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🔺दिखावे का बहिष्कार
गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज करना। मतलब दिखावा करना। यह बात चाइनीज सामान का बहिष्कार करने वालों के लिए उपयोग की जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय सहित समूचे जिले में चाइनीज सामान का बहिष्कार किया। समाचार पत्रों में बड़े समाचार व फोटो भी प्रकाशित हुए लेकिन दिवाली के दिन चाइनीज सामान के बहिष्कार का कुछ खास असर नजर नहीं आया। अधिकतर घरों पर दीपों की जगह बिजली की चाइनीज लडिय़ां जगमगा रही थीं। आतिशबाजी व पटाखे बेचने वालों के यहां भी चाइनीज सामान खूब बिका। खैर, इस मुहिम से किसको कितना व कैसा लाभ मिला, यह तो शहर जानता ही है। वैसे जिस दिन यह मुहिम शुरू हुई और चाइनीज सामान को जलाकर अभियान का शुभारंभ किया गया था, उस दिन कई जनों के हाथ में मोबाइल थे और अधिकतर सेल्फी खींचने में तल्लीन थे। कहने वालों ने तो तब भी कह दिया था कि मोबाइल भी तो चाइनीज ही हैं। समझने वाले तो बहिष्कार की मुहिम की गंभीरता को उसी दिन समझ गए थे।
🔺घर का पता
चुनावी सीजन नजदीक हो और ऐसे में कोई त्योहार आ जाए या नए साल का आगाज हो तो फिर पत्रकारों के घर के पते तलाशने का काम जोर पकड़ लेता है। दफ्तर की बजाय घर पर मिलने का कारण तो चुनाव चाशनी पर जीभ लपलपाने वाले ही अच्छी तरह से बता सकते हैं लेकिन घर पर मिलने का कुछ तो राज जरूर है। मोटे रूप से एक कारण तो यही हो सकता है कि घर पर देने पर राज राज ही रहता है जबकि कार्यालय में देने पर राजफाश हो सकता है। दूसरा कारण यह भी हो सकता है। आफिस में तो सबको समान रखने की मजबूरी भी आड़े आ सकती है लेकिन घर पर योग्यता व अनुभव के आधार पर श्रेणी भी तो बताई जा सकती है। सबसे बड़ी व आखिरी वजह यह भी हो सकती है। इसमें देने व लेने वाले दोनों का नाम कोई तीसरा नहीं जानता। यह राज रहता है। यानी सांप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती । पत्रकार माफ करें लेकिन राज की बात यही है कि श्रीगंगानगर में घर का पता पूछने व घर पर मिलने का प्रचलन कुछ ज्यादा ही है।
चुनावी सीजन नजदीक हो और ऐसे में कोई त्योहार आ जाए या नए साल का आगाज हो तो फिर पत्रकारों के घर के पते तलाशने का काम जोर पकड़ लेता है। दफ्तर की बजाय घर पर मिलने का कारण तो चुनाव चाशनी पर जीभ लपलपाने वाले ही अच्छी तरह से बता सकते हैं लेकिन घर पर मिलने का कुछ तो राज जरूर है। मोटे रूप से एक कारण तो यही हो सकता है कि घर पर देने पर राज राज ही रहता है जबकि कार्यालय में देने पर राजफाश हो सकता है। दूसरा कारण यह भी हो सकता है। आफिस में तो सबको समान रखने की मजबूरी भी आड़े आ सकती है लेकिन घर पर योग्यता व अनुभव के आधार पर श्रेणी भी तो बताई जा सकती है। सबसे बड़ी व आखिरी वजह यह भी हो सकती है। इसमें देने व लेने वाले दोनों का नाम कोई तीसरा नहीं जानता। यह राज रहता है। यानी सांप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती । पत्रकार माफ करें लेकिन राज की बात यही है कि श्रीगंगानगर में घर का पता पूछने व घर पर मिलने का प्रचलन कुछ ज्यादा ही है।
🔺राम-रमी के बहाने
होली-दिवाली पर राम-रमी की परंपरा वर्षों पुरानी है। इस दिन घर पर आने वालों की मनुहार की जाती है। मनुहार के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं। मनुहार में प्रयुक्त सामग्री भी अलग-अलग हो सकती है लेकिन इसका प्रमुख कारण घर पर आने वाले का स्वागत ही होता है। कुछ जगह नीचे तबके के लोगों को कपड़े व नकद राशि देने का रिवाज भी है। वैसे गांवों में सभी एक दूसरे के घर जाते हैं लेकिन शहरों में मामला कुछ अलग है। इतनी बड़े शहर में घर-घर तो वैसे भी घूमा नहीं जा सकता है तो सभी अपने परिचित व रिश्तेदार के यहां जाते हैं। हां, राजनीतिज्ञों के घर पर राम रमी के बहाने भीड़ जुटती है। चुनावी तैयारी में जुटे एक महानुभाव के घर पहुंचे कुछ छायाकार भी रामरमी के बहाने के नकदी पाने में सफल हो गए। हां, यह बात अलग है कि नेताजी ने हैसियत व योग्यता देखकर छायाकारों में राशि कम-ज्यादा जरूर की। गनीमत रही कि यह राज खुला नहीं और राज ही रहा। खुल जाता तो सबका फिर बराबर मान रखना जो पड़ता।
होली-दिवाली पर राम-रमी की परंपरा वर्षों पुरानी है। इस दिन घर पर आने वालों की मनुहार की जाती है। मनुहार के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं। मनुहार में प्रयुक्त सामग्री भी अलग-अलग हो सकती है लेकिन इसका प्रमुख कारण घर पर आने वाले का स्वागत ही होता है। कुछ जगह नीचे तबके के लोगों को कपड़े व नकद राशि देने का रिवाज भी है। वैसे गांवों में सभी एक दूसरे के घर जाते हैं लेकिन शहरों में मामला कुछ अलग है। इतनी बड़े शहर में घर-घर तो वैसे भी घूमा नहीं जा सकता है तो सभी अपने परिचित व रिश्तेदार के यहां जाते हैं। हां, राजनीतिज्ञों के घर पर राम रमी के बहाने भीड़ जुटती है। चुनावी तैयारी में जुटे एक महानुभाव के घर पहुंचे कुछ छायाकार भी रामरमी के बहाने के नकदी पाने में सफल हो गए। हां, यह बात अलग है कि नेताजी ने हैसियत व योग्यता देखकर छायाकारों में राशि कम-ज्यादा जरूर की। गनीमत रही कि यह राज खुला नहीं और राज ही रहा। खुल जाता तो सबका फिर बराबर मान रखना जो पड़ता।
🔺सूची छोटी पड़ गई
शहर में इन दिनों एक नेताजी बेहद सक्रिय है। टिकट मिलेगी या नहीं फिलहाल यह तय नहीं है लेकिन नेताजी चर्चा में बने रहने का कोई मौका नहीं छोडऩा चाहते। कोई भी मामला हो नेताजी की दखल कमोबेश हर जगह मिलेगी। अब शहर की साफ-सफाई को ले लीजिए। नेताजी को इस मामले में भी वोट बैंक नजर आया। काम का प्रचार-प्रसार ठीक से हो जाए, इसके लिए प्रेस कान्फ्रेस का आयोजन तक कर डाला। एक छोटी सी सूचना साझा करने के लिए बाकायदा शहर के बड़े होटल का चुनाव किया गया। शहर से थोड़ा बाहर स्थित इस होटल में पहुंचने वालों ने दूरी को दरकिनार कर दिया। बताते हैं कि नेताजी ने बतौर गिफ्ट पानी के कैम्पर की व्यवस्था कर रखी थी लेकिन कान्फ्रेस में उमड़े लोगों के कारण सूची छोटी पड़ गई। करीब सात दर्जन को तो मौके पर ही गिफ्ट दिए गए। वंचित रहने वालों के लिए और ऑर्डर करना पड़ा।
शहर में इन दिनों एक नेताजी बेहद सक्रिय है। टिकट मिलेगी या नहीं फिलहाल यह तय नहीं है लेकिन नेताजी चर्चा में बने रहने का कोई मौका नहीं छोडऩा चाहते। कोई भी मामला हो नेताजी की दखल कमोबेश हर जगह मिलेगी। अब शहर की साफ-सफाई को ले लीजिए। नेताजी को इस मामले में भी वोट बैंक नजर आया। काम का प्रचार-प्रसार ठीक से हो जाए, इसके लिए प्रेस कान्फ्रेस का आयोजन तक कर डाला। एक छोटी सी सूचना साझा करने के लिए बाकायदा शहर के बड़े होटल का चुनाव किया गया। शहर से थोड़ा बाहर स्थित इस होटल में पहुंचने वालों ने दूरी को दरकिनार कर दिया। बताते हैं कि नेताजी ने बतौर गिफ्ट पानी के कैम्पर की व्यवस्था कर रखी थी लेकिन कान्फ्रेस में उमड़े लोगों के कारण सूची छोटी पड़ गई। करीब सात दर्जन को तो मौके पर ही गिफ्ट दिए गए। वंचित रहने वालों के लिए और ऑर्डर करना पड़ा।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 26 अक्टूबर 17 के अंक में प्रकाशित
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