टिप्पणी
पड़ोसी जिले बीकानेर के सरे नथानिया स्थित नंदी गोशाला में हाल ही डेढ़ दर्जन गोवंश की मौत हो गई। गोवंश की मौत के बाद बीकानेर जिला कलक्टर ने गोशाला का निरीक्षण किया और गोवंश को ठंड से बचाव की पूरी व्यवस्था तत्काल करने की हिदायत दी। इतना ही नहीं पशुपालन विभाग के दल ने मौके पर जाकर गोवंश के मूत्र व रक्त के सैंपल लिए। इतना ही नहीं मृत गोवंश का पोस्टमार्टम भी किया गया और गोशाला में एक वेटरनरी डॉक्टर भी नियुक्त किया गया। इससे ठीक उल्टी तस्वीर श्रीगंगानगर की है। सुखाडि़या सर्किल स्थित श्री गोशाला में १७ गोवंश की मौत हो जाती है। इतना ही नहीं गोशाला संचालक इन सभी मृत गोवंश को चुपचाप ठिकाने लगा देते हैं। इन्हें दफनाया गया या नहर में बहाया गया यह जांच का विषय है। खैर, गोवंश की मौत पर किसी भी स्तर पर कोई हलचल नहीं होती। पशुपालन विभाग के अधिकारी तो गोशाला संचालकों की हां में हां मिलाने से आगे कुछ नहीं बोल रहे। मजबूरी में सो तरह के बहाने गिनाते हैं। गोवंश की मौत का कारण पशुपालन विभाग भी वो ही बताता है जो गोशाला संचालक बताते हैं। बिना पोस्टमार्टम के ही जांच हो गई। कारण बताया गया कि गोशाला में बीमार गोवंश को लाया गया था, जिसकी सर्दी की वजह से मौत हो गई। क्या वाकई गोशाला में बाहर घूमने वाली बीमार व निराश्रित गायों को लाया जाता है? यह जांच का विषय है। और गायें बीमार थी तो उन्हें गोशाला इलाज के लिए लाए या उनको अपने हाल पर छोडक़र मरने के लिए लाया गया। माना सर्दी बहुत तेज है लेकिन कमाल की बात तो यह भी है कि बाहर खुले में घूमने वाला गोवंश बदस्तूर घूम रहा है लेकिन गोशाला की गायों को सर्दी लग जाती है। गोवंश को सर्दी से बचाने के लिए क्या यहां कोई प्रबंध नहीं? खैर, गोवंश की मौत पर इतना तो तय है कि पशुपालन विभाग अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है। उसका गोशाला संचालकों की में हां में हां मिलाने से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह किस अंदाज में काम कर रहा है। इतना ही नहीं, जिला कलक्टर भी तो इस मामले में पूछने पर बताते हैं। बीकानेर कलक्टर की तरह खुद के स्वविवेक से क्या उन्हें कुछ नहीं सूझता? पशुपालन विभाग तो पहले से ही गोशाला को क्लीन चिट दे रहा है तो उसके खिलाफ कैसे जांच करेगा, समझा जा सकता है। मतलब सब कुछ ही गोलमाल नजर आता है। बहरहाल, गोवंश की मौत पर प्रशासनिक भूमिका सही नहीं रही, लेकिन एेसा भविष्य में न हो इसके लिए सबक जरूर लिया जा सकता है। देश में अक्सर धर्म, राजनीति, व वोटबैंक के केन्द्र में रहने वाला गोवंश श्रीगंगानगर में चुपचाप दम तोड़ रहा है तो दोष उन सबका भी है जो गाहे-बगाहे गायों के नाम पर प्रदर्शन करते हैं, गोवंश का हितैषी होने का दंभ भरते हैं। शहर की अवैध टॉलों से हरा चारा खरीदकर गायों को खिलाने वाले भी पता नहीं इन मौतों पर क्यों चुप हैं? यह चुप्पी वाकई खतरनाक है, न केवल गोवंश के लिए बल्कि शहर के लिए भी।
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 29 दिबंबर के अंक में प्रकाशित..।.
पड़ोसी जिले बीकानेर के सरे नथानिया स्थित नंदी गोशाला में हाल ही डेढ़ दर्जन गोवंश की मौत हो गई। गोवंश की मौत के बाद बीकानेर जिला कलक्टर ने गोशाला का निरीक्षण किया और गोवंश को ठंड से बचाव की पूरी व्यवस्था तत्काल करने की हिदायत दी। इतना ही नहीं पशुपालन विभाग के दल ने मौके पर जाकर गोवंश के मूत्र व रक्त के सैंपल लिए। इतना ही नहीं मृत गोवंश का पोस्टमार्टम भी किया गया और गोशाला में एक वेटरनरी डॉक्टर भी नियुक्त किया गया। इससे ठीक उल्टी तस्वीर श्रीगंगानगर की है। सुखाडि़या सर्किल स्थित श्री गोशाला में १७ गोवंश की मौत हो जाती है। इतना ही नहीं गोशाला संचालक इन सभी मृत गोवंश को चुपचाप ठिकाने लगा देते हैं। इन्हें दफनाया गया या नहर में बहाया गया यह जांच का विषय है। खैर, गोवंश की मौत पर किसी भी स्तर पर कोई हलचल नहीं होती। पशुपालन विभाग के अधिकारी तो गोशाला संचालकों की हां में हां मिलाने से आगे कुछ नहीं बोल रहे। मजबूरी में सो तरह के बहाने गिनाते हैं। गोवंश की मौत का कारण पशुपालन विभाग भी वो ही बताता है जो गोशाला संचालक बताते हैं। बिना पोस्टमार्टम के ही जांच हो गई। कारण बताया गया कि गोशाला में बीमार गोवंश को लाया गया था, जिसकी सर्दी की वजह से मौत हो गई। क्या वाकई गोशाला में बाहर घूमने वाली बीमार व निराश्रित गायों को लाया जाता है? यह जांच का विषय है। और गायें बीमार थी तो उन्हें गोशाला इलाज के लिए लाए या उनको अपने हाल पर छोडक़र मरने के लिए लाया गया। माना सर्दी बहुत तेज है लेकिन कमाल की बात तो यह भी है कि बाहर खुले में घूमने वाला गोवंश बदस्तूर घूम रहा है लेकिन गोशाला की गायों को सर्दी लग जाती है। गोवंश को सर्दी से बचाने के लिए क्या यहां कोई प्रबंध नहीं? खैर, गोवंश की मौत पर इतना तो तय है कि पशुपालन विभाग अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है। उसका गोशाला संचालकों की में हां में हां मिलाने से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह किस अंदाज में काम कर रहा है। इतना ही नहीं, जिला कलक्टर भी तो इस मामले में पूछने पर बताते हैं। बीकानेर कलक्टर की तरह खुद के स्वविवेक से क्या उन्हें कुछ नहीं सूझता? पशुपालन विभाग तो पहले से ही गोशाला को क्लीन चिट दे रहा है तो उसके खिलाफ कैसे जांच करेगा, समझा जा सकता है। मतलब सब कुछ ही गोलमाल नजर आता है। बहरहाल, गोवंश की मौत पर प्रशासनिक भूमिका सही नहीं रही, लेकिन एेसा भविष्य में न हो इसके लिए सबक जरूर लिया जा सकता है। देश में अक्सर धर्म, राजनीति, व वोटबैंक के केन्द्र में रहने वाला गोवंश श्रीगंगानगर में चुपचाप दम तोड़ रहा है तो दोष उन सबका भी है जो गाहे-बगाहे गायों के नाम पर प्रदर्शन करते हैं, गोवंश का हितैषी होने का दंभ भरते हैं। शहर की अवैध टॉलों से हरा चारा खरीदकर गायों को खिलाने वाले भी पता नहीं इन मौतों पर क्यों चुप हैं? यह चुप्पी वाकई खतरनाक है, न केवल गोवंश के लिए बल्कि शहर के लिए भी।
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 29 दिबंबर के अंक में प्रकाशित..।.