Saturday, July 27, 2019

हे काटली! रौद्र रूप दिखाओ



हे शेखावाटी की गंगा। हे जीवनदायिनी काटली, तुम बरसों बाद आई। तुम्हारा स्वागत है। तुम्हे देखने को आंखें तरस गई थीं। बचपन में तुम्हारे बहाव में मैं खूब खेला हूं। हमारे गांव की सरहद के नजदीक ही तुम्हारा बहाव क्षेत्र है। आठवीं के बाद मेरा स्कूल जाने का रास्ता तुम्हारे बीच से ही होकर गुजरा। अब भी जयपुर जाना हो या जिला मुख्यालय तुम्हारे बीच से ही गुजरना होता है। मुझे ठीक से याद है, आज से सत्ताइस साल पहले 1992 का वह दिन जब ट्रैक्टर पर सवार होकर हम गांव के बच्चे दसवीं की परीक्षा देने इस्लामपुर गए थे। इसके बाद मैंने तुम्हारा पानी कभी इस्लामपुर तक आते नहीं देखा। बड़े बुजुर्गों से सुना है कि काटली नदी का पानी चूरू जिले के सुलखणिया ताल तक जाते-जाते सूख जाता था। मतलब तुम कभी चूरू की सीमा तक जाती थी। बुजुर्ग यह भी बताते थे कि बरसात में जब काटली आती थी, तो उसकी तेज आवाज तीन चार किलोमीटर दूर गांव तक सुनाई देती है। एक दो बार तो नदी का आवेग इतना तेज था कि वह अपने बहाव क्षेत्र को तोड़ते हुई एक मोटे नाले के रूप में हमारे गांव केहरपुरा कलां व सुलताना तक पहुंच गई थी। उस नाले के निशां आज भी देखे जा सकते हैं। आज भी गांव में बालाजी का मंदिर नले अर्थात नाले वाले बालाजी के नाम से चर्चित है। इतना ही नहीं नदी में ककड़ी, मतीरे आदि भी बड़ी संख्या में बहकर आते थे। काटली की विशेषता यह है कि इसके बहाव में आदमी ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रह सकता। पानी के बहाव से पैरों के नीचे की मिट्टी निकलती जाती है और पैर नीचे धंसते चले जाते हैं। फिर खड़ा रहना मुश्किल होता और नदी अपने साथ बहा ले जाती। बलुई मिट्टी में पानी के वेग के कारण कटाव ज्यादा होता है। यही कारण कि काटली जब आती तो छोटी नाले के रूप में लेकिन दो तीन दिन बहते-बहते वह अपना दायरा आधा पौन किलोमीटर तक कर लेती थी। नदी से पैदल भी न जाने कितनी बार निकला हूं। मुझे याद है नदी क्षेत्र को पैदल पार करने में ही दस से पंद्रह मिनट तक लग जाते थे। बुजुर्गों से यह भी सुना है कि काटली जब आती थी तो कुओं का जलस्तर आश्चर्यजनक रूप से दस- दस फुट तक बढ़ जाता था। ग्रामीण बताते हैं कि वो तो यह सोचते थे कहीं कुएं की मोटर तो चोरी नहीं हो गई। एक चर्चा और जो ग्रामीणों से सुनी है कि एक कुएं की नाल भी काटली के बहाव में बहकर आई थी। खैर, मैंने कभी इस नाल को देखा नहीं। हां, बीते सताइस साल में मैंने काटली को तिल-तिल मरते जरूर देखा है। झुृंझुनूं के किसी नेता, प्रशासन जागरूक संगठन ने कभी इसकी सुध नहीं ली। बड़ी संख्या में नदी के बहाव क्षेत्र में अवैध खनन होने लगा। ईंट भट्ठे तक बन गए। नदी के दोनों किनारे लगातार दबते गए। मेरे गांव से इस्लामपुर आने वाले रास्ते पर नदी की चौड़ाई बामुश्किल दस-बीस फुट बची होगी, बाकी पूरी दब गई। लोग मजे से बेखौफ होकर खेती कर रहे हैं, मिट्टी निकाल रहे हैं। ईंट भट्ठे बनाकर कारोबार कर रहे हैं। सब के सब चुप हैं। कोई माई का लाल बोलता ही नहीं है। हे काटली, जिले में लगातार बढ़ते जलदोहन के चलते तुम्हारी प्रासंगिकता आज भी है। तुम साल में एक बार भी आओ तो हर साल कुओं को बोरिंग ही नहीं करवाना पड़े लेकिन यह कुल्हाड़ी लोगों ने खुद अपने पैरों पर मारी है। इसके लिए जिम्मेदार भी वहीं हैं। आज समूचा इलाका डार्क जोन में तब्दील हो रहा है तो इसका बड़ा कारण काटली का बंद होना भी है। सीकर जिले की पहाड़ियों से निकलकर झुंझुनूं के उदयपुरवाटी, गुढागौडज़ी, बड़ागांव, चिंचडौली, भडौंदा खुर्द, इस्लामपुर, केहरपुरा कलां, केहरपुरा खुर्द, माखर, खुडाना आदि गांवों व कस्बों की सरहदों से गुजरते हुए तुम चूरू जिले में प्रवेश करती थी। इस बार बारिश तेज हुई तो तुम फिर बह निकली लेकिन तुम्हारा पानी अभी मेरे गांव जाने वाले रास्ते तक नहीं पहुंच पाया है। फिर भी जमाना सूचना व तकनीक का है, लिहाजा आज तुम्हारे न जाने कितने ही वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। युवा तुम्हारे बहते पानी को कैमरे में कैद कर एफबी पर अपलोड करने को आतुर हैं। तुमको बहते प्रत्यक्ष नहीं देख पाने का मलाल तो मुझे भी है लेकिन वीडियोज देखकर अतीत जिंदा हो गया। बहुत सी यादें स्मृतियों में चली आईं। तुम्हारी इस हालत पर मुझे तरस आता है और गुस्सा भी। वैसे कहा गया है कि प्रकृति अपना बदला खुद ले लेती है। हे काटली तुम भी अपना रौद्र रूप दिखाओ, ताकि तुम्हारी छाती को छलनी करने वालों व तुम्हारे पर कब्जा करने वालों की अक्ल ठिकाने आ जाए। अपना हिसाब तुम खुद लो। क्योंकि तुम्हारी हत्या का बदला लेने या तुम्हे इंसाफ दिलाने में यहां का न तो कोई नेता आगे आएगा न ही शासन-प्रशासन का कोई नुमाइंदा। जागरूक संगठन भी केवल बयानों या अपने लाभ-हानि के गणित में ज्यादा उलझे हैं। वो तुम्हारे नाम पर सियासत कर सकते हैं लेकिन तुमको न्याय नहीं दिलवा सकते। इसलिए हे काटली तुम पूर्ण वेग से आओ। तोड़ दो वो सारे अतिक्रमण जो तुम्हारी छाते पर बने हैं। ध्वस्त कर दो वो सारे ईंट भट्ठे तो तुम्हारे कलेजे का चीर-चीर कर मिट्टी निकाल रहे हैं। हे काटली तुम्हारा आना और बदला लेना बेहद जरूरी है। तुम्हारी दुर्दशा करने वाले लोग किसी दया या सहानुभूति के पात्र नहीं है। तुम अपना बदला खुद लो। तुम अपने वास्तविक रूप में आओगी तभी युवा पीढी भी जान पाएगी। वरना काटली की कहानी किताबों या किस्सों में ही कैद होकर रह जाएगी।

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