टिप्पणी
वैसे तो प्रतिस्पर्धा एवं व्यावसायिकता की दौड़ में चिकित्सकीय पेशा भी अछूता नहीं रहा है। गाहे-बगाहे ऐसी खबरें आती भी रहती हैं, जब इस पेशे की पवित्रता तथा धरती के भगवान की निष्ठा पर सवाल उठे हैं। इतना ही नहीं विश्वास की डोर से बंधा यह नाजुक रिश्ता कई बार टूटा भी है। तभी तो मरीज-चिकित्सकों के संबंधों की नए सिरे से व्याख्या की जाने लगी है। ऐसे प्रतिकूल एवं संक्रमण के माहौल में एक सुखद खबर आई है, जो किसी मिसाल से कम नहीं है। बीकानेर के पास गुरुवार शाम को हुए सड़क हादसे के बाद घायलों के इलाज में चिकित्सकों ने जो जज्बा एवं हौसला दिखाया वह वाकई काबिलेतारीफ है। इस दौरान कई बातें ऐसी हुईं, जो बीकानेर में पहले शायद ही हुई हैं। हादसे की जिस भी चिकित्सक को सूचना मिली, वह तत्काल अस्पताल पहुंचा। अस्पताल पहुंचने वालों में वे चिकित्सक भी शामिल थे, जिनकी या तो ड्यूटी नहीं थी या वे ड्यूटी करके जा चुके थे। इतना ही नहीं रेजीडेंट डाक्टरों ने तो जिस सदाशयता एवं सहृदयता का परिचय दिया, उसने तो चिकित्सकीय पेशे की प्रतिष्ठा को बढ़ा दिया है। वे धन्यवाद के पात्र इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्होंने हड़ताल से जरूरी चिकित्सकीय धर्म को समझा और दर्द से कराहते घायलों के इलाज में जुट गए। अजमेर में रेजीडेंट डाक्टर के साथ हुई मारपीट की घटना के बाद वहां चल रही हड़ताल का समर्थन बीकानेर के डाक्टरों ने भी किया था। वे गुरुवार को हड़ताल पर थे, लेकिन घायलों की सेवा सुश्रुषा करके उन्होंने सही मायनों में यह साबित कर दिखाया कि उनको धरती का भगवान क्यों कहा जाता है। वैसे तो बीकानेर में सेवाभावी लोगों की कमी नहीं है। पीडि़त मानवता की सेवा में यहां के लोग कभी पीछे नहीं रहते हैं लेकिन इस बार चिकित्सकों ने भी अनुकरणीय पहल करके एक नजीर पेश की है।
बहरहाल, मरीज-चिकित्सक के रिश्तों पर हावी होती व्यावसायिकता एवं प्रतिस्पर्धा के बीच ऐसा वाकया सुखद बयार से कम नहीं है। छोटी-मोटी मांगों एवं अन्य मसलों को लेकर मरीजों की अनदेखी कर आंदोलन करने वाले चिकित्सकों को बीकानेर के घटनाक्रम से सीख लेनी चाहिए। सचमुच बाकी चिकित्सक ऐसा कर पाए तो निसंदेह वे चिकित्सकीय पेशे में आई गिरावट को दूर कर मापदण्डों को फिर से पुनस्र्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ पाएंगे। चिकित्सकों को ऐसा करना भी चाहिए, आखिरकार सही अर्थों में उनका धर्म भी तो यही है कि वे पीडि़त मानवता की सेवा को सर्वोपरि रखें।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 11 जुलाई 14 के अंक में प्रकाशित टिप्पणी...
वैसे तो प्रतिस्पर्धा एवं व्यावसायिकता की दौड़ में चिकित्सकीय पेशा भी अछूता नहीं रहा है। गाहे-बगाहे ऐसी खबरें आती भी रहती हैं, जब इस पेशे की पवित्रता तथा धरती के भगवान की निष्ठा पर सवाल उठे हैं। इतना ही नहीं विश्वास की डोर से बंधा यह नाजुक रिश्ता कई बार टूटा भी है। तभी तो मरीज-चिकित्सकों के संबंधों की नए सिरे से व्याख्या की जाने लगी है। ऐसे प्रतिकूल एवं संक्रमण के माहौल में एक सुखद खबर आई है, जो किसी मिसाल से कम नहीं है। बीकानेर के पास गुरुवार शाम को हुए सड़क हादसे के बाद घायलों के इलाज में चिकित्सकों ने जो जज्बा एवं हौसला दिखाया वह वाकई काबिलेतारीफ है। इस दौरान कई बातें ऐसी हुईं, जो बीकानेर में पहले शायद ही हुई हैं। हादसे की जिस भी चिकित्सक को सूचना मिली, वह तत्काल अस्पताल पहुंचा। अस्पताल पहुंचने वालों में वे चिकित्सक भी शामिल थे, जिनकी या तो ड्यूटी नहीं थी या वे ड्यूटी करके जा चुके थे। इतना ही नहीं रेजीडेंट डाक्टरों ने तो जिस सदाशयता एवं सहृदयता का परिचय दिया, उसने तो चिकित्सकीय पेशे की प्रतिष्ठा को बढ़ा दिया है। वे धन्यवाद के पात्र इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्होंने हड़ताल से जरूरी चिकित्सकीय धर्म को समझा और दर्द से कराहते घायलों के इलाज में जुट गए। अजमेर में रेजीडेंट डाक्टर के साथ हुई मारपीट की घटना के बाद वहां चल रही हड़ताल का समर्थन बीकानेर के डाक्टरों ने भी किया था। वे गुरुवार को हड़ताल पर थे, लेकिन घायलों की सेवा सुश्रुषा करके उन्होंने सही मायनों में यह साबित कर दिखाया कि उनको धरती का भगवान क्यों कहा जाता है। वैसे तो बीकानेर में सेवाभावी लोगों की कमी नहीं है। पीडि़त मानवता की सेवा में यहां के लोग कभी पीछे नहीं रहते हैं लेकिन इस बार चिकित्सकों ने भी अनुकरणीय पहल करके एक नजीर पेश की है।
बहरहाल, मरीज-चिकित्सक के रिश्तों पर हावी होती व्यावसायिकता एवं प्रतिस्पर्धा के बीच ऐसा वाकया सुखद बयार से कम नहीं है। छोटी-मोटी मांगों एवं अन्य मसलों को लेकर मरीजों की अनदेखी कर आंदोलन करने वाले चिकित्सकों को बीकानेर के घटनाक्रम से सीख लेनी चाहिए। सचमुच बाकी चिकित्सक ऐसा कर पाए तो निसंदेह वे चिकित्सकीय पेशे में आई गिरावट को दूर कर मापदण्डों को फिर से पुनस्र्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ पाएंगे। चिकित्सकों को ऐसा करना भी चाहिए, आखिरकार सही अर्थों में उनका धर्म भी तो यही है कि वे पीडि़त मानवता की सेवा को सर्वोपरि रखें।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 11 जुलाई 14 के अंक में प्रकाशित टिप्पणी...
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