पिछले चार दिन से झुंझुनूं के प्राइवेट बस स्टैंड (ताल) से चलने वाली बसों का आवागमन बंद है। बसें बंद होने की प्रमुख वजह प्राइवेट बस स्टैंड को ताल से खेमी शक्ति मंदिर के पास शिफ्ट करने का निर्णय है। पिछले सात साल से ज्यादा समय से खेमीशक्ति के पास बस स्टैंड बनकर तैयार है लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति और वोट बैंक के नफे नुकसान के चक्कर में यह मामला सिरे नहीं चढ़ा। दिन प्रतिदिन बढ़ते यातायात व शहर के अंदरूनी इलाकों में लगने वाले जाम से पार पाने के लिए करीब दशक भर पहले एक प्रयोग किया गया था। प्रयोग काफी कारगर रहा था। दरअसल गांधी चौक से मल्टीपर्पज स्कूल जो अब शहीद जेपी जानू के नाम से जानी जाती है तक सुबह-शाम दो घंटे वन वे किया गया था। इसका भी एक बार दबे स्वर में विरोध हुआ था लेकिन जब लोगों के समझ में आया कि यह फैसला उनकी सहुलियत है लिए तो फिर यह सबकी आदत में आ गया। सुबह-शाम दो-दो घंटे के वन वे से आवागमन काफी सुगम हो चला है। चूंकि वाहनों की संख्या दिनोदिन बढ़ रही है, इस कारण पंचदेव से लेकर ताल तक दिन भर जाम बना रहता है। इसी जाम को खत्म करने व आवागमन सुचारू करने के मकसद से झुंझुनूं जिला कलक्टर ने बस स्टैंड खेमी शक्ति के पास शिफ्ट करने के लिए हरी झंडी दे दी। तब से ही इसका विरोध होना शुरू हो गया। ताल के रेहड़ी वाले व दुकानदार ग्राहकी पिटने का हवाला देकर आंदोलन कर रहे हैं लेकिन बस ऑपरेटर्स का आंदोलन में शामिल होकर बसों का संचालन रोकना समझ से बाहर है। बस स्टैंड शिफ्ट करने के फैसले से पता नहीं उनको क्या भय सता रहा है। वैसे भी बस स्टैंड शिफ्ट होने से उनको प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से किसी प्रकार का नुकसान नहीं है। और भविष्य में नुकसान होगा ऐसा भी नहीं लगता, क्योंकि ग्रामीण बसें उस रुट पर चलती हैं, जहां रोडवेज बसें न के बराबर हैं। एेसे में जिसको गांव से शहर आना जाना है पहले की तरह इन्हीं बसों में आएगा जाएगा।इसलिए बस आपरेटर्स की मांग बेतूकी है। अपने गांव से झुंझुनूं आने वाला ताल उतरे या खेमी शक्ति उससे बस आपरेटर्स को कोई फायदा या नुकसान नहीं है। जब ऐसा है तो फिर बस ऑपरेटर्स खुद का हित देखने के बजाय दूसरों के दुख में क्यों दुबले हुए जा रहे हैं। वो खुद का नुकसान करके तथा जनता को परेशान करके जबरन हितैषी क्यों बन रहे हैं। रेहड़ी वालों को एक स्थायी जगह आवंटित की जा सकती है। रहा मामला दुकानदारों का तो उनको यह नहीं भूलना चाहिए कि ताल में बस से उतर कर लोग गांधी चौक, नेहरू बाजार, और आगे जेपी जानू स्कूल तक आबाद दुकानों पर भी तो बिना बस के ही जाते हैं। वह वहां जाया सकता है तो ताल में भी आया जा सकता है।.ताल.तो खेमी शक्ति बस स्टेंड के सबसे करीब भी रहेगा।
खैर, बस स्टैंड के विरोध के साथ अब समर्थन में भी लोग सामने आने लगे हैं। यह होना भी चाहिए। यह फैसला शहर हित में है। यह बढ़ते शहर के यातायात दबाव को कम करने के लिए जरूरी है। अगर आज किसी अच्छे फैसले का समर्थन नहीं किया गया तो एक गलत परंपरा शुरू होने का खतरा हमेशा बना रहेगा। फिर तो कोई भी भीड़ एकत्रित कर दवाब बनाकर अपनी बातें मनवाता रहेगा। आज सारे के सारे जनप्रतिनिधि भी वोटों की राजनीति के चक्कर में चुप्पी साधे बैठे हैं। मतलब सही को सही कहने का साहस उनमें भी नहीं रहा। इसमें कोई दो राय नहीं कि, विकास के लिए बदलाव जरूरी है। यह बात आंदोलन करने वालों को समझनी चाहिए। उनको तात्कालिक नुकसान के बजाय दूरगामी फायदे को देखना चाहिए। धन्यवाद के काबिल हैं वो लोग जो इस बस स्टैंड को शिफ्ट करने के समर्थन में रैली निकाल रहे हैं।
बहरहाल, बस की हड़ताल से आम लोगों को रही है तकलीफ को भी जिला कलक्टर ने शिद्दत से महसूस किया है। उन्होंने रोडवेज प्रबंधन से बात करके ग्रामीण रुटों पर रोडवेज बसें संचालित करने को कहा है। यह सही भी है। आजकल हड़ताल किसी की होती है लेकिन कंधा किसी दूसरे का इस्तेमाल करके अपना उल्लू सीधा करने की परिपाटी सी चल पड़ी है। ग्रामीण रुटों पर रोडवेज बसों के संचालन से यह परिपाटी भी टूटेगी। जिला कलक्टर का निर्णय शहर हित में है। इस फैसले से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से लाभान्वित होने वालों की संख्या विरोध करने वालों से कहीं ज्यादा है, बहुत ज्यादा है, लिहाजा बहुमत जिला कलक्टर के फैसले के साथ है। फिर भी जरूरी है उनके फैसले के समर्थन में ज्यादा से ज्यादा लोग उठ खड़े हों ताकि आमजन को तकलीफ में डालकर दबाव की रणनीति से अपनी मांगें मनवाने वाले अपने मंसूबों में कभी भी कामयाब न हो। चूंकि मैं भी इस जिले का जन्मा जाया हूं तथा पांच साल झुंझुनूं प्रवास के दौरान इस समस्या को न केवल नजदीक से देखा है बल्कि भोगा भी है। इसलिए मैं जिला कलक्टर के फैसले स्वागत करता हूं। मैं भी चाहता हूं कि प्राइवेट बस स्टैंड खेमी शक्ति मंदिर के पास शिफ्ट हो।
आखिर में एक बात और मेरे गांव से झुंझुनूं जाने वाली प्राइवेट बसें भी बंद हैं। बसों की हड़ताल से तकलीफ मेरे गांव के भाई-बंधुओं तथा इस रुट के अन्य लोगों को भी हो रही है। इतना ही नहीं मेरे गांव वाले रूट पर रोडवेज बसों की भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हुई लेकिन इसके बावजूद मैं बस स्टैंड को शिफ्ट करने के फैसले के साथ हूं। क्योंकि मैं.सही को सही कहने का हिमायती तथा सच का सारथी हमेशा रहा हूं।
खैर, बस स्टैंड के विरोध के साथ अब समर्थन में भी लोग सामने आने लगे हैं। यह होना भी चाहिए। यह फैसला शहर हित में है। यह बढ़ते शहर के यातायात दबाव को कम करने के लिए जरूरी है। अगर आज किसी अच्छे फैसले का समर्थन नहीं किया गया तो एक गलत परंपरा शुरू होने का खतरा हमेशा बना रहेगा। फिर तो कोई भी भीड़ एकत्रित कर दवाब बनाकर अपनी बातें मनवाता रहेगा। आज सारे के सारे जनप्रतिनिधि भी वोटों की राजनीति के चक्कर में चुप्पी साधे बैठे हैं। मतलब सही को सही कहने का साहस उनमें भी नहीं रहा। इसमें कोई दो राय नहीं कि, विकास के लिए बदलाव जरूरी है। यह बात आंदोलन करने वालों को समझनी चाहिए। उनको तात्कालिक नुकसान के बजाय दूरगामी फायदे को देखना चाहिए। धन्यवाद के काबिल हैं वो लोग जो इस बस स्टैंड को शिफ्ट करने के समर्थन में रैली निकाल रहे हैं।
बहरहाल, बस की हड़ताल से आम लोगों को रही है तकलीफ को भी जिला कलक्टर ने शिद्दत से महसूस किया है। उन्होंने रोडवेज प्रबंधन से बात करके ग्रामीण रुटों पर रोडवेज बसें संचालित करने को कहा है। यह सही भी है। आजकल हड़ताल किसी की होती है लेकिन कंधा किसी दूसरे का इस्तेमाल करके अपना उल्लू सीधा करने की परिपाटी सी चल पड़ी है। ग्रामीण रुटों पर रोडवेज बसों के संचालन से यह परिपाटी भी टूटेगी। जिला कलक्टर का निर्णय शहर हित में है। इस फैसले से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से लाभान्वित होने वालों की संख्या विरोध करने वालों से कहीं ज्यादा है, बहुत ज्यादा है, लिहाजा बहुमत जिला कलक्टर के फैसले के साथ है। फिर भी जरूरी है उनके फैसले के समर्थन में ज्यादा से ज्यादा लोग उठ खड़े हों ताकि आमजन को तकलीफ में डालकर दबाव की रणनीति से अपनी मांगें मनवाने वाले अपने मंसूबों में कभी भी कामयाब न हो। चूंकि मैं भी इस जिले का जन्मा जाया हूं तथा पांच साल झुंझुनूं प्रवास के दौरान इस समस्या को न केवल नजदीक से देखा है बल्कि भोगा भी है। इसलिए मैं जिला कलक्टर के फैसले स्वागत करता हूं। मैं भी चाहता हूं कि प्राइवेट बस स्टैंड खेमी शक्ति मंदिर के पास शिफ्ट हो।
आखिर में एक बात और मेरे गांव से झुंझुनूं जाने वाली प्राइवेट बसें भी बंद हैं। बसों की हड़ताल से तकलीफ मेरे गांव के भाई-बंधुओं तथा इस रुट के अन्य लोगों को भी हो रही है। इतना ही नहीं मेरे गांव वाले रूट पर रोडवेज बसों की भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हुई लेकिन इसके बावजूद मैं बस स्टैंड को शिफ्ट करने के फैसले के साथ हूं। क्योंकि मैं.सही को सही कहने का हिमायती तथा सच का सारथी हमेशा रहा हूं।
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