टिप्पणी...
प्रदेश का पहला तथा देश का दूसरा सबसे बड़ा गो अभयारण्य बीकानेर में बनेगा। इसके लिए राज्य के आगामी बजट में घोषणा संभव है। इस के संकेत बुधवार को बीकानेर आए प्रदेश के वन, खनन व पर्यावरण राज्य मंत्री तथा जिला प्रभारी राजकुमार रिणवा ने दिए। अगर घोषणा कागजों से बाहर निकल कर धरातल पर आई तो निसंदेह यह बहुत बड़ा एवं नेक काम होगा। यह न केवल बीकानेर बल्कि समूचे प्रदेश में गोधन की दुर्दशा रोकने की दिशा में कारगर पहल होगी। चिंता केवल इस बात की कि यह घोषणा घोषणा ही न हर जाए, क्योंकि पूर्व की कई घोषणाओं का हश्र बीकानेर के लोग देख चुके हैं। एक दो नहीं अपितु दर्जनों योजनाएं-घोषणाएं हैं, जो किसी न किसी वजह से अटकी पड़ी हैं। इनमें कुछ पिछले बजट की तो कुछ सरकार आपके द्वार कार्यक्रम दौरान की भी हैं।
बीकानेर को सिरेमिक हब बनाने का इंतजार लम्बा हो रहा है। राज्य सरकार ने पिछले साल इसकी घोषणा की थी। ग्रीन सिटी बनाने का सपना अभी तक अधूरा है। शहर की बदहाल यातायात व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मल्टीस्टोरी पार्किंग की घोषणा पर काम शुरू नहीं पाया। दो दशक से चल रहा रवीन्द्र रंगमंच का निर्माण तो किसी मजाक से कम नहीं है। कोटगेट रेलवे क्रॉसिंग का समाधान तो सियासी फेर में उलझा हुआ है। कई सर्वे व कवायद के बावजूद शहर की सबसे ज्वलंत समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। दरअसल, शासन-प्रशासन का एकसूत्री ध्यान जनहित को दरकिनार कर कुछ खास लोगों को खुश रखने का रास्ता खोजने पर ज्यादा है। आरओबी, आरयूबी या एलिवेटेड रोड कुछ भी बने लेकिन लगभग नासूर बन चुकी इस समस्या का समाधान बेहद जरूरी है।
लम्बित घोषणाओं-योजनाओं की फेहरिस्त यहीं तक सीमित नहीं है। बीकानेर जिले को शामिल करते हुए डेजर्ट सर्किट व हैरिटेज वाक बनाने की दिशा में भी काम नहीं हुआ है। सूरसागर में हार्वेस्ंिटग सिस्टम विकसित करने के रास्ते खोजने में भी विलम्ब हो रहा है। शहर में सीवरेज व्यवस्था लडख़ड़ा रही है वहीं, गंगाशहर, भीनासर व परकोटे के भीतरी शहर में सीवरेज का काम अभी बकाया है। साइक्लिंग वेलोड्रम तथा सार्दुल स्पोटर्स स्कूल के विकास की घोषणा भी पूरा होने की बाट जोह रही हैं। 55 सौ विद्यार्थियों पर नया कॉलेज खोलने तथा एमएस एवं डूंगर कॉलेज को संघटक कॉलेज बनाने के प्रयास भी सिरे नहीं चढ़े हैं। तकनीकी विवि का नए सिरे से गठन का इंतजार भी लम्बा हो रहा है। एयरपोर्ट शुरू हुए भी काफी समय हो गया लेकिन हवाई सेवाओं का इंतजार है। मेगा फूड पार्क को लेकर तो किसी तरह की गंभीरता नजर नहीं आती।
इनके अलावा नहरी क्षेत्र की सड़कें बनाने का काम पीडब्ल्यूडी को सौंपा गया। इसके लिए 27 करोड़ का बजट प्रस्तावित था लेकिन प्रस्ताव स्वीकृत नहीं हुआ। छह प्राचीन मंदिरों के पुनरुद्धार से पहले मास्टर प्लान बनाने के काम में कोई प्रगति नजर नहीं आती है। उपनिवेशन क्षेत्र के काश्तकारों से संबंधित मामले हालांकि हल तो हुए हैं लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में प्रकरण लम्बित हैं। इसी तरह हाइड्रोलोजिकल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के लिए सात करोड़ तो मिले लेकिन को काम को गति नहीं मिल पाई। स्प्रिकंलर सिंचाई के लिए 15 हजार करोड़ की परियोजना पर राज्य सरकार के स्तर पर कोई निर्णय नहीं हो सका है।
बहरहाल, राज्य सरकार आगामी बजट में बीकानेर को भले ही कोई नई सौगात दे या इस दिशा में कोई घोषणा करे, उससे कहीं बेहतर है पुरानी घोषणाओं को पूरा कर दे, क्योंकि लम्बित घोषणाओं को पूरा करना भी किसी सौगात से कम नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए राज्य सरकार इस बारे में गंभीरता एवं ईमानदारी से सोचेगी और काम करवाएगी। प्रभारी मंत्री की बजट से पूर्व बैठक बुलाने की सार्थकता भी इसी बात में है।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 13 फरवरी 15 के अंक में प्रकाशित
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