'सारा गगन मंडप है, जग है बाराती,' फिल्म होली आई रे का यह गीत रविवार को
उस वक्त प्रासंगिक हो उठा जब पुष्करणा ओलिम्पिक सावे के तहत रविवार को एक
१५० से अधिक जोड़े एक दूजे के हो गए। इससे पहले दिनभर शहर की गलियां
मांगलिक गीतों की गूंज से गुलजार रही। विष्णु रूप धरे दूल्हों का सम्मान,
बारातियों की मीठी मनुहार के साथ की गई आवभगत और देर रात तक चले पाणिग्रहण
संस्कारों के कारण समूचे परकोटा क्षेत्र में चहल-पहल
बनी रही। प्राचीन परम्पराओं का संवाहक तथा रोचक रीति रिवाजों को कारण यह
सावा न केवल अनूठा व अजूबा है बल्कि दिनोदिन महंगे होते शादी-समारोह के
बीच आदर्श विवाह की नजीर भी पेश करता है। समाज में आई जागृति के चलते
मौजूदा दौर में सामूहिक विवाहों का प्रचलन बढ़ा है लेकिन पुष्करणा सावे की
परिकल्पना तो करीब पांच सौ साल पहले ही कर ली गई थी। समय के साथ पुष्करणा
सावे में आधुनिकता का तड़का जरूर लगा है, लेकिन इसकी मूल अवधारणा आज भी
यथावत है। इस सावे की परिकल्पना इस तरह से की गई है कि इसमें समाज के लोगों
में किसी तरह का भेद दिखाई नहीं देता। यह अमीर-गरीब के बीच की खाई को
पाटने के साथ-साथ समूचे समाज को साथ लेकर चलता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह
भी है कि इससे गरीब परिवारों में किसी तरह की हीनभावना नहीं आती वहीं
दूसरी तरफ फिजूलखर्ची पर प्रभावी अंकुश लगता है। सावे से जुड़ी परम्पराराओं
एवं संस्कृति के जिंदा रखने तथा इनके लिए प्रचार-प्रसार के लिए कई
संस्थाएं भी काम रही हैं। सावे के तहत होने वाला विवाह आम विवाह से कई
मायनों में अलग है। इसमें कई तरह की रोचक परम्पराएं हैं, जो सामान्य
विवाहों में देखने को नहंी मिलती है। सादगी एवं साधारण होने के बावजूद सावा
हास-परिहास व मनोरंजन से भरपूर है। सावे में शिरकत करने कोलकाता,
हैदराबाद, बैंगलुरू, जैसलमेर, जोधपुर, नागौर आदि स्थानों से आएं लोगों ने
प्रेम व स्नेह से रचे-पगे सावे में आनंद व उल्लास की सरिता में डूबकी लगाई।
सामाजिक प्रगाढ़ता को बढ़ावा देने वाला यह सावा किसी उत्सव से कम नहीं है।
बीकानेर के ऐतिहासिक पुष्करणा सावे पर 9 फरवरी 15 के अंक में प्रकाशित
बीकानेर के ऐतिहासिक पुष्करणा सावे पर 9 फरवरी 15 के अंक में प्रकाशित
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