Tuesday, December 17, 2019

ग्रेटा इज ग्रेट -खेलने की उम्र में छेड़ी पर्यावरण बचाने की मुहिम



फेस ऑफ द वीक: ग्रेटा थनबर्ग
‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं’। इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग ने। ग्रेटा अभी मात्र सोलह साल की है । यह वह उम्र होती है जब बच्चे के खेलने-कूदने और पढ़ाई-लिखाई के दिन होते हैं। साथ ही अपने बेहतर भविष्य के सपने भी देखता है। इन तीनों के उलट ग्रेटा ने जो काम किया है उसने समूचे विश्व का ध्यान खींचा है। उसने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की मुहिम की मशाल थाम रखी है। इसीलिए ग्रेटा को ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हाल ही एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 'एम्बेसडर ऑफ कांशंस अवार्ड 2019 से नवाजा है। उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया है। अगर उनको नोबेल पुरस्कार मिलता है तो वे सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली शख्सियत बन जाएंगी। इसके पहले मलाला युसुफजई ने सिर्फ 17 वर्ष की उम्र में नोबेल पुरस्कार जीता था।
ग्रेटा थनबर्ग का जन्म 2003 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ। ग्रेटा के पिता अभिनेता और लेखक है जबकि मां आपेरा गायिका हैं। ग्रेटा ने एक बार फ्लोरिडा के स्कूल के बच्चों को हथियारों पर नियंत्रण के लिए मार्च करते देखा था। ग्रेटा को वहीं से प्रेरणा मिली और तभी से उसने पर्यावरण को बचाने की मुहिम शुरू करने का ठान लिया। ग्रेटा ने सिर्फ नौ साल की उम्र में क्लाइमेट एक्टिविजम में हिस्सा लिया था, जब वे तीसरी कक्षा में पढ़ रही थीं।
अपनी पढ़ाई की फिक्रछोड़ पर्यावरण की चिंता करने वाली ग्रेटा विश्व के नेताओं से धरती बचाने की अपील कर रही है। ग्रेटा ने 9 सितंबर 2018 को आम चुनाव होने तक स्कूल न जाने का फैसला किया। इतना ही नहीं जलवायु परिवर्तन के लिए उसने संसद के सामने अकेले ही हड़ताल शुरू कर दी। ग्रेटा ने अपने दोस्तों व सहपाठियों से इस हड़ताल में शामिल होने की अपील की, लेकिन उसे किसी का साथ नहीं मिला। यहां तक कि ग्रेटा के माता-पिता ने भी उसको ऐसा करने से रोकने की कोशिश की, लेकिन साहसी व जज्बे की धनी ग्रेटा रुकी नहीं। उसने ‘स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट मूवमेंट’ की स्थापना की।
इसके बाद उसने अपने से हाथ बैनर पेंट किया और स्वीडन की सडक़ों पर निकल पड़ी। वह सडक़ों पर घूमने लगी। जब लोगों ने इस बालिका को इस तरह घूमते देखा तो वे पर्यावरण के सचेत हुए। जल्द ही हालात बदलने लगे। जो लोग कल तक ग्रेटा के साथ देने से मना रहे थे वो खुलकर उसके साथ हो लिए। ग्रेटा ही यह मुहिम चूंकि समूची दुनिया के लिए है, लिहाजा अन्य देशों के बच्चे भी उसके समर्थन में आ गए। तभी तो दिसंबर 2018 तक विश्व के 270 शहरों के बीस हजार बच्चों ने ग्रेटा की हड़ताल का समर्थन किया। वर्तमान में करीब एक लाख बच्चे ग्रेटा की इस मुहिम से जुड़े हुए हैं। ग्रेटा पर्यावरण की वजह से हवाई यात्रा नहीं करती है, वो ट्रेन से ही सफर करती हैं। अपने अभियान से ग्रेटा अपने माता-पिता का मानस बदलने में भी सफल हो गई। ग्रेटा की मां ने भी बेटी से प्रेरित होकर विमान में सफर करना छोड़ दिया है। ग्रेटा के माता-पिता ने मांसाहार को भी त्याग दिया है।
पीएम मोदी को भेजा संदेश
ग्रेटा ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी एक वीडियो के जरिए संदेश भेजा था। स्वीडन की इस छात्रा ने जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर कदम उठाने की मांग की थी। पर्यावरण प्रदूषण की भयावहता यूएन की एक रिपोर्ट से साफ होती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर के 10 लोगों में से 9 लोग जहरीली हवा लेने को मजबूर हैं। हर साल 70 लाख मौतें वायु प्रदूषण की वजह से होती है। इन 70 लाख लोगों में 40 लाख का आंकड़ा एशिया से आता है। ग्रेटा का मानना है कि जहरीली हवा को पूरी तरह से साफ नहीं किया जा सकता लेकिन उसे सांस लेने लायक तो बनाया ही जा सकता है। ग्रेटा मंचों पर जाकर भाषण देती हैं और लोगों को जागरूक करती हैं। वह सोशल मीडिया के माध्यम से भी अपनी बात लोगों तक पहुंचाती हैं, इसके लिए उन्होंने ट्विटर को चुना।
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राजस्थान पत्रिका/ पत्रिका के तमाम संस्करणों में 21 सितंबर के अंक में संपादकीय पेज पर प्रकाशित मेरा आलेख। 

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