प्रशासन की शरण में
पिछले साल की ही तो बात है। करोड़ों की ठगी के आरोपित को रिमांड के दौरान कोतवाली थाने में वीआईपी ट्रीटमेंट मिलने का मामला समाचार पत्रों की सुर्खियां बना था। यही आरोपित इन दिनों फिर प्रशासन की शरण में जाने की तैयारी में है। सुनने में आया है कि प्रशासन से फेस टू फेस मुलाकात का सिलसिला सिरे नहीं चढ़ रहा है। लिहाजा, कुछ मध्यस्थ इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। गलियारों में आरोपित और मध्यस्थ मित्रों की भूमिका की चर्चा खूब हो रही है। चर्चा इस बात की भी है कि यह मित्र वाकई मित्र हैं या मतलब के यार हैं। खैर, मामला बीते शनिवार का ही है, जब ठगी के आरोपित को तीन व्यापारियों के साथ प्रशासन के द्वार के पास देखा गया था।
कम नहीं है इनके भी जलवे
पुलिस व प्रशासन के बड़े अधिकारियों का अपने कार्यालय में जनता से मिलने का अलग-अलग तरीका होता है। कोई मिलने का समय निर्धारित करता है तो कोई पर्ची के माध्यम से मिलता है। कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनके यहां बिना पूछे ही एंट्री मिल जाती है। खैर, बड़े अधिकारियों के इस तौर-तरीकों को शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने भी अपना लिया है। साहब के जलवे ऐसे हैं कि आप उनसे सीधे तो मिल ही नहीं सकते। इनसे मुलाकात करनी है तो बाकायदा पर्ची भरनी पड़ती है। साहब से ओके होने के बाद ही मुलाकात संभव हो पाती है। अब इन साहब को यह कौन बताए कि पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों के पास तो हर तरह के ही लोग आते हैं जबकि उनके पास तो केवल उनके विभाग से वास्ता रखने वाले ही ज्यादा आते हैं।
कोई धणी-धोरी भी है यहां का?
जिला मुख्यालय की बजाय अक्सर दूरदराज के कार्यालयों में कर्मचारियों के देर से पहुंचने या बंक मारने की शिकायतें ज्यादा आती हैं। इसका एक कारण यह भी है कि जिला मुख्यालय पर प्रशासन के आला अधिकारी बैठते हैं, लिहाजा कर्मचारियों में भय भी रहता है। खैर, जिला मुख्यालय पर स्थित पंचायत राज विभाग व श्रीगंगानगर पंचायत समिति से जुड़े कार्यालय में भी इसी तरह की शिकायतें सुनने को मिल रही हैं। लोग कहते हैं कि इस कार्यालय में जाने पर न तो कर्मचारी मिलते हैं, न ही अधिकारी। शिकायत करने वालों का तो बाकायदा यह भी कहना है कि प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी यहां कभी भी औचक निरीक्षण करें तो सच्चाई जान सकते हैं। देखने की बात यह है कि निरीक्षण कब होता है।
कुछ तो लोग कहेंगे...
नेतेवाला में मुआवजे की मांग को लेकर चल रहा किसानों का धरना भले ही समाप्त हो गया है, लेकिन सवाल मुआवजे के निर्धारण को लेकर उठ रहे हैं। शुरू में मुआवजा इतना भारी भरकम तैयार क्यों हुआ? इसके पीछे क्या कारण रहे। इतने ही ज्यादा सवाल तो इसके बार-बार निर्धारण से उठे। शुरुआत में जो मुआवजा तय था, और जो आखिर में मिल रहा है, उसमें आधे से ज्यादा का अंतर है। चर्चाएं तो यहां तक हैं कि किसान किसी की बातों में नहीं आए। आ जाते तो हो सकता है मुआवजा ज्यादा भी मिल जाता। खैर जितने मुंह उतनी बात। कहा तो यह भी जा रहा है कि किसानों का अपने स्टैंड पर कायम रहना ही मुआवजे के बार-बार निर्धारण की वजह बना।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 14 सितम्बर 17 के अंक में प्रकाशित
पिछले साल की ही तो बात है। करोड़ों की ठगी के आरोपित को रिमांड के दौरान कोतवाली थाने में वीआईपी ट्रीटमेंट मिलने का मामला समाचार पत्रों की सुर्खियां बना था। यही आरोपित इन दिनों फिर प्रशासन की शरण में जाने की तैयारी में है। सुनने में आया है कि प्रशासन से फेस टू फेस मुलाकात का सिलसिला सिरे नहीं चढ़ रहा है। लिहाजा, कुछ मध्यस्थ इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। गलियारों में आरोपित और मध्यस्थ मित्रों की भूमिका की चर्चा खूब हो रही है। चर्चा इस बात की भी है कि यह मित्र वाकई मित्र हैं या मतलब के यार हैं। खैर, मामला बीते शनिवार का ही है, जब ठगी के आरोपित को तीन व्यापारियों के साथ प्रशासन के द्वार के पास देखा गया था।
कम नहीं है इनके भी जलवे
पुलिस व प्रशासन के बड़े अधिकारियों का अपने कार्यालय में जनता से मिलने का अलग-अलग तरीका होता है। कोई मिलने का समय निर्धारित करता है तो कोई पर्ची के माध्यम से मिलता है। कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनके यहां बिना पूछे ही एंट्री मिल जाती है। खैर, बड़े अधिकारियों के इस तौर-तरीकों को शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने भी अपना लिया है। साहब के जलवे ऐसे हैं कि आप उनसे सीधे तो मिल ही नहीं सकते। इनसे मुलाकात करनी है तो बाकायदा पर्ची भरनी पड़ती है। साहब से ओके होने के बाद ही मुलाकात संभव हो पाती है। अब इन साहब को यह कौन बताए कि पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों के पास तो हर तरह के ही लोग आते हैं जबकि उनके पास तो केवल उनके विभाग से वास्ता रखने वाले ही ज्यादा आते हैं।
कोई धणी-धोरी भी है यहां का?
जिला मुख्यालय की बजाय अक्सर दूरदराज के कार्यालयों में कर्मचारियों के देर से पहुंचने या बंक मारने की शिकायतें ज्यादा आती हैं। इसका एक कारण यह भी है कि जिला मुख्यालय पर प्रशासन के आला अधिकारी बैठते हैं, लिहाजा कर्मचारियों में भय भी रहता है। खैर, जिला मुख्यालय पर स्थित पंचायत राज विभाग व श्रीगंगानगर पंचायत समिति से जुड़े कार्यालय में भी इसी तरह की शिकायतें सुनने को मिल रही हैं। लोग कहते हैं कि इस कार्यालय में जाने पर न तो कर्मचारी मिलते हैं, न ही अधिकारी। शिकायत करने वालों का तो बाकायदा यह भी कहना है कि प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी यहां कभी भी औचक निरीक्षण करें तो सच्चाई जान सकते हैं। देखने की बात यह है कि निरीक्षण कब होता है।
कुछ तो लोग कहेंगे...
नेतेवाला में मुआवजे की मांग को लेकर चल रहा किसानों का धरना भले ही समाप्त हो गया है, लेकिन सवाल मुआवजे के निर्धारण को लेकर उठ रहे हैं। शुरू में मुआवजा इतना भारी भरकम तैयार क्यों हुआ? इसके पीछे क्या कारण रहे। इतने ही ज्यादा सवाल तो इसके बार-बार निर्धारण से उठे। शुरुआत में जो मुआवजा तय था, और जो आखिर में मिल रहा है, उसमें आधे से ज्यादा का अंतर है। चर्चाएं तो यहां तक हैं कि किसान किसी की बातों में नहीं आए। आ जाते तो हो सकता है मुआवजा ज्यादा भी मिल जाता। खैर जितने मुंह उतनी बात। कहा तो यह भी जा रहा है कि किसानों का अपने स्टैंड पर कायम रहना ही मुआवजे के बार-बार निर्धारण की वजह बना।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 14 सितम्बर 17 के अंक में प्रकाशित
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