प्रसंगवश
किसानों का कर्ज माफ करने के वादे के साथ प्रदेश में सत्ता में आई कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में किसानों का कितना भला हो रहा है, इस बात की चुगली गाहे-बगाहे होने वाली किसानों से संबंधित अप्रिय घटनाएं करती रहती हैं। श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले के किसानों से संबंधित मामलों से इसको बखूबी समझा जा सकता है। कृषि बाहुल्य जिले श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ को वैसे तो सरसब्ज व धान का कटोरा कहा जाता है लेकिन बीते पांच माह में इन दोनों जिलों में चार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इन चारों किसानों की आत्महत्या के पीछे प्रमुख कारण कर्ज ही बताया गया है। ताजा मामला श्रीगंगानगर जिले के रघुनाथपुरा गांव का है, जहां 4 जुलाई को किसान नेतराम ने कीटनाशक दवा पीकर आत्महत्या कर ली। परिजनों व ग्रामीणों का आरोप है कि नेतराम बैंक कर्ज से परेशान था। बैंक से लगातार कुर्की के फोन आ रहे थे। दो साल से वह मूल रकम का ब्याज तक नहीं चुका पा रहा था। कुछ इसी तरह का मामला श्रीगंगानगर जिले के रायसिंहनगर उपखंड में ठाकरी गांव का है, जहां इस घटना से 12 दिन पहले किसान सोहनलाल ने बैंक कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। उसने आत्महत्या से पहले न केवल खुद का वीडियो बनाया था बल्कि एक पत्र भी लिखा था, जिसमें अपनी मौत का जिम्मेदार प्रदेश के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री को बताया था। यह मामला प्रदेश व देश की संसद तक गूंजा। इससे पहले हनुमानगढ़ जिले में भी दो किसान फरवरी व मई माह में आत्महत्या कर चुके हैं। पांच माह में चार किसानों के आत्महत्या करने से कर्ज माफी के दावों पर सवाल उठना लाजिमी है। ऐसी घटनाओं के न थमने पर मान लेना चाहिए कि कहीं न कहीं व्यवस्था में दोष जरूर है, चाहे सरकार के स्तर पर हो या बैंक के स्तर पर। केवल कर्ज माफी ही किसानों की समस्या का स्थायी हल नहीं है। जब तक जिंस खरीद की प्रक्रिया सरल नहीं होगी, किसानों को जिंसों का वाजिब दाम नहीं मिलेगा, तब तक वह बचत नहीं कर पाएगा। और जब बचत ही नहीं होगी तो कर्ज चुकाने की बात तो दूर, कर्ज बढ़ता ही जाएगा।
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राजस्थान पत्रिका के 13 जुलाई 19 के अंक में संपादकीय पेज पर प्रकाशित।
किसानों का कर्ज माफ करने के वादे के साथ प्रदेश में सत्ता में आई कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में किसानों का कितना भला हो रहा है, इस बात की चुगली गाहे-बगाहे होने वाली किसानों से संबंधित अप्रिय घटनाएं करती रहती हैं। श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले के किसानों से संबंधित मामलों से इसको बखूबी समझा जा सकता है। कृषि बाहुल्य जिले श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ को वैसे तो सरसब्ज व धान का कटोरा कहा जाता है लेकिन बीते पांच माह में इन दोनों जिलों में चार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इन चारों किसानों की आत्महत्या के पीछे प्रमुख कारण कर्ज ही बताया गया है। ताजा मामला श्रीगंगानगर जिले के रघुनाथपुरा गांव का है, जहां 4 जुलाई को किसान नेतराम ने कीटनाशक दवा पीकर आत्महत्या कर ली। परिजनों व ग्रामीणों का आरोप है कि नेतराम बैंक कर्ज से परेशान था। बैंक से लगातार कुर्की के फोन आ रहे थे। दो साल से वह मूल रकम का ब्याज तक नहीं चुका पा रहा था। कुछ इसी तरह का मामला श्रीगंगानगर जिले के रायसिंहनगर उपखंड में ठाकरी गांव का है, जहां इस घटना से 12 दिन पहले किसान सोहनलाल ने बैंक कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। उसने आत्महत्या से पहले न केवल खुद का वीडियो बनाया था बल्कि एक पत्र भी लिखा था, जिसमें अपनी मौत का जिम्मेदार प्रदेश के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री को बताया था। यह मामला प्रदेश व देश की संसद तक गूंजा। इससे पहले हनुमानगढ़ जिले में भी दो किसान फरवरी व मई माह में आत्महत्या कर चुके हैं। पांच माह में चार किसानों के आत्महत्या करने से कर्ज माफी के दावों पर सवाल उठना लाजिमी है। ऐसी घटनाओं के न थमने पर मान लेना चाहिए कि कहीं न कहीं व्यवस्था में दोष जरूर है, चाहे सरकार के स्तर पर हो या बैंक के स्तर पर। केवल कर्ज माफी ही किसानों की समस्या का स्थायी हल नहीं है। जब तक जिंस खरीद की प्रक्रिया सरल नहीं होगी, किसानों को जिंसों का वाजिब दाम नहीं मिलेगा, तब तक वह बचत नहीं कर पाएगा। और जब बचत ही नहीं होगी तो कर्ज चुकाने की बात तो दूर, कर्ज बढ़ता ही जाएगा।
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राजस्थान पत्रिका के 13 जुलाई 19 के अंक में संपादकीय पेज पर प्रकाशित।
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