टिप्पणी
मौसम में आए यकायक बदलाव के चलते श्रीगंगानगर में मौसमी बीमारियों के मरीज तो अचानक बढ़े ही हैं, डेंगू मरीजों के बढ़ते आंकड़ों ने आमजन को चिंता में डाल दिया है। हालत यह है कि श्रीगंगानगर में बीते दो दिन के भीतर 22 मरीजों में डेंगू की पहचान हुई है। यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता था लेकिन डेंगू जांचने की किट समाप्त हो गई। करीब 60 मरीजों की जांच किट के अभाव में अटकी हुई है। बुधवार को ही जिला कलक्टर ने स्वास्थ सेवाओं में कमी पर विभाग के अधिकारियों को कड़ी नसीहत दी। इधर, सरकारी स्तर पर समय पर जांच न होने या जांच के अभाव के कारण मरीज व उनके परिजन निजी अस्पतालों या लैब में जाने को मजबूर हैं। इनमें ज्यादातर तो ऐसे भी हैं, जो इस आशंका के चलते जांच करवा रहे हैं कि कहीं उनके डेंगू तो नहीं? डेंगू के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए इस तरह की आशंका गलत भी नहीं है। इस तरह की आशंका का समाधान जांच से ही संभव है। मरीजों को झूठा डर दिखाकर उनको भयभीत कर जांच के लिए मजबूर करने की शिकायतें भी जिला प्रशासन के पास पहुंची हैं। जाहिर सी बात है कि आशंकाओं से घिरे मरीज को सरकारी स्तर पर कोई सुविधा या जांच नहीं मिलेगी तो वह निजी में नहीं जाएगा तो क्या करेगा।
खैर, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बजाय ज्यादा मशक्कत करने के इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कब मौसम बदले और कब डेंगू का प्रकोप कम हो। उनकी दलील है दीपावली के बाद डेंगू का प्रकोप कम हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की दलील सही है या गलत या फिर हास्यास्पद, एक बार इसको भूल भी जाएं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वे किट मंगवाने के प्रति गंभीर क्यों नहीं हैं। वे इतनी ही किट क्यों मंगवा रहे हैं, जो आते ही खत्म हो रही हैं। जरूरत के हिसाब से यह व्यवस्था पहले से क्यों नहीं कर ली जाती! बड़ी बात तो यह भी है कि यह जांच सरकारी स्तर पर निशुल्क है लेकिन इसी जांच के निजी चिकित्सालय या लैब में एक हजार से बारह सौ रुपए तक लगते हैं। अधिकारियों के छह सौ से अधिक राशि नहीं लेने के आदेश के बावजूद निजी लैब और चिकित्सालयों की मनमानी चल रही है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों के निजी अस्पतालों व लैब संचालकों से मिलीभगत के आरोप भी लग रहे हैं। जिला प्रशासन को इस मामले में फटकार या नसीहतों से आगे बढ़कर दखल देनी चाहिए। साथ ही न केवल तत्काल किट की व्यवस्था करवानी चाहिए बल्कि मिलीभगत के आरोप की जांच कर सत्यता भी पता करवानी चाहिए। किट की किल्लत कृत्रिम है या वास्तव में है, इसकी पड़ताल भी होनी चाहिए। किट के अभाव में कोई निजी अस्पताल की तरफ जा रहा है तो यह कहीं न कहीं विभाग की उदासीनता का ही परिणाम है। बहरहाल, स्वास्थ्य विभाग सुविधाओं में विस्तार करे। जिस चीज की कमी है, उसका समय रहते प्रबंध करे ताकि उपचार के अभाव में न तो किसी मरीज की मौत हो और न ही कोई इलाज के लिए इधर-उधर भटके।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 27 अक्टूबर 17 के अंक में प्रकाशित
मौसम में आए यकायक बदलाव के चलते श्रीगंगानगर में मौसमी बीमारियों के मरीज तो अचानक बढ़े ही हैं, डेंगू मरीजों के बढ़ते आंकड़ों ने आमजन को चिंता में डाल दिया है। हालत यह है कि श्रीगंगानगर में बीते दो दिन के भीतर 22 मरीजों में डेंगू की पहचान हुई है। यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता था लेकिन डेंगू जांचने की किट समाप्त हो गई। करीब 60 मरीजों की जांच किट के अभाव में अटकी हुई है। बुधवार को ही जिला कलक्टर ने स्वास्थ सेवाओं में कमी पर विभाग के अधिकारियों को कड़ी नसीहत दी। इधर, सरकारी स्तर पर समय पर जांच न होने या जांच के अभाव के कारण मरीज व उनके परिजन निजी अस्पतालों या लैब में जाने को मजबूर हैं। इनमें ज्यादातर तो ऐसे भी हैं, जो इस आशंका के चलते जांच करवा रहे हैं कि कहीं उनके डेंगू तो नहीं? डेंगू के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए इस तरह की आशंका गलत भी नहीं है। इस तरह की आशंका का समाधान जांच से ही संभव है। मरीजों को झूठा डर दिखाकर उनको भयभीत कर जांच के लिए मजबूर करने की शिकायतें भी जिला प्रशासन के पास पहुंची हैं। जाहिर सी बात है कि आशंकाओं से घिरे मरीज को सरकारी स्तर पर कोई सुविधा या जांच नहीं मिलेगी तो वह निजी में नहीं जाएगा तो क्या करेगा।
खैर, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बजाय ज्यादा मशक्कत करने के इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कब मौसम बदले और कब डेंगू का प्रकोप कम हो। उनकी दलील है दीपावली के बाद डेंगू का प्रकोप कम हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की दलील सही है या गलत या फिर हास्यास्पद, एक बार इसको भूल भी जाएं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वे किट मंगवाने के प्रति गंभीर क्यों नहीं हैं। वे इतनी ही किट क्यों मंगवा रहे हैं, जो आते ही खत्म हो रही हैं। जरूरत के हिसाब से यह व्यवस्था पहले से क्यों नहीं कर ली जाती! बड़ी बात तो यह भी है कि यह जांच सरकारी स्तर पर निशुल्क है लेकिन इसी जांच के निजी चिकित्सालय या लैब में एक हजार से बारह सौ रुपए तक लगते हैं। अधिकारियों के छह सौ से अधिक राशि नहीं लेने के आदेश के बावजूद निजी लैब और चिकित्सालयों की मनमानी चल रही है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों के निजी अस्पतालों व लैब संचालकों से मिलीभगत के आरोप भी लग रहे हैं। जिला प्रशासन को इस मामले में फटकार या नसीहतों से आगे बढ़कर दखल देनी चाहिए। साथ ही न केवल तत्काल किट की व्यवस्था करवानी चाहिए बल्कि मिलीभगत के आरोप की जांच कर सत्यता भी पता करवानी चाहिए। किट की किल्लत कृत्रिम है या वास्तव में है, इसकी पड़ताल भी होनी चाहिए। किट के अभाव में कोई निजी अस्पताल की तरफ जा रहा है तो यह कहीं न कहीं विभाग की उदासीनता का ही परिणाम है। बहरहाल, स्वास्थ्य विभाग सुविधाओं में विस्तार करे। जिस चीज की कमी है, उसका समय रहते प्रबंध करे ताकि उपचार के अभाव में न तो किसी मरीज की मौत हो और न ही कोई इलाज के लिए इधर-उधर भटके।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 27 अक्टूबर 17 के अंक में प्रकाशित
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