलिस की ओर से किसी तरह की संवेदनशीलता न दिखाने पर हमने सारा प्रकरण संपादकजी को बता दिया। हम दोनों ही डेस्क के आदमी थे। संपादकजी को फोन करने के बाद तो सारा मामला ही घूम गया। कलक्टर- एसपी तक फोन हो गए। आवास में आराम फरमाने वाले थानाधिकारी स्वयं अपनी जीप चलाकर लाए और महिला को सहारा देकर उठाकर अपनी जीप की अगली सीट पर बैठाया और अस्पताल भर्ती करवा कर आए। सुबह हो चुकी थी, एक सुखद अनुभूति के साथ हम घर लौट आए। दूसरे दिन इस घटनाक्रम पर पूरा पेज प्रकाशित हुआ था। खबर का शीर्षक भी वो ही था, जो सिपाही ने बोला था 'तेरी के लागै सै'। खैर, खबर के अगले दिन समूचे थाने पर गाज गिरी थी। जब भी स्टेशन जाता हूं...यह घटना बरबस याद आ जाती है। कल एक परिचित को छोड़ने स्टेशन गया...तब फिर वह वाकया याद.आ गया। यह भी संयोग है कि श्रीगंगानगर पहली बार आया तो भी ट्रेन के माध्यम से ही आना हुआ था। तब जयपुर से श्रीगंगानगर आया था। खैर, कल चीकू साथ था तो उससे दो चार फोटो क्लिक करवा लिए।
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