श्रीगंगानगर. यह किसी ख्यात कलाकारों की फिल्म का शो नहीं हैं। फिर भी दर्शक न केवल उमड़े हैं बल्कि चक्करघिन्नी हैं। कोई इधर भाग रहा है तो कोई उधर जा रहा है। दर्शक यह तय ही नहीं कर पाए हैं कि वो क्या छोड़ें और क्या देखें। दरअसल, यह हाल श्रीगंगानगर में चल रही दो रामलीलाओं का है। दोनों के आयोजन स्थल पास-पास हैं, लिहाजा, लाउडस्पीकर की तेज आवाज एक दूसरे आयोजन में खलल पैदा कर रही है। इस कोलाहाल में दर्शक अगर दोनों आयोजन स्थलों के बीच में खड़ा जाए तो एकबारगी वह तय ही नहीं कर पाएगा कि यह रामलीला हो रही है या महाभारत। थोड़ी सी खामोशी के बीच अगर दर्शकों को बगल वाली रामलीला का कोई डायलॉग सुनता है तो वे वहां से उठकर दूसरी जगह चले जाते हैं। दोनों तरफ आना-जाना लगा है। तभी तो जितने दर्शक कुर्सियों पर जमे हैं उनसे ज्यादा खड़े हो कर यह नजारा देख रहे हैं। हां रामलीलाओं में दर्शकों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। आकर्षक रोशनी, शानदार मंच, पर्दे, साउंड दोनों ही जगह इस तरह का नजारा है कि दर्शक तय नहीं कर पा रहा है कि किस रामलीला का चयन करें।
यह दोनों ही आयोजकों की बीच एक अदृश्य प्रतिस्पर्धा है जो दर्शकों को चकाचौंध व आधुनिक तकनीक से लैस साजोसामान के साथ राम की लीला अर्थात रामलीला देखने को मजबूर कर रही है। खास व गौर करने वाली बात यह है कि मोबाइल व टीवी क्रांति के बावजूद दोनों ही रामलीलाओं में दर्शक काफी संख्या में उमड़े हैं। महिलाओं की संख्या भी अच्छी खासी है। अदृश्य प्रतिस्पर्धा को बल इसीलिए भी मिलता है क्योंकि शहर में कई जगह रामलीलाओं के बड़े बड़े बैनर व होर्डिंग्स भी लगे हैं।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 23 सितंबर 17 के अंक में प्रकाशित
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