Thursday, November 16, 2017

तालमेल के खेल से घालमेल !


बस यूं ही
सांच को आंच नहीं। यह कहावत जन्म से सुनते आ रहे हैं, लेकिन राज्य की भाजपा सरकार को कहीं न कहीं यह लगने लगा है कि सांच को आंच आ रही है। तभी तो एक अध्यादेश लाया जा रहा है। प्रदेश के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया भी कह रहे हैं कि अध्यादेश का मतलब ईमानदार लोकसेवकांे की छवि को बदनाम होने से बचाना है। यह दलील अकेले कटारिया की ही नहीं अपितु सरकार के सभी मंत्रियों की है। सभी का सुर भी कमोबेश एक जैसा है। इसे यस बॉस (यस मैम) वाली संस्कृति कहें या पार्टी प्रोटोकॉल लेकिन इतना तय मानिए भाजपा के विधायक वो नहीं कह पा रहे हैं, जो कहना चाहिए। वो अपने विवेक का प्रयोग ही नहीं पा रहे हैं। इस तरह के हालात यह साबित करते हैं कि पार्टी के अंदर का लोकतंत्र कितना खोखला होकर सिर्फ और सिर्फ एक जगह केन्द्रित हो गया है। खैर, मौजूदा राज्य सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार किस कदर चरम पर जा पहुंचा है इसका आलम एक-एक दिन में पांच-पांच छह-छह घूसखोर रंगे हाथों पकडऩे जाने से लगाया जा सकता है। घूस लेते धरे गए लोकसेवक थे और विभिन्न विभागों में सेवा दे रहे थे। आंकडे निकलेंगे तो यकीनन आंखें फटी की फटी रह जाएंगी। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में शायद ही कोई एेसा दिन बीता होगा जिस दिन घूसखोरों से संबंधित समाचारों से अखबार न रंगे हो। यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है? कहीं इस अध्यादेश के बहाने इस तरह के घूसखोरों को अभयदान की तैयारी तो नहीं? सरकार बताए, आंकड़े उपलब्ध कराए कि कितने ईमानदार लोकसेवकों की छवि को धूमिल किया गया? मेरी नजर में यह अध्यादेश ईमानदारों की छवि बचाने की बजाय बेईमानों को संरक्षण देने जैसा है। सबसे पहले सरकार को अध्यादेश लागू करने की जिद छोड़कर यह बताना चाहिए कि यह अध्यादेश किसकी सलाह पर बना? क्यों बना? क्यों लाया जा रहा है? इसको लाने का असली अंकगणित क्या है? सरकार इस अध्यादेश को लाने के लिए इतनी लालायित क्यों हैं? लोकसेवकों की छवि का ख्याल आजादी के इतने समय बाद किसी भी सरकार को न आना और अचानक मौजूदा राज्य सरकार को आ जाना भी अपने आप में बड़ा सवाल है। क्या इस मामले में केन्द्र को इस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? अगर केन्द्र का हस्तक्षेप नहंी है तो यह भी तय मानिए कि इस मामले में कहीं न कहीं केन्द्र का भी समर्थन है। भले ही पर्दे के पीछे हो। नहीं तो किसी की क्या मजाल कि राज्य सरकार, केन्द्र को अंधेरे में रखकर यह अध्यादेश ले आए। वह भी इतने विरोध के बावजूद। इस मामले में केन्द्र राज्य के बीच जरूर कोई तालमेल है। भला बिना तालमेल या खेल के कोई घालमेल हुआ है? क्यों बात जमी के नहीं?

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