टिप्पणी
मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हमारे शहर के नए साल से दिन फिरने वाले हैं। जिला प्रशासन की पहल पर हमारे शहर को और अधिक साफ सुथरा, हरा-भरा, प्रदूषण मुक्त व बेहतर बनाने के लिए विभिन्न संस्थाएं अपनी भागीदारी निभाएंगी। इस समूची कार्ययोजना को अमलीजामा पहनाने की कवायद को नाम दिया गया है बेटर बीकानेर। इस महाभियान को मूर्त रूप देने की दिशा में शनिवार को बैठक भी हुई है, तो कुछ संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने इसके लिए कमर भी कस ली। वैसे यह सब सुनकर चौंकना स्वाभाविक है, क्योंकि बीकानेर के मौजूदा हालात देखते हुए यह सब होना किसी सुहाने सपने के सच होने से कम नहीं है। सरकारी घोषणाओं/योजनाओं का हश्र हम लोग पहले भी देख चुके हैं, इसलिए जेहन में कई तरह की शंकाओं व सवालों का उठना लाजिमी भी है कि आखिरकार यह सुहाना सपना कब व कैसे पूरा होगा? शहर में पहले से पसरी समस्याओं का समाधान हुए बिना आखिर इसकी परिकल्पना भी कैसे की जा सकती है?
वैसे हम सभी ने देखा है कि शहर के सौन्दर्यीकरण को लेकर कई बार कई तरह के प्रयोग हो चुके हैं, लेकिन शहर का सौन्दर्यीकरण कैसा है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। सड़क, बिजली, पानी, सीवरेज, गंदगी, रोडलाइट, आवारा पशु, बदहाल यातायात व्यवस्था व अतिक्रमण को लेकर न जाने कितने ही कार्ययोजनाएं बनी। व्यवस्था बनाए रखने के जिला स्तर पर दिशा-निर्देश तो हर सप्ताह ही जारी होते हैं लेकिन इनको गंभीरता से लेता कौन है? दिशा-निर्देशों की सर्वाधिक अवहेलना तो प्रशासनिक स्तर पर होती है। इधर, सफाई व्यवस्था को लेकर इन दिनों शहर में सक्रिय कई स्वयंसेवी संगठनों की हार्दिक इच्छा समस्या के समाधान के बजाय प्रचार व तात्कालिक लोकप्रियता हासिल करने की ज्यादा नजर आती है। तभी तो अधिकतर सफाई अभियानों में गंभीरता कम बल्कि औपचारिता हावी है। शोचनीय विषय यह भी है कि औपचारिता निभाने वालों की फेहरिस्त में सर्वाधिक संख्या सूचना एवं तकनीक का उपयोग करने वालों की ही है।
बहरहाल, जिला प्रशासन की पहल अच्छी है। अगर ईमानदारी से यह लागू हुई और इससे जुडे़ सभी संगठनों व संबंधित विभागों ने पूरी मेहनत एवं तन्मयता के साथ काम किया तो नि:संदेह इसके परिणाम सकारात्मक आएंगे लेकिन इस तरह के बड़े कामों के लिए ठोस कार्ययोजना और उसे पूरा करने का जज्बा होना भी जरूरी है। कागजों में बनी कार्ययोजना हो या पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन, देखने और सुनने में तो अच्छे लगते हैं, लेकिन उनको लागू करने की राह में आने वाली रुकावटों का समाधान भी जरूरी है। खैर, यह महाभियान सुहाना सपना सच करेगा या केवल सब्जबाग साबित होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल हम सुहाने सपने के सच होने की कल्पना कर खुश तो हो ही सकते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा भी है कि जिसने कल्पना के महल नहीं बनाए उसे वास्तविक महल भी उपलब्ध नहीं हो सकता है। यह बात दीगर है कि कल्पना को साकार करने के लिए हम कितने प्रयास करते हैं। यही बात जिला प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाओं व संगठनों से भी जुड़ी है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 28 दिसम्बर 14 के अंक में प्रकाशित
मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हमारे शहर के नए साल से दिन फिरने वाले हैं। जिला प्रशासन की पहल पर हमारे शहर को और अधिक साफ सुथरा, हरा-भरा, प्रदूषण मुक्त व बेहतर बनाने के लिए विभिन्न संस्थाएं अपनी भागीदारी निभाएंगी। इस समूची कार्ययोजना को अमलीजामा पहनाने की कवायद को नाम दिया गया है बेटर बीकानेर। इस महाभियान को मूर्त रूप देने की दिशा में शनिवार को बैठक भी हुई है, तो कुछ संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने इसके लिए कमर भी कस ली। वैसे यह सब सुनकर चौंकना स्वाभाविक है, क्योंकि बीकानेर के मौजूदा हालात देखते हुए यह सब होना किसी सुहाने सपने के सच होने से कम नहीं है। सरकारी घोषणाओं/योजनाओं का हश्र हम लोग पहले भी देख चुके हैं, इसलिए जेहन में कई तरह की शंकाओं व सवालों का उठना लाजिमी भी है कि आखिरकार यह सुहाना सपना कब व कैसे पूरा होगा? शहर में पहले से पसरी समस्याओं का समाधान हुए बिना आखिर इसकी परिकल्पना भी कैसे की जा सकती है?
वैसे हम सभी ने देखा है कि शहर के सौन्दर्यीकरण को लेकर कई बार कई तरह के प्रयोग हो चुके हैं, लेकिन शहर का सौन्दर्यीकरण कैसा है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। सड़क, बिजली, पानी, सीवरेज, गंदगी, रोडलाइट, आवारा पशु, बदहाल यातायात व्यवस्था व अतिक्रमण को लेकर न जाने कितने ही कार्ययोजनाएं बनी। व्यवस्था बनाए रखने के जिला स्तर पर दिशा-निर्देश तो हर सप्ताह ही जारी होते हैं लेकिन इनको गंभीरता से लेता कौन है? दिशा-निर्देशों की सर्वाधिक अवहेलना तो प्रशासनिक स्तर पर होती है। इधर, सफाई व्यवस्था को लेकर इन दिनों शहर में सक्रिय कई स्वयंसेवी संगठनों की हार्दिक इच्छा समस्या के समाधान के बजाय प्रचार व तात्कालिक लोकप्रियता हासिल करने की ज्यादा नजर आती है। तभी तो अधिकतर सफाई अभियानों में गंभीरता कम बल्कि औपचारिता हावी है। शोचनीय विषय यह भी है कि औपचारिता निभाने वालों की फेहरिस्त में सर्वाधिक संख्या सूचना एवं तकनीक का उपयोग करने वालों की ही है।
बहरहाल, जिला प्रशासन की पहल अच्छी है। अगर ईमानदारी से यह लागू हुई और इससे जुडे़ सभी संगठनों व संबंधित विभागों ने पूरी मेहनत एवं तन्मयता के साथ काम किया तो नि:संदेह इसके परिणाम सकारात्मक आएंगे लेकिन इस तरह के बड़े कामों के लिए ठोस कार्ययोजना और उसे पूरा करने का जज्बा होना भी जरूरी है। कागजों में बनी कार्ययोजना हो या पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन, देखने और सुनने में तो अच्छे लगते हैं, लेकिन उनको लागू करने की राह में आने वाली रुकावटों का समाधान भी जरूरी है। खैर, यह महाभियान सुहाना सपना सच करेगा या केवल सब्जबाग साबित होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल हम सुहाने सपने के सच होने की कल्पना कर खुश तो हो ही सकते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा भी है कि जिसने कल्पना के महल नहीं बनाए उसे वास्तविक महल भी उपलब्ध नहीं हो सकता है। यह बात दीगर है कि कल्पना को साकार करने के लिए हम कितने प्रयास करते हैं। यही बात जिला प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाओं व संगठनों से भी जुड़ी है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 28 दिसम्बर 14 के अंक में प्रकाशित
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