टिप्पणी
श्रीगंगानगर-सूरतगढ़ मार्ग पर कैंचिया के पास सोमवार सुबह निजी बस की टक्कर से ट्रैक्टर चालक की मौत हो गई। बताया जा रहा है बस तेज रफ्तार से दौड़ रही थी। इससे पहले बीते बुधवार को अनूपगढ़ में विद्युत तार छूने से लगी आग के कारण दो जनों की मौत हुई। आग से जो बस जली थी, उसी नंबरों की एक दूसरी बस को दूसरे दिन संचालित होते पाया गया। इन दो घटनाओं से समझा जा सकता है कि व्यवस्था किस कदर पटरी से उतरी हुई है। निजी बसों का संचालन बेखौफ व मनमर्जी हो रहा है। इतना ही नहीं मनमर्जी के इस खेल में मिलीभगत की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। अगर मिलीभगत न हो तो क्या एक नंबर की बसें एक ही जिले में संचालित हो सकती हैं? अगर मिलीभगत न हो तो क्या बसें निर्धारित रफ्तार से ज्यादा दौड़ सकती हैं? बसों में सफर करने वाले तो दावा यहां तक करते हैं कि सूरतगढ़ से श्रीगंगानगर का सफर चालीस-पैंतालिस मिनट में तय हो रहा है। सतर किलोमीटर की दूरी इस अंदाज में तय हो रही है तो सोचिए किस तरह जान जोखिम में डाली जा रही है। इसके बावजूद जिम्मेदार विभागों पर कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। तभी तो मनमर्जी से चलने वालों पर किसी तरह की रोकटोक व बंदिश न होना भी संबंधित विभागों को कठघरे में खड़ा करता है। श्रीगंगानगर-सूरतगढ़ मार्ग पर अवैध संचालन की शिकायतें लंबी हो रही है। शिव चौक के पास जीपों का संचालन सरेआम होता रहा है लेकिन जिम्मेदारों ने कभी कोई कारगर कार्रवाई नहीं की। इन जीपों का संचालन कम हो गया है लेकिन जान से खिलवाड़ तथा नियमों को ठेंगा दिखाने का सिलसिला रुका नहीं है। जान व नियमों से खेलने वालों के प्रति जिम्मेदारों विभागों का इस तरह से जानकर भी अनजान बने रहना बेहद चिंताजनक है। इतना भी तय है कि इस सिलसिले पर जल्द न रोक लगी तो हालात और भी बिगड़ेंगे।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 19 सितंबर 17 के अंक में प्रकाशित
श्रीगंगानगर-सूरतगढ़ मार्ग पर कैंचिया के पास सोमवार सुबह निजी बस की टक्कर से ट्रैक्टर चालक की मौत हो गई। बताया जा रहा है बस तेज रफ्तार से दौड़ रही थी। इससे पहले बीते बुधवार को अनूपगढ़ में विद्युत तार छूने से लगी आग के कारण दो जनों की मौत हुई। आग से जो बस जली थी, उसी नंबरों की एक दूसरी बस को दूसरे दिन संचालित होते पाया गया। इन दो घटनाओं से समझा जा सकता है कि व्यवस्था किस कदर पटरी से उतरी हुई है। निजी बसों का संचालन बेखौफ व मनमर्जी हो रहा है। इतना ही नहीं मनमर्जी के इस खेल में मिलीभगत की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। अगर मिलीभगत न हो तो क्या एक नंबर की बसें एक ही जिले में संचालित हो सकती हैं? अगर मिलीभगत न हो तो क्या बसें निर्धारित रफ्तार से ज्यादा दौड़ सकती हैं? बसों में सफर करने वाले तो दावा यहां तक करते हैं कि सूरतगढ़ से श्रीगंगानगर का सफर चालीस-पैंतालिस मिनट में तय हो रहा है। सतर किलोमीटर की दूरी इस अंदाज में तय हो रही है तो सोचिए किस तरह जान जोखिम में डाली जा रही है। इसके बावजूद जिम्मेदार विभागों पर कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। तभी तो मनमर्जी से चलने वालों पर किसी तरह की रोकटोक व बंदिश न होना भी संबंधित विभागों को कठघरे में खड़ा करता है। श्रीगंगानगर-सूरतगढ़ मार्ग पर अवैध संचालन की शिकायतें लंबी हो रही है। शिव चौक के पास जीपों का संचालन सरेआम होता रहा है लेकिन जिम्मेदारों ने कभी कोई कारगर कार्रवाई नहीं की। इन जीपों का संचालन कम हो गया है लेकिन जान से खिलवाड़ तथा नियमों को ठेंगा दिखाने का सिलसिला रुका नहीं है। जान व नियमों से खेलने वालों के प्रति जिम्मेदारों विभागों का इस तरह से जानकर भी अनजान बने रहना बेहद चिंताजनक है। इतना भी तय है कि इस सिलसिले पर जल्द न रोक लगी तो हालात और भी बिगड़ेंगे।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 19 सितंबर 17 के अंक में प्रकाशित
No comments:
Post a Comment