Thursday, November 16, 2017

दर्शक बनती पुलिस

टिप्पणी
कानून की पालना करना तथा व्यवस्था बनाए रखना पुलिस की जिम्मेदारी है। अपराधों पर अंकुश तथा जान माल की हिफाजत की सुरक्षा करना भी पुलिस की जिम्मेदारी में शामिल माना गया है। श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय पर हाल ही दो घटनाएं ऐसी हुई हैं, जिनको देखकर यह कहा जा सकता है कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी निभाने में कहीं न कहीं चूक कर रही है। पहला मामला रामलीला मैदान में दशहरे पर रावण परिवार के दहन का है। वहां उमड़ी भीड़ दहन के वक्त बेकाबू हो गई। गनीमत रही कि कोई हादसा नहीं हुआ। जब तक पुलिस को अपनी जिम्मेदारी का भान होता हालात नियंत्रण से बाहर हो गए। भीड़ पुतलों के पास पहुंच गई। कुर्सियों पर बैठकर कार्यक्रम देखने की हसरत लेकर जाने वालों को निराशा हाथ लगी। दहन के बाद तो स्थिति एक तरह से नियंत्रण से बाहर ही हो गई। धक्की-मुक्की और छेडख़ानी तक घटनाएं हुईं। अच्छा कार्यक्रम देखने की उम्मीद में गए लोग व्यवस्था से इतने परेशान हुए कि दुबारा आने की तौबा तक कर ली।
दूसरा मामला दो दिन पहले का है। आदर्श पार्क में जागो कार्यक्रम के चलते काफी लोग जमा हुए। इनमें महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा थी। व्यवस्था बनाने के लिए यहां महिला पुलिसकर्मी भी बड़ी संख्या में तैनात की गई थी, लेकिन यहां भी अधिकतर महिला व पुलिसकर्मी बजाय व्यवस्था बनाने के कार्यक्रम देखेन में मशगूल थे। उनको यह खबर ही नहीं थी कि कार्यक्रम में आने वालों को किस तरह के अनुभव व असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। धक्का-मुक्की व अव्यवस्थाएं भी लगातार इसीलिए बढ़ती गई क्योंकि जिनके जिम्मे व्यवस्था थी वो भीड़ का हिस्स हो गए। कहने का आशय यही है कि ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी खुद की जिम्मेदारी भूल दर्शक बन गए। पुलिस का दर्शक बनना किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। पुलिस का जिम्मेदारी भूल दर्शक बनने की यह प्रवृत्ति कतई उचित नहीं है। क्योंकि आज की छिटपुट घटनाएं कालांतर में किसी बड़े हादसे या विवाद की वजह बन सकती हैं। सीमावर्ती जिला होने के कारण श्रीगंगानगर वैसे भी संवेदनशील माना जाता है। इसलिए पुलिस जिस काम के लिए बनी है, उसी को शिद्दत व ईमानदारी के साथ निभाए। वह भीड़ का हिस्सा या दर्शक बनने के लिए तो कतई नहीं है। उसकी जिम्मेदारी बड़ी है। वह अपनी जिम्मेदारी का एहसास करें तथा उसे निभाए। वैसे भी भीड़ का हिस्सा व दर्शक बनने के लिए लोगों की कमी नहीं है।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 31 अक्टूबर के अंक में प्रकाशि

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