Thursday, November 16, 2017

हे मां...!

 टिप्पणी
मां तो मां है। मां की कोई तुलना नहीं होती। मां के जैसा इस संसार में दूसरा कोई नहीं होता। मां खुद तकलीफ झेलती है लेकिन अपनी औलाद को जरा सा भी दुख नहीं देती। मां खुद गीले में सोती है लेकिन अपनी संतान को सूखे में सुलाती है। मां को कितनी ही उपमाएं दी जाएं, कम हैं लेकिन गुरुवार को श्रीगंगानगर जिले के रामसिंहपुर क्षेत्र में जो हुआ, वह सोचने पर मजबूर करता है। दो माह की दूधमुंही बच्ची को लेकर ट्रेन के आगे आकर जान देने वाली मां ने सोचिए अपने कलेजे पर कितना बड़ा पत्थर रखा होगा। कल्पना कीजिए उस मां की संवेदनाओं ने किस कदर दम तोड़ा होगा। उसने अपने अहसासों का गला क्यों कर दबाया होगा। अपनी लाडली को लोरी व प्यार की थपकियों से सुलाने वाली मां ने अपनी गोद से उसे कैसे अलग किया होगा। बेटियों को कोख में मारने के मामले तो गाहे-बगाहे सामने आते रहते हैं। नौ माह अपने गर्भ में रखने वाली मां अचानक इतनी निर्दयी कैसे हो गई। और हादसे के बाद जो तस्वीरें सामने आईं, वे सचमुच बेहद मार्मिक हैं। ये तस्वीरें अंतर्आत्मा को कचोटती हैं। इनको देखकर अनायास की आंखें गमगीन हो उठती हंै। कोमल सी मासूम फूल सी बच्ची को देखकर यकीनन वहां मौजूद लोग उस मां को तथा उसके आत्मघाती फैसले को जरूर कोस रहे होंगे। मां मजबूर हो सकती है, लाचार हो सकती है। दुखी हो सकती है। बेबस हो सकती है। गुस्सा भी हो सकती है लेकिन मां इतनी कठोर दिल कैसे हो सकती है। यह कठोरता, यह निर्दयीता, यह बेरुखी, यह बेगानापन मां के लिए हो ही नहीं सकता। क्योंकि मां तो मां है। मोम की तरह मुलायम बिल्कुल ममता की मूरत।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 8 सितंबर 17 के अंक प्रकाशित

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