Tuesday, December 17, 2019

मनमर्जी की कीमतें!

टिप्पणी
गांधी जयंती पर प्रदेश में हानिकारक तत्वों वाले पान मसालों पर प्रतिबंध की घोषणा मात्र से ही इनके विक्रेताओं में हडक़ंप मचा हुआ है। घोषणा के बाद शायद ही किसी पान मसाले की जांच हुई हो लेकिन इसकी कीमत अप्रत्याशित रूप से जरूर बढ़ गई। पांच रुपए में बिकने वाला पान मसाले का पाउच सात से आठ रुपए तक में बिक रहा है। कीमतों में उछाल की वजह क्या है और सरकार ने बढ़ी कीमतों पर नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाए हैं? इसे लेकर अभी तक कोई स्पष्ट गाइड लाइन तय ही नहीं है। जाहिर सी बात है सरकार की घोषणा का उल्टा असर पान मसाला खाने वालों की जेब पर हो रहा है। पान मसाला हानिकारक है या नहीं, यह तो प्रयोगशाला में जांच के बाद तय होगा। जांच के बाद ही उसकी बिक्री होगी या नहीं यह फैसला होगा, लेकिन बिना जांच के ही कीमतों में बढ़ोतरी हो जाने से राज्य सरकार के फैसले पर सवालिया निशान जरूर उठ रहे हैं। सवाल उठने स्वाभाविक भी हैं, क्योंकि प्रदेश में खाद्य पदार्थों में मिलावट की जांच करने वालों का अमला ही पूरा नहीं है। फिर भी कोई भूला-भटका आधे अधूरे अमले के साथ कहीं पर खाद्य पदार्थों की जांच भी करता है, तो उसकी रिपोर्ट कितने समय बाद आती है और किस तरह की आती है, यह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है। एेसे हालात में हानिकारक पान मसालों की जांच ईमानदारी से हो जाएगी और फिर उन पर प्रतिबंध भी लग जाएगा, यह सोचना अभी जल्दबाजी होगी।
सवाल यह भी है कि इन पान मसालों की जांच किसी की शिकायत पर होगी या सरकार अपने स्तर पर ही कोई अभियान चलाएगी या फिर औचक छापामार कार्रवाई करेगी। अभी कुछ भी तय नहीं है। प्रशासनिक स्तर पर अक्सर कई मामलों में सुनने को मिल जाता है कि ‘शिकायत आएगी तो कार्रवाई की जाएगी। ’लेकिन इस मामले में शिकायत करेगा कौन। पान मसाला खाने वाले तो शिकायत करने से रहे। खैर, हानिकारक पान मसालों की जांच तो फिर भी लंबी प्रक्रिया है। राज्य सरकार तो इससे भी आसान कार्रवाई तक नहीं कर पा रही है। प्रदेश में शराब के रात आठ बजे बाद न बिकने के निर्णय की धज्जियां हर गली, नुक्कड़ व गांव में उड़ रही है। शराब ठेकों पर रातभर शराब बिकती है। ज्यों-ज्यों रात बढ़ती है त्यों-त्यों कीमतें भी बढ़ती जाती है। प्रिंट रेट से ज्यादा कीमत पर बिक्री तो पूरे प्रदेश की कहानी है। चूंकि यहां भी सुरा प्रेमियों को बढ़ी कीमतों से शिकायत नहीं है, लिहाजा सरकार व विभाग भी गंभीर नहीं हैं।
बहरहाल, पान मसालों की कीमत बढ़ जाना भी इस आशंका को जन्म दे रहा है कि कहीं यह भी शराब की तरह अधिक मूल्य पर ही न बिकने लग जाए? जो सरकार शराब की निर्धारित समय के बाद बिक्री नहीं रोक पा रही। प्रिंट रेट से ज्यादा कीमत वसूलने पर अंकुश नहीं लगा पा रही। वो पान मसालों की बढ़ी कीमत पर रोक लगा देगी, लगता नहीं है। एेसा इसलिए भी नहीं लगता, क्योंकि शराब की दुकानें तो बकायदा लाइसेंसशुदा हैं और उनकी संख्या गिनती में है जबकि पान मसालों की दुकानों का तो कोई लाइसेंस ही नहीं है और न ही उनकी कोई गिनती। और अगर सरकार वाकई आमजन के स्वास्थ्य के प्रति गंभीर है तो हानिकारक पान मसालों के उत्पादन पर ही रोक ही क्यों नहीं लगा देती। फिलहाल तो यह सब दूर की बातें ही लगती हैं। बाजार में मनमर्जी की कीमतें हैं और राज्य सरकार खामोश।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगागनर संस्करण में 9 अक्टूबर 19 के अंक में प्रकाशित।

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