बस यूं ही
सुप्रीम कोर्ट ने एनसीआर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर रोक का फैसला क्या सुनाया समूचे देश में कड़ी प्रतिक्रियाएं होने लगी। विशेषकर सोशल मीडिया पर तो एक तरह का जलजला आया हुआ है। तर्कों व दलीलों की बाढ़ सी आ गई है। मसलन, समूचे देश में पटाखे चलते हैं, तो सिर्फ दीपावली पर ही रोक क्यों? शादी-समारोह में भी खूब पटाखे फूटते हैं। आईपीएल आदि में भी खूब आतिशबाजी होती है, तब प्रदूषण नहीं होता क्या? गाडियों, घरों व आफिस में कितने एसी चलते हैं, उनसे क्या वातारण दूषित नहीं होता? साल में एक दिन रोक से क्या 364 दिन सही हो जाएंगे। सिर्फ हिन्दुओं के त्योहार ही निशाने पर क्यों? अन्य धर्मावलंबी नए साल पर व अपने-अपने पर्वों पर न जाने क्या करते हैं, कोर्ट को वह सब दिखाई क्यों नहीं देता? और तो और तो कइयों ने तो फैसला सुनाने वाले जजों की नियुक्ति पर ही सवाल खड़े कर दिए। कुछ एेसे भी हैं कि जो अपने समर्थन में तर्क दे रहे हैं जब पॉलिथीन व शराब भी प्रतिबंधित करने के बावजूद प्रचलन में है तो फिर पटाखे नहीं बिकेंगे यह कैसे संभव है? यहां तक कहा जा रहा है कि इस बार दिल्ली पुलिस की दिवाली अच्छी होगी। वह कैसी मनेगी यह भी बड़ा सवाल है। इसके अलावा कई तरह के जुमले एवं चुटकले भी चल पड़े हैं। खैर, लब्बोलुआब यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने दीपावली से करीब दस दिन पहले ही देश में एक नई बहस खड़ी कर दी है। यूं समझ लीजिए कि पटाखों की जगह प्रतिक्रियाओं के बम फूट रहे हैं। चुटकियों की फूलझडि़या चल रही हैं। त्योहारों पर गिले शिकवे भूल कर एक होने तथा गले मिलने का संदेश बेमानी सा नजर आने लगा है। वैचारिक रूप से देश दो धड़ों में बंटा हुआ दिखाई दे रहा है। इस वैचारिक विभाजन का स्याह पक्ष यह भी है कि इसमें दूसरे धर्मों की तुलना का तड़का भी लगाया जा रहा है।
क्रमश....
सुप्रीम कोर्ट ने एनसीआर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर रोक का फैसला क्या सुनाया समूचे देश में कड़ी प्रतिक्रियाएं होने लगी। विशेषकर सोशल मीडिया पर तो एक तरह का जलजला आया हुआ है। तर्कों व दलीलों की बाढ़ सी आ गई है। मसलन, समूचे देश में पटाखे चलते हैं, तो सिर्फ दीपावली पर ही रोक क्यों? शादी-समारोह में भी खूब पटाखे फूटते हैं। आईपीएल आदि में भी खूब आतिशबाजी होती है, तब प्रदूषण नहीं होता क्या? गाडियों, घरों व आफिस में कितने एसी चलते हैं, उनसे क्या वातारण दूषित नहीं होता? साल में एक दिन रोक से क्या 364 दिन सही हो जाएंगे। सिर्फ हिन्दुओं के त्योहार ही निशाने पर क्यों? अन्य धर्मावलंबी नए साल पर व अपने-अपने पर्वों पर न जाने क्या करते हैं, कोर्ट को वह सब दिखाई क्यों नहीं देता? और तो और तो कइयों ने तो फैसला सुनाने वाले जजों की नियुक्ति पर ही सवाल खड़े कर दिए। कुछ एेसे भी हैं कि जो अपने समर्थन में तर्क दे रहे हैं जब पॉलिथीन व शराब भी प्रतिबंधित करने के बावजूद प्रचलन में है तो फिर पटाखे नहीं बिकेंगे यह कैसे संभव है? यहां तक कहा जा रहा है कि इस बार दिल्ली पुलिस की दिवाली अच्छी होगी। वह कैसी मनेगी यह भी बड़ा सवाल है। इसके अलावा कई तरह के जुमले एवं चुटकले भी चल पड़े हैं। खैर, लब्बोलुआब यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने दीपावली से करीब दस दिन पहले ही देश में एक नई बहस खड़ी कर दी है। यूं समझ लीजिए कि पटाखों की जगह प्रतिक्रियाओं के बम फूट रहे हैं। चुटकियों की फूलझडि़या चल रही हैं। त्योहारों पर गिले शिकवे भूल कर एक होने तथा गले मिलने का संदेश बेमानी सा नजर आने लगा है। वैचारिक रूप से देश दो धड़ों में बंटा हुआ दिखाई दे रहा है। इस वैचारिक विभाजन का स्याह पक्ष यह भी है कि इसमें दूसरे धर्मों की तुलना का तड़का भी लगाया जा रहा है।
क्रमश....
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