टिप्पणी...
नि:संदेह यह बदलाव की बयार है, जो कालांतर में मील का पत्थर साबित होगी। यकीनन यह सियासत के लिए शुभ व सुखद संकेत हैं। यह एक ऐसी सुबह है, जिसके परिणाम भी सुखद ही आएंगे। वाकई यह ऐसी मजबूत बुनियाद है, जिस पर भविष्य में विकास की नई इमारत तैयार होगी। सचमुच में यह सोने पर सुहागा होने जैसा ही है, जिसमें दो तरह की विशेषताओं का समावेश है। वास्तव में यह नया इतिहास है, जो आने वाले पीढ़ी को कुछ हटकर करने के लिए प्रेरित करेगा। वाकई यह एक नजीर है, जिसका आने वाली पीढिय़ां अनुसरण करेंगी। हकीकत में यह सपने सच करने की दिशा में कदमताल करने की एक कारगर एवं क्रांतिकारी मुहिम है, जो कुछ कर गुजरने का जज्बा व हौसला देगी। बड़ी बात यह भी है कि परिवर्तन की पहल नीचे के स्तर से शुरू हुई है और उम्मीद की यह किरण गांवों में हुए पंचायत चुनाव और उनके नतीजों ने दिखाई है।
दरअसल, पंचायत चुनाव में शिक्षा की अनिवार्यता के चलते इस बार राजनीतिक दलों को अपनी परम्परागत रणनीति में बदलाव करने को मजबूर होना पड़ा। दलों को अनुभवी व राजनीति के मंजे हुए प्रत्याशी तो मिले लेकिन संख्या बल में उतने नहीं, जितने पिछले चुनावों में मिलते आए हैं। यह बात दीगर है कि भाजपा व कांग्रेस ने उम्रदराजों को भी टिकट दी लेकिन अधिकतर जगह मतदाताओं ने युवाओं के प्रति समर्थन जताकर उनके चयन को गलत साबित कर दिखाया। अपवाद स्वरूप कुछ जगह पर उम्रदराज जीते भी हैं लेकिन उनका आंकड़ा अंगुलियों पर गिनने जितना ही है। देखा जाए तो यह बड़ी संख्या में जीते युवा जनप्रतिनिधियों का ही कमाल था कि प्रमुख एवं प्रधान के पद लिए भी परम्परागत योग्यता गौण होती दिखाई दी। बानगी देखिए, बीकानेर जिले की श्रीडूंगरगढ़ पंचायत समिति का प्रधान बना रामलाल मात्र 22 साल का है। वह अभी बीसीए (बैचलर इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन) कर रहा है। बीकानेर पंचायत समिति की प्रधान बनी राधा भी केवल 24 साल की है। यह कहानी तो अकेली दो पंचायत समितियों की है। इस प्रकार के उदाहरण समूचे में प्रदेश में कई हैं।
वैसे युवाओं के लिए नई जिम्मेदारी किसी चुनौती से कम नहीं हैं। पंचायतों में भ्रष्टाचार, विकास कार्यों में भेदभाव व निर्माण सामग्री में गुणवत्ता से समझौता करने जैसे मामले अक्सर सामने आते हैं। जंग लगी व्यवस्ंथा और कमीशनखोरी के मकडज़ाल से पार पाना भी उनके लिए आसान काम नहीं है। इतना ही नहीं ग्राम पंचायत स्तर तक घुसपैठ कर चुकी दलीय राजनीति के कारण विकास से वंचित हिस्सों को मुख्यधारा में लाना भी उनके समक्ष टेढ़ी खीर है। उम्मीद की जानी युवा जनप्रतिनिधि पंचायत समितियों एवं जिला परिषद के प्रति बनी आम धारणा को तोड़ेंगे तथा लोकतंत्र के प्रति मतदाताओं की आस्था को और अधिक प्रगाढ़ करने की दिशा में काम करेंगे। युवा व शिक्षित होने के नाते उनसे यह अपेक्षा भी की जाती है कि वे हर तरह के फैसले के भागीदार नहीं बनेंगे। अनपढ़ जनप्रतिनिधियो की तरह वे किसी का टूल नहीं बनेंगे। बाहरी हस्तक्षेप से प्रभावित होने, किसी के बरगलाने या दबाव में आने की प्रवृत्ति से दूर रख खुद के स्वविवेक से लोगों के हित में फैसला लेंगे। इतना ही नहीं पंचायत समिति व जिला परिषद की बैठकों में चुपचाप बैठकर सुनने की बजाय समूचे जिले की विकास की बात करते हुए अपनी बात बेबाकी व ईमानदारी के साथ रखेंगे। युवा जनप्रतिनिधियों को तय कर लेना चहिए कि वे विकास कार्यों को न तो राजनीतिक चश्मे देखेंगे और न हीं किसी गड़बड़ी को देखकर आंखें मूंदेंगे। सभी जनप्रतिनिधियों का एक सूत्री कार्य सबका विकास और समान रूप से विकास होना चाहिए। वे ऐसे स्थानों का चयन भी कर सकते हैं, जहां विकास की लौ अब तक रोशन नहीं हो पाई है।
बहरहाल, नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधि भले ही राजनीति के नए खिलाड़ी हों। अनुभव के लिहाज से सियासत में उनको परिपक्व नहीं माना जाए, लेकिन उनके साहस, हौसले व ऊर्जा के सामने परिपक्वता व अनुभव जैसे शब्द छोटे पड़ जाते हैं। वैसे भारत युवाओं का देश है। देश की आबादी का पचास फीसदी से ज्यादा हिस्सा युवा है। कहा भी गया है कि अगर युवा शक्ति का उपयोग सही एवं सकारात्मक दिशा में किया जाए तो निंसदेह वह क्रांति ला सकती है। क्योंकि युवा मन में सपने होते हैं। कुछ कर गुजरने का साहस होता है। उनमें दुनिया बदलने का दमखम दिखाई देता है। चिर पुरातन वेद भी नमो युवभ्य कहकर ही युवाओं की महिमा का बखान करता है। तभी तो जिस उम्मीद और हसरत से ग्रामीणों ने सत्ता की चाबी युवाओं को सौंपी है। वे उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे और ग्रामीण गौरव व विकास की गाथा लिखने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। युवाओं को देश का भविष्य और कर्णधार भी तो इसीलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी सोच, जोश, जज्बे और जुनून को अगर सकारात्मक दिशा मिल जाए तो फिर उसके सामने हर मुश्किल खुद-ब-खुद आसान हो जाती है। इस बड़े परिवर्तन के लिए मतदाताओं के फैसले को सलाम। युवा शक्ति को सलाम।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 8 फरवरी 15 के अंक में प्रकाशित
नि:संदेह यह बदलाव की बयार है, जो कालांतर में मील का पत्थर साबित होगी। यकीनन यह सियासत के लिए शुभ व सुखद संकेत हैं। यह एक ऐसी सुबह है, जिसके परिणाम भी सुखद ही आएंगे। वाकई यह ऐसी मजबूत बुनियाद है, जिस पर भविष्य में विकास की नई इमारत तैयार होगी। सचमुच में यह सोने पर सुहागा होने जैसा ही है, जिसमें दो तरह की विशेषताओं का समावेश है। वास्तव में यह नया इतिहास है, जो आने वाले पीढ़ी को कुछ हटकर करने के लिए प्रेरित करेगा। वाकई यह एक नजीर है, जिसका आने वाली पीढिय़ां अनुसरण करेंगी। हकीकत में यह सपने सच करने की दिशा में कदमताल करने की एक कारगर एवं क्रांतिकारी मुहिम है, जो कुछ कर गुजरने का जज्बा व हौसला देगी। बड़ी बात यह भी है कि परिवर्तन की पहल नीचे के स्तर से शुरू हुई है और उम्मीद की यह किरण गांवों में हुए पंचायत चुनाव और उनके नतीजों ने दिखाई है।
दरअसल, पंचायत चुनाव में शिक्षा की अनिवार्यता के चलते इस बार राजनीतिक दलों को अपनी परम्परागत रणनीति में बदलाव करने को मजबूर होना पड़ा। दलों को अनुभवी व राजनीति के मंजे हुए प्रत्याशी तो मिले लेकिन संख्या बल में उतने नहीं, जितने पिछले चुनावों में मिलते आए हैं। यह बात दीगर है कि भाजपा व कांग्रेस ने उम्रदराजों को भी टिकट दी लेकिन अधिकतर जगह मतदाताओं ने युवाओं के प्रति समर्थन जताकर उनके चयन को गलत साबित कर दिखाया। अपवाद स्वरूप कुछ जगह पर उम्रदराज जीते भी हैं लेकिन उनका आंकड़ा अंगुलियों पर गिनने जितना ही है। देखा जाए तो यह बड़ी संख्या में जीते युवा जनप्रतिनिधियों का ही कमाल था कि प्रमुख एवं प्रधान के पद लिए भी परम्परागत योग्यता गौण होती दिखाई दी। बानगी देखिए, बीकानेर जिले की श्रीडूंगरगढ़ पंचायत समिति का प्रधान बना रामलाल मात्र 22 साल का है। वह अभी बीसीए (बैचलर इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन) कर रहा है। बीकानेर पंचायत समिति की प्रधान बनी राधा भी केवल 24 साल की है। यह कहानी तो अकेली दो पंचायत समितियों की है। इस प्रकार के उदाहरण समूचे में प्रदेश में कई हैं।
वैसे युवाओं के लिए नई जिम्मेदारी किसी चुनौती से कम नहीं हैं। पंचायतों में भ्रष्टाचार, विकास कार्यों में भेदभाव व निर्माण सामग्री में गुणवत्ता से समझौता करने जैसे मामले अक्सर सामने आते हैं। जंग लगी व्यवस्ंथा और कमीशनखोरी के मकडज़ाल से पार पाना भी उनके लिए आसान काम नहीं है। इतना ही नहीं ग्राम पंचायत स्तर तक घुसपैठ कर चुकी दलीय राजनीति के कारण विकास से वंचित हिस्सों को मुख्यधारा में लाना भी उनके समक्ष टेढ़ी खीर है। उम्मीद की जानी युवा जनप्रतिनिधि पंचायत समितियों एवं जिला परिषद के प्रति बनी आम धारणा को तोड़ेंगे तथा लोकतंत्र के प्रति मतदाताओं की आस्था को और अधिक प्रगाढ़ करने की दिशा में काम करेंगे। युवा व शिक्षित होने के नाते उनसे यह अपेक्षा भी की जाती है कि वे हर तरह के फैसले के भागीदार नहीं बनेंगे। अनपढ़ जनप्रतिनिधियो की तरह वे किसी का टूल नहीं बनेंगे। बाहरी हस्तक्षेप से प्रभावित होने, किसी के बरगलाने या दबाव में आने की प्रवृत्ति से दूर रख खुद के स्वविवेक से लोगों के हित में फैसला लेंगे। इतना ही नहीं पंचायत समिति व जिला परिषद की बैठकों में चुपचाप बैठकर सुनने की बजाय समूचे जिले की विकास की बात करते हुए अपनी बात बेबाकी व ईमानदारी के साथ रखेंगे। युवा जनप्रतिनिधियों को तय कर लेना चहिए कि वे विकास कार्यों को न तो राजनीतिक चश्मे देखेंगे और न हीं किसी गड़बड़ी को देखकर आंखें मूंदेंगे। सभी जनप्रतिनिधियों का एक सूत्री कार्य सबका विकास और समान रूप से विकास होना चाहिए। वे ऐसे स्थानों का चयन भी कर सकते हैं, जहां विकास की लौ अब तक रोशन नहीं हो पाई है।
बहरहाल, नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधि भले ही राजनीति के नए खिलाड़ी हों। अनुभव के लिहाज से सियासत में उनको परिपक्व नहीं माना जाए, लेकिन उनके साहस, हौसले व ऊर्जा के सामने परिपक्वता व अनुभव जैसे शब्द छोटे पड़ जाते हैं। वैसे भारत युवाओं का देश है। देश की आबादी का पचास फीसदी से ज्यादा हिस्सा युवा है। कहा भी गया है कि अगर युवा शक्ति का उपयोग सही एवं सकारात्मक दिशा में किया जाए तो निंसदेह वह क्रांति ला सकती है। क्योंकि युवा मन में सपने होते हैं। कुछ कर गुजरने का साहस होता है। उनमें दुनिया बदलने का दमखम दिखाई देता है। चिर पुरातन वेद भी नमो युवभ्य कहकर ही युवाओं की महिमा का बखान करता है। तभी तो जिस उम्मीद और हसरत से ग्रामीणों ने सत्ता की चाबी युवाओं को सौंपी है। वे उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे और ग्रामीण गौरव व विकास की गाथा लिखने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। युवाओं को देश का भविष्य और कर्णधार भी तो इसीलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी सोच, जोश, जज्बे और जुनून को अगर सकारात्मक दिशा मिल जाए तो फिर उसके सामने हर मुश्किल खुद-ब-खुद आसान हो जाती है। इस बड़े परिवर्तन के लिए मतदाताओं के फैसले को सलाम। युवा शक्ति को सलाम।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 8 फरवरी 15 के अंक में प्रकाशित
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