Wednesday, May 20, 2015

...गुड़ जैसी बात तो करें

टिप्पणी
यकीन मानिए अगर बीकानेर का मौसम सामान्य रहता तो विद्युत निगम को बिजली कटौती के दूसरे कारण तलाशने होते। ऐसा इसलिए है क्योंकि विद्युत लाइनों के रखरखाव के नाम पर जिला मुख्यालय पर रोजाना दो से तीन घंटे होने वाली कटौती हो या फिर अघोषित कटौती, इन दोनों ही परिस्थितियों में विद्युत निगम प्रमुख कारण प्रतिकूल मौसम को ही बताता रहा है। कुछ हद तक निगम के जवाब से संतुष्ट जरूर हुआ जा सकता है, लेकिन एकमात्र कारण मौसम को ही मानना बेमानी है। सुचारु विद्युत आपूर्ति के निगम के दावों का दम तो सामान्य परिस्थितियों में रोजाना दो तीन बार लगने वाले अघोषित विद्युत कट ही निकाल देते हैं। वोल्टेज में उतार-चढ़ाव की समस्या तो लगभग स्थायी हो चुकी है। प्रचंड गर्मी में जब पारा 45 डिग्री से ऊपर चल रहा है, जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित है। धरती किसी भट्टी की मानिंद भभक रही है। ऐसे में एक पल की विद्युत कटौती कितनी दुखदायी होती है, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। फिर भी रखरखाव के नाम पर की जाने वाली कटौती की बात सुनकर उपभोक्ता सब्र कर लेते हैं। इसके बावजूद अचानक बिजली गुल होना उपभोक्ताओं के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है तो निगम के लिए एक बड़ी चुनौती भी है।
वैसे देखा जाए तो विद्युत कटौती की समस्या जिला मुख्यालय के बनिस्पत ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा है। जिले में हाल में मारपीट की करीब आधा दर्जन घटनाएं भी हुईं हैं, जब उपभोक्ताओं का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने कानून हाथ में लेने में संकोच नहीं किया, हालांकि ऐसी घटनाओं से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए निगम के आला अधिकारियों ने मातहत कर्मचारियों के मोबाइल नम्बर सार्वजनिक किए ताकि वे उपभोक्ताओं के सम्पर्क में रहें और समय रहते उनकी समस्याओं का निराकरण कर सके। इस कवायद का उद्देश्य उपभोक्ताओं के तात्कालिक आक्रोश को शांत करना भी था। इतना कुछ करने के बाद भी उपभोक्ताओं को अभी राहत नहीं मिली है। कई शिकायतें ऐसी भी सामने आई हैं जब परेशान उपभोक्ताओं ने संबंधित कर्मचारी को फोन तो लगाया लेकिन उसे अटेंड ही नहीं किया।
बहरहाल, मौसम पर किसी का जोर नहीं है। वह कब बिगड़ जाए कहना मुश्किल है, लेकिन सामान्य परिस्थितियों में आपूर्ति सुचारु कैसे रहे, इसके लिए निगम अधिकारियों को नए सिरे से सोचना होगा। बीकानेर की भौगोलिक परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए लाइनों के रखरखाव के परम्परागत तरीकों में बदलाव करना होगा। लोड बढ़ रहा है तो उसके वास्तविक कारण तलाशे जाने चाहिए। विद्युत चोरी एवं छीजत रोकने के लिए प्रभावी एवं कारगर कदम उठाने की दिशा में ईमानदार कोशिश की जाए। और अगर यह सब नहीं हो सकता तो कम से कम उपभोक्ताओं के निरंतर सम्पर्क में रहने के साथ-साथ उनके सवालों का संतोषजनक जवाब तो दिया ही जा सकता है। देखा गया है कि अक्सर हालात तभी बिगड़े हैं, जब उपभोक्ताओं एवं निगम के बीच संवादहीनता की स्थिति बनी है या फिर उपभोक्ताओं की समस्याओं को न तो ठीक सुना गया और न ही उस पर कार्रवाई की गई। उम्मीद की जानी चाहिए निगम इस मामले में सार्थक पहल करेगा। कहावत भी है कि 'भले ही गुड़ ना दें लेकिन गुड़ जैसी बात तो करें।' अगर निगम यह काम भी नहीं कर सकता है तो फिर गर्मी में घोषित/ अघोषित कटौती से उकताए उपभोक्ताओं से ठण्डे मिजाज से पेश आने की उम्मीद कैसे रखी जा सकती है?

राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 11 जून 14 के अंक में प्रकाशित टिप्पणी

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