Saturday, July 27, 2019

सीनाजोरी

35वीं लघु कथा
'अरे सात नहीं दस रुपए निकाल, पूरे दस ही लगेंगे।' रोडवेज बस परिचालक तैश में आकर बोला तो सवारी को भी गुस्सा आ गया। उसने झट से दस रुपए का नोट निकाला और परिचालक को थमाते हुए कहा, 'यह लीजिए दस रुपए, अब आप टिकट दे दीजिए।' 'अरे टिकट किस बात की। टिकट लेगा तो फिर बीस रुपए लगेंगे। तेरे को इतनी रात को बीच से बैठाया है। यहां कोई स्टैंड नहीं है। शुक्र मना तेरे दस कम लग रहे हैं। वरना टिकट पिछले स्टैंड से बनेगा। ' परिचालक कड़क आवाज में बोला। सवारी को अब कोई बात नहीं सूझ रही थी। उसने पलट कर इतना भी नहीं पूछा कि जब निर्धारित स्टैंड ही नहीं था तो आपने बस रोकी ही क्यों? लेकिन ज्यादा पैसे ना लगे इस डर व लालच के चलते वह परिचालक की सरेआम चोरी और सीनाजोरी को न चाहते हुए भी बर्दाश्त करता रहा।

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