टिप्पणी
कितनी विचित्र बात है कि हम शहर को साफ सुथरा रखने की कसम खाते हैं, खुले में शौच न जाने का संकल्प लेते हैं, वहीं बेटर बीकानेर का सपना भी देखते हैं, लेकिन दूषित पानी से पैदा होने वाली सब्जियोंं को बड़े शौक के साथ न केवल खरीदते हैं बल्कि खा भी लेते हैं। शायद इसीलिए कि यह बाजार में बेरोकटोक बिकती हैं? या इसीलिए कि यह सब्जी प्रशासन के रहमोकरम पर पैदा हो रही हैं? वैसे कारण दोनों ही सही हैं। बिकती भी हैं और निगम व प्रशासन की भूमिका भी किसी से छिपी हुई नहीं है। तभी तो प्रशासन की भूमिका सवालों के घेरे में है। एक तरफ साफ-सफाई रखने की नसीहत और दूसरी तरफ सेहत से खिलवाड़ के मामले में आंखें बिलकुल बंद। ठीक आप न जावे सासरे, औरन को सीख देत की तर्ज पर। इतने विरोधाभास की जरूर कोई बड़ी वजह है, वरना सेहत से जुड़े मसले में इस तरह की उदासीनता नहीं बरती जाती। विडम्बना देखिए निगम से लेकर जिला प्रशासन के आला अधिकारियों तक ने नियमों का हवाला देकर इस मामले को फुटबाल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
दरअसल, शहर में लम्बे समय से गंदे पानी से सब्जियां पैदा की जा रही हैं। निगम प्रशासन के संज्ञान में (जबकि समूचे शहर को पता है) जब यह मामला लाया गया तो उसने तीस से अधिक सब्जी उत्पादकों को नोटिस जारी कर इतिश्री कर ली। निगम प्रशासन की मंशा पर सवाल तो उसी दिन से उठने लग गए थे जब उसने कार्रवाई करने के बजाय सब्जी उत्पादकों को तीन दिन की मोहलत दे दी। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। पिछले साल मई में भी 22 सब्जी उत्पादकों को नोटिस जारी किए गए थे लेकिन कार्रवाई के नाम पर लीपापोती कर दी गई। ताजा मामले में भी निगम के अधिकारी जरूरत से ज्यादा समझदारी दिखा रहे हैं। जब स्वयं जिला कलक्टर एवं अतिरिक्त जिला कलक्टर यह कह चुके हैं कि निगम कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है तो फिर निगम के अधिकारी किस लिहाज से जिला प्रशासन के पास फाइल भेज रहे हैं? और जब निगम स्वतंत्र ही है तो जिले के अधिकारी फाइल को खंगालने में क्यों जुटे हैं? अधिकारियों के इस सांप-सीढ़ी के खेल में कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। इससे तो यही समझा जाना चाहिए कि निगम व जिला प्रशासन के अधिकारी इस मामले में जरूरत से ज्यादा सतर्कता व सावधानी बरत रहे हैं। तभी तो उनकी इस सतर्कता व सावधानी से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं, मसलन क्या सब्जी उत्पादक इतने प्रभावशाली एवं पहुंच वाले हैं कि कार्रवाई करते हुए अधिकारियों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो रही है? क्या किसी तरह का कोई बाह्य हस्तक्षेप है जो अधिकारियों को कार्रवाई करने से रोक रहा है? या फिर किसी तरह की कोई मिलीभगत है जो कार्रवाई में बाधक बन रही है? इन सभी सवालों के जवाब इनके अंदर ही छिपे हैं।
फिर भी अगर सेहत से खिलवाड़ का यह खेल इसी तरह खुलेआम चलता रहा तो निगम व प्रशासन से किसी तरह की कार्रवाई की उम्मीद करना ही बेमानी है और साफ-सफाई व स्वच्छता की शपथ व संकल्प भी किसी से दिखावे से कम नहीं है। कम से कम सेहत से जुड़े इस गंभीर एवं संवदेनशील मसले पर निगम व प्रशासन की भूमिका व रवैया टरकाने वाला कतई न हो। स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ बिना किसी भेदभाव के ठोस व कारगर कार्रवाई हो ताकि भविष्य में कोई इस तरह की हिमाकत ना करे। शपथों, संकल्पों एवं सपनों की प्रासंगिकता भी तभी ही है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 11 जनवरी 15 के अंक में प्रकाशित
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