टिप्पणी...
शहर की बंद रोडलाइट को चालू करने तथा सफाई व्यवस्था में सुधार करने की मांग को लेकर कांग्रेस पार्षदों ने सोमवार को महापौर का घेराव किया और उनकी गाड़ी रोक ली। इन पार्षदों के अलावा विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं व जागरूक लोग भी समय-समय पर निगम प्रशासन व जिला प्रशासन को उक्त समस्याओं के बारे में अवगत कराते रहे हैं। सुगम पोर्टल पर भी प्रत्येक दिन दर्जन भर से ज्यादा शिकायतें पहुंच रही हैं। व्यवस्था में सुधार ना होने के कारण यह आंकड़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। वैसे प्रशासन ने भी जवाब में कई तरह की कवायद एवं दिशा-निर्देश जारी किए, लेकिन राहत नहीं मिली। स्वयं जिला कलक्टर ने तीन माह पूर्व शहर की समस्त खराब रोडलाइट का सर्वे करने के निर्देश दिए थे। सर्वे में किस तरह की रिपोर्ट आई? सर्वे हुआ या नहीं है? अगर हुआ तो उस पर क्या कार्रवाई हुई? आदि असंख्य जवाब हैं, जो कागजों में ही दफन है। हकीकत में कुछ होता तो रोडलाइट को लेकर रोजाना इस तरह चिल्ल पौं नहीं होती।
सिर्फ जिला प्रशासन ही नहीं सप्ताह भर पहले महापौर ने भी रात को शहर का भ्रमण कर बंद रोडलाइट का जायजा लिया। उनको निरीक्षण में करीब तीस फीसदी रोडलाइट खराब मिली थी। इनके निरीक्षण के बाद भी व्यवस्था पटरी पर नहीं लौटी, अलबत्ता बत्ती गुल होने के हर बार दीगर कारण सामने आ रहे हैं। ताजा कारण बताया जा रहा है कि रुपए बकाया होने के चलते संबंधित एजेंसी ने काम करना बंद कर दिया है। तब से शहर की रोडलाइट भगवान भरोसे ही हैं। दरअसल, शहर में रोडलाइट की समस्या लम्बे समय से बनी हुई है। कोई बड़ा कार्यक्रम होने या वीआईपी आगमन पर जरूर सरकारी अमला हरकत में आता है और वैकल्पिक जुगाड़ करके काम निकाल लेता है। ऐसे में समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो पाता है। हां इतना जरूर है कि हर बार मामले को टरकाने या नए कारण (बहाना) बनाने की फेहरिस्त लम्बी होती जा रही है। प्रशासन के पास इस समस्या से निबटने की कोई ठोस कार्ययोजना भी दिखाई नहीं देती है। लापरवाही का इससे बड़ा नमूना और क्या होगा कि जहां रात को अंधेरा पसरा रहता है, वहां दिन में लाइट रोशन रहती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस दिशा में कभी ईमानदारी से सोचा ही नहीं गया। अवसर विशेषों पर प्रशासन द्वारा सरकारी भवनों पर सजावट करने की परम्परा न केवल कायम रहती है बल्कि हमेशा याद भी रहती है। लेकिन अंधेरे में डूबे शहर का कोई धणी-धोरी नहीं है। तात्कालिक आक्रोश को शांत करने के लिए प्रशासनिक अधिकारी हर बार दलील देते हैं। सुधार प्रक्रिया की दुहाई को दोहराते हैं लेकिन परेशान व पीडि़त लोगों को इससे किसी प्रकार की राहत नहीं मिल रही।
बहरहाल, घेराव करने वाले पार्षदों को महापौर ने पांच दिन में सब ठीक करने का आश्वासन दिया है। उम्मीद कीजिए पांच दिन बाद कोई चमत्कार होगा। महापौर कोई जादुई छड़ी घुमाएंगे और शहर की बंद रोडलाइट रोशन हो जाएंगी बल्कि सफाई व्यवस्था भी ढर्रे पर लौट आएगी। वैसे चमत्कार हकीकत में कैसे बदलेगा इस पर अभी रहस्य बरकरार है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 3 फरवरी 15 के अंक में प्रकाशित
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