टिप्पणी
शहर के हालात इस कदर बिगड़े हुए क्यों हैं? इसका जवाब सोमवार को बीकानेर आई प्रशासनिक विभाग की टीम को मिल गया होगा। प्रशासनिक उदासीनता और अकर्मण्यता का जीता जागता उदाहरण देख यकीनन टीम चौंकी होगी। टीम के निरीक्षण के बाद सामने आई सरकारी विभागों की तस्वीर बेहद चिंताजनक है। कुछ देर के निरीक्षण में सैकड़ों अधिकारियों-कर्मचारियों का नदारद मिलना दर्शाता है कि सरकारी कार्यालयों का ढर्रा किस कदर पटरी से उतरा हुआ है। जिला मुख्यालय पर ही ऐसे हालात हैं तो फिर दूरदराज के देहाती इलाकों की तो सहज ही कल्पना की जा सकती है। निरीक्षण की बानगी देखिए कि टीम ने कुल 65 उपस्थिति पंजिकाओं का निरीक्षण किया। इसमें 299 में से 50 अधिकारी तथा एक हजार 21 में से 230 कर्मचारी अनुपस्थित पाए गए। कुलयोग देखें तो 1320 में 286 अधिकारी और कर्मचारी कार्यस्थल पर नहीं मिले।
हैरत की बात तो यह है कि अनुपस्थित रहने वालों का यह आंकड़ा 21 फीसदी से भी ज्यादा है। इससे सोचा जा सकता है कि इन कार्यालयों में जाने वाले फरियादी का काम किस अंदाज में होता होगा। अक्सर हम सभी ने देखा और महसूस भी किया होगा कि सरकारी कार्यालयों में सिर्फ एक आदमी के न होने से बनने वाला काम ऐन वक्त पर कैसे रुक जाता है। आज फलां बाबू नहीं कल आना या आज फलां साब नहीं बाद में आना जैसे जुमलों से आम लोग रोजाना दो चार होते हैं और बार-बार कार्यालयों के चक्कर लगाते हैं। तभी तो आमजन से जुड़ी समस्याओं की फेहरिस्त दिनोदिन लम्बी होती जा रही है। अगर लोकसेवक हैं तो फिर लोक सेवा से परहेज क्यों? खैर, यह तो बात केवल लेटलतीफी या अनुपस्थिति से ही जुड़ी है। सुविधाओं एवं सेवाओं की बात करें तो हालात होश फाख्ता करने जैसे हैं। संभाग के सबसे बड़े अस्पताल पीबीएम का दो दिन पहले ही चिकित्सा मंत्री जायजा लेकर गए थे। जयपुर से आई टीम भी सोमवार को पीबीएम गई। लगता ही नहीं वहां मंत्री की फटकार का कोई असर हुआ है? टीम ने यहां भी कई तरह की खामियां देखीं। इलाज की तो छोडि़ए मरीजों एवं उनके परिजनों को यहां पर शुद्ध पानी तक नसीब नहीं हो रहा है।
वाकई इस प्रकार के हालात डराने वाले हैं। ऐसे में इन निरीक्षणों का फायदा तभी है जब सकारात्मक परिणाम सामने आए। सिर्फ निरीक्षण कर अनुपस्थित रहने वालों की संख्या भर बता देने या नोटिस जारी करने की औपचारिकता से मकसद हल नहीं होने वाला। बहुत हो चुके इस प्रकार के निरीक्षण। अब तो इन रस्मी कार्रवाइयों से उम्मीद करना भी बेमानी सा हो चला है। अब तो कोशिश यह हो कि जयपुर की टीम की तर्ज पर स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन की अगुवाई में भी ऐसी टीम बने, जो समय-समय पर औचक निरीक्षण करे और लेटलतीफ एवं अनुपस्थिति रहने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे ताकि दूसरों के सामने उदाहरण पेश हो। ऐसा कुछ होगा तभी आम जन को इसका लाभ मिल पाएगा, वरना शहर भगवान भरोसे तो चल ही रहा है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 12 मई 15 के अंक में प्रकाशित
शहर के हालात इस कदर बिगड़े हुए क्यों हैं? इसका जवाब सोमवार को बीकानेर आई प्रशासनिक विभाग की टीम को मिल गया होगा। प्रशासनिक उदासीनता और अकर्मण्यता का जीता जागता उदाहरण देख यकीनन टीम चौंकी होगी। टीम के निरीक्षण के बाद सामने आई सरकारी विभागों की तस्वीर बेहद चिंताजनक है। कुछ देर के निरीक्षण में सैकड़ों अधिकारियों-कर्मचारियों का नदारद मिलना दर्शाता है कि सरकारी कार्यालयों का ढर्रा किस कदर पटरी से उतरा हुआ है। जिला मुख्यालय पर ही ऐसे हालात हैं तो फिर दूरदराज के देहाती इलाकों की तो सहज ही कल्पना की जा सकती है। निरीक्षण की बानगी देखिए कि टीम ने कुल 65 उपस्थिति पंजिकाओं का निरीक्षण किया। इसमें 299 में से 50 अधिकारी तथा एक हजार 21 में से 230 कर्मचारी अनुपस्थित पाए गए। कुलयोग देखें तो 1320 में 286 अधिकारी और कर्मचारी कार्यस्थल पर नहीं मिले।
हैरत की बात तो यह है कि अनुपस्थित रहने वालों का यह आंकड़ा 21 फीसदी से भी ज्यादा है। इससे सोचा जा सकता है कि इन कार्यालयों में जाने वाले फरियादी का काम किस अंदाज में होता होगा। अक्सर हम सभी ने देखा और महसूस भी किया होगा कि सरकारी कार्यालयों में सिर्फ एक आदमी के न होने से बनने वाला काम ऐन वक्त पर कैसे रुक जाता है। आज फलां बाबू नहीं कल आना या आज फलां साब नहीं बाद में आना जैसे जुमलों से आम लोग रोजाना दो चार होते हैं और बार-बार कार्यालयों के चक्कर लगाते हैं। तभी तो आमजन से जुड़ी समस्याओं की फेहरिस्त दिनोदिन लम्बी होती जा रही है। अगर लोकसेवक हैं तो फिर लोक सेवा से परहेज क्यों? खैर, यह तो बात केवल लेटलतीफी या अनुपस्थिति से ही जुड़ी है। सुविधाओं एवं सेवाओं की बात करें तो हालात होश फाख्ता करने जैसे हैं। संभाग के सबसे बड़े अस्पताल पीबीएम का दो दिन पहले ही चिकित्सा मंत्री जायजा लेकर गए थे। जयपुर से आई टीम भी सोमवार को पीबीएम गई। लगता ही नहीं वहां मंत्री की फटकार का कोई असर हुआ है? टीम ने यहां भी कई तरह की खामियां देखीं। इलाज की तो छोडि़ए मरीजों एवं उनके परिजनों को यहां पर शुद्ध पानी तक नसीब नहीं हो रहा है।
वाकई इस प्रकार के हालात डराने वाले हैं। ऐसे में इन निरीक्षणों का फायदा तभी है जब सकारात्मक परिणाम सामने आए। सिर्फ निरीक्षण कर अनुपस्थित रहने वालों की संख्या भर बता देने या नोटिस जारी करने की औपचारिकता से मकसद हल नहीं होने वाला। बहुत हो चुके इस प्रकार के निरीक्षण। अब तो इन रस्मी कार्रवाइयों से उम्मीद करना भी बेमानी सा हो चला है। अब तो कोशिश यह हो कि जयपुर की टीम की तर्ज पर स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन की अगुवाई में भी ऐसी टीम बने, जो समय-समय पर औचक निरीक्षण करे और लेटलतीफ एवं अनुपस्थिति रहने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे ताकि दूसरों के सामने उदाहरण पेश हो। ऐसा कुछ होगा तभी आम जन को इसका लाभ मिल पाएगा, वरना शहर भगवान भरोसे तो चल ही रहा है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 12 मई 15 के अंक में प्रकाशित
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