टिप्पणी
बारिश के बाद अब बयानों की बारिश हो रही है। जिम्मेदार अपने बचाव में बचकाने व बेतुके बयान देकर खुद को पाक दामन साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। कभी पहले तो कभी बाद में। कभी थोड़ी कम तो कभी थोड़ी ज्यादा लेकिन बारिश तो हर साल ही आती है और शहर के हालात कमोबेश हमेशा ही ऐसे होते हैं। इतना ही नहीं बचाव में बयान या दलीलें भी हर बार इसी तरह की ही दी जाती हैं। फलां कॉलोनी में पंप लगाकर हमने पानी निकासी करवाई है। हमने खुद के खर्चे पर यह काम करवाया। हमने मौके का निरीक्षण किया आदि आदि। यह पंरपरागत बयान सुन सुनकर लोगों के कान पक चुके हैं। इस तरह के तात्कालिक उपायों के कारण पानी निकासी के ठोस समाधान की हमेशा अनदेखी होती रही है। जिम्मेदारों का ध्यान भी अक्सर तात्कालिक उपाय कर सस्ती लोकप्रियता पाने पर ही ज्यादा रहता है। बयानवीर जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को बयानों के साथ बहाने भी खूब आते हैं। मसलन, हमने तो पहले ही कह दिया था। हम क्या कर सकते हैं हालात ही ऐसे मिले थे। इतने सालों से ही कुछ नहीं हुआ तो अब क्या होगा। हमारे पास कोई जादू थोड़े ही है। हमसे पहले वाले जनप्रतिनिधियों-अधिकारियों ने कुछ नहीं किया। आदि-आदि। यह सब एक तरह से जिम्मेदारी से मुंह मोडऩे के बहाने हैं। बारिश से बदहाल व बेचैन शहर को बेवकूफ बनाने के आसान उपाय हैं। इस तरह की बातें वो ही करते हैं, जो अपनीे जिम्मेदारी से भाग रहे हैं या जिनके पास विकास का विजन नहीं है। या फिर जिनके पास कोई दीर्घकालीन योजना नहीं है। कभी किसी तो किसी विभाग में तबादले करवाने तथा जिले या शहर से बाहर नहीं जाने वाले अधिकारियों ने इस समस्या को तो नजदीक से देखा व भोगा है। जब उनको इस शहर से इतना मोह है तो वे शहरवासियों की समस्याओं से अनजान क्यों बने हैं? जनप्रतिनिधि तो चुनाव ही विकास के नाम पर लड़ते हैं। शहर की सूरत देखकर ही वो बता दें कि यह कैसा व किस तरह का विकास है? बहरहाल, बारिश के इस मौसम में जनहित से जुड़े इस मसले में अब बहानों व बयानों से बात नहीं बनेगी। समय काफी हो चुका है। यह शहर अब समस्या का स्थायी समाधान चाहता है। जिम्मेदार अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस समस्या का समाधान खोजना ही होगा।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 3 सितंबर 17 के अंक में प्रकाशित
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