टिप्पणी...
कभी अपने समृद्ध व सांस्कृतिक इतिहास और बेजोड़ स्थापत्य के लिए जाना जाने वाला बीकानेर वर्तमान में कोटगेट एवं सांखला रेलवे फाटक को लेकर चर्चा में रहता है। शहर को दो हिस्सों में बांटने वाली रेललाइन पर बने इन फाटकों पर रोजाना लगने वाला जाम शहरवासियों के लिए नासूर से तो इसके समाधान के प्रयास किसी मजाक से कम नहीं हैं।
समाधान में रुकावट की सबसे बड़ी वजह सभी वर्गों का एकजुट नहीं होना है। सब अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग की तर्ज पर बयान जारी करने की होड़ में जुटे हैं। तभी तो कभी ओवरब्रिज बनने का शोर सुनाई देता है तो कभी अंडरब्रिज की बातें। कभी एलीवेटेड रोड की चर्चा होती है तो कभी बाईपास का मुद्दा जोर पकड़ता है। सियासी चेहरे एवं सरकारें बदलने के साथ प्रस्ताव भी बदल जाते हैं। एक सरकार के कार्यकाल में जिन प्रस्तावों पर काम होता है दूसरी सरकार उन्हें सिरे से खारिज कर देती है या बदल देती है। तभी तो समस्या न केवल सियासी फेर में उलझी हुई है बल्कि हित-लाभ से भी जुड़ी हुई है।
दरअसल, हल सभी चाहते हैं लेकिन एकराय नहीं हैं। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस समस्या से जुड़े छह पक्षकार हैं। सरकार, विपक्ष, प्रशासन, रेलवे, व्यापारी और आमजन। इनमें से केवल आमजन ही ऐसा वर्ग है जो बिना किसी शर्त या किन्तु-परन्तु के समस्या का हल चाहता है। सबसे प्रभावित एवं पीडि़त भी यही है। बाकी सभी वर्गों के सुर जुदा-जुदा हैं। बानगी देखिए रेलवे बाईपास बनाने का पक्षधर नहीं है। वह अंडरब्रिज या एलीवेटेड रोड की बात करता है। तर्क है कि रेलवे के तकनीकी अधिकारियों के नजर में यहां अंडरब्रिज या एलीवेटेड रोड बनाई जा सकती है। जिला प्रशासन का भी कमोबेश यही रुख है, लेकिन सरकार की भूमिका के आधार पर। फिलहाल प्रशासन की नजर में यहां अंडरब्रिज एवं एलीवेटेड रोड प्रस्तावित है लेकिन सरकार के नुमाइंदे स्थानीय विधायक के विचार इससे इतर हैं। वे अंडरब्रिज के समर्थन में नहीं हैं। एलीवेटेड के लिए भी शर्त है कि बने तो विशेषज्ञों से चर्चा करने के बाद। इधर, व्यापारी वर्ग भी कुछ शर्तों के साथ अंडरब्रिज एवं एलीवेटेड रोड के लिए तैयार है। सुझाव यह है कि समस्या का तात्कालिक हल नहीं खोजा जाए बल्कि दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए समाधान हो। विपक्षी दल के नुमाइंदे तो केवल बाईपास को ही एकमात्र हल मानते हैं। खैर, तर्कों एवं दलीलों के चलते यह मामला अधरझूल में हैं। माननीय उच्च न्यायालय ने भी दिनोदिन विकराल होती समस्या के हल के लिए रेलवे एवं जिला प्रशासन से उपयुक्त उपाय बताने को कहा है।
वैसे भी समस्या इतनी विकट एवं बड़ी हो गई है कि इसका हल जल्द से जल्द खोजना जरूरी हो गया है। शहर और यातायात तेजी से बढ़ रहा है। आगे हालात और भी भयावह होंगे। ऐसा न हो लोगों के सब्र का बांध टूटे क्योंकि उनके धैर्य की परीक्षा लेने में सरकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। अब सरकार को चाहिए कि वह किसी के लाभ-हित के फेर में न पड़ते हुए केवल और केवल जनहित की बात करे। कहीं किसी का हित प्रभावित हो भी रहा है तो समस्या का हल मिल बैठकर चर्चा करने से ही निकाला जाए। देर बहुत हो चुकी है जनता अब हल चाहती है। सोने पर सुहागे वाली बात यह है कि दिल्ली से लेकर जयपुर एवं बीकानेर तक सरकार भी एक ही दल की है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 20 फरवरी 15 के अंक में प्रकाशित
कभी अपने समृद्ध व सांस्कृतिक इतिहास और बेजोड़ स्थापत्य के लिए जाना जाने वाला बीकानेर वर्तमान में कोटगेट एवं सांखला रेलवे फाटक को लेकर चर्चा में रहता है। शहर को दो हिस्सों में बांटने वाली रेललाइन पर बने इन फाटकों पर रोजाना लगने वाला जाम शहरवासियों के लिए नासूर से तो इसके समाधान के प्रयास किसी मजाक से कम नहीं हैं।
समाधान में रुकावट की सबसे बड़ी वजह सभी वर्गों का एकजुट नहीं होना है। सब अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग की तर्ज पर बयान जारी करने की होड़ में जुटे हैं। तभी तो कभी ओवरब्रिज बनने का शोर सुनाई देता है तो कभी अंडरब्रिज की बातें। कभी एलीवेटेड रोड की चर्चा होती है तो कभी बाईपास का मुद्दा जोर पकड़ता है। सियासी चेहरे एवं सरकारें बदलने के साथ प्रस्ताव भी बदल जाते हैं। एक सरकार के कार्यकाल में जिन प्रस्तावों पर काम होता है दूसरी सरकार उन्हें सिरे से खारिज कर देती है या बदल देती है। तभी तो समस्या न केवल सियासी फेर में उलझी हुई है बल्कि हित-लाभ से भी जुड़ी हुई है।
दरअसल, हल सभी चाहते हैं लेकिन एकराय नहीं हैं। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस समस्या से जुड़े छह पक्षकार हैं। सरकार, विपक्ष, प्रशासन, रेलवे, व्यापारी और आमजन। इनमें से केवल आमजन ही ऐसा वर्ग है जो बिना किसी शर्त या किन्तु-परन्तु के समस्या का हल चाहता है। सबसे प्रभावित एवं पीडि़त भी यही है। बाकी सभी वर्गों के सुर जुदा-जुदा हैं। बानगी देखिए रेलवे बाईपास बनाने का पक्षधर नहीं है। वह अंडरब्रिज या एलीवेटेड रोड की बात करता है। तर्क है कि रेलवे के तकनीकी अधिकारियों के नजर में यहां अंडरब्रिज या एलीवेटेड रोड बनाई जा सकती है। जिला प्रशासन का भी कमोबेश यही रुख है, लेकिन सरकार की भूमिका के आधार पर। फिलहाल प्रशासन की नजर में यहां अंडरब्रिज एवं एलीवेटेड रोड प्रस्तावित है लेकिन सरकार के नुमाइंदे स्थानीय विधायक के विचार इससे इतर हैं। वे अंडरब्रिज के समर्थन में नहीं हैं। एलीवेटेड के लिए भी शर्त है कि बने तो विशेषज्ञों से चर्चा करने के बाद। इधर, व्यापारी वर्ग भी कुछ शर्तों के साथ अंडरब्रिज एवं एलीवेटेड रोड के लिए तैयार है। सुझाव यह है कि समस्या का तात्कालिक हल नहीं खोजा जाए बल्कि दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए समाधान हो। विपक्षी दल के नुमाइंदे तो केवल बाईपास को ही एकमात्र हल मानते हैं। खैर, तर्कों एवं दलीलों के चलते यह मामला अधरझूल में हैं। माननीय उच्च न्यायालय ने भी दिनोदिन विकराल होती समस्या के हल के लिए रेलवे एवं जिला प्रशासन से उपयुक्त उपाय बताने को कहा है।
वैसे भी समस्या इतनी विकट एवं बड़ी हो गई है कि इसका हल जल्द से जल्द खोजना जरूरी हो गया है। शहर और यातायात तेजी से बढ़ रहा है। आगे हालात और भी भयावह होंगे। ऐसा न हो लोगों के सब्र का बांध टूटे क्योंकि उनके धैर्य की परीक्षा लेने में सरकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। अब सरकार को चाहिए कि वह किसी के लाभ-हित के फेर में न पड़ते हुए केवल और केवल जनहित की बात करे। कहीं किसी का हित प्रभावित हो भी रहा है तो समस्या का हल मिल बैठकर चर्चा करने से ही निकाला जाए। देर बहुत हो चुकी है जनता अब हल चाहती है। सोने पर सुहागे वाली बात यह है कि दिल्ली से लेकर जयपुर एवं बीकानेर तक सरकार भी एक ही दल की है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 20 फरवरी 15 के अंक में प्रकाशित
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