Wednesday, May 20, 2015

स्थायी समाधान जरूरी


 टिप्पणी...

समस्या का लम्बे इंतजार के बाद भी समाधान नहीं हो तो प्रभावित लोगों के सब्र का बांध आखिरकार टूट ही जाता है। बीकानेर में रेल फाटकों की समस्याओं से उकताए लोगों का हाल भी कुछ ऐसा ही है। बंद फाटकों पर रुककर या वाहनों के जमावड़े में फंसने के बजाय वाहन चालकोंने इसका तोड़ निकाल लिया है। रेलवे स्टेशन से लालगढ़ तक बने पांच दर्जन से अधिक अवैध रास्ते इस बात का प्रमाण हैं। भले ही यह जल्दी निकलने या कहीं समय पर पहुंचने के लिए जुगाड़ू रास्ते हो लेकिन इनको इस तरह पार करना सही नहीं है। गलत एवं गैरकानूनी होने के बावजूद यह वाहन चालकों की आदत में यह शुमार हो चुका है। बिना किसी डर के दिनदहाड़े पटरियां पार करने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह संख्या सैकड़ों में नहीं बल्कि हजारों में है। इस तरह की लापरवाही कभी भी बड़े हादसे का सबब बन सकती है। शहर को दो हिस्सों में बांटने वाला श्रीगंगानगर-बीकानेर-जयपुर मार्ग घुमावदार होने के कारण अक्सर अनहोनी की आंशका बनी रहती है। इसके बावजूद लोग जान दांव पर लगाने से बाज नहीं आते।
वैसे कानून हाथ में लेने की इस मजबूरी को हवा देने में रेलवे प्रशासन का रवैया भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। भले ही रेलवे ने चोर रास्तों को बंद करने के लिए कई जगह दीवारें बनवाई लेकिन कानून तोडऩे वालों पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई। पटरी पार करने वालों के मन में किसी तरह का भय इसीलिए भी नहीं है कि रेलवे की तरफ से किसी तरह का कोई अभियान भी नहीं चलता है। भले ही वह कार्रवाई का हो या समझाइश का लेकिन चले तो सही। वैसे तो रेलवे की ओर से मानव रहित फाटकों पर जागरुकता विषयक कार्यक्रम होते रहते हैं लेकिन शहर में अवैध रूप से पटरी पार करने वालों के लिए जागरुकता कोई मायने नहीं रखती। शायद रेलवे इसीलिए भी चुप है कि अगर इस बहाने लोगों को छेड़ा तो फिर वे समाधान की गुहार लगाएंगे। इसीलिए जो चल रहा है चलने दो कि तर्ज पर सब हो रहा है। और इसी बात पर न केवल रेलवे बल्कि वाहन चालक भी सहमत दिखाई देते हैं। दरअसल, समस्या की मुख्य जड़ रेल फाटकों पर लगने वाला जाम ही है। शहर के हजारों लोगों को प्रतिदिन इधर से उधर और उधर से इधर आना-जाना पड़ता है। तमाम सरकारी कार्यालय, बस स्टैण्ड, अस्पताल आदि एक ओर ही हैं। किसी को समय पर कार्यालय पहुंचना होता है तो किसी को इलाज के लिए अस्पताल। किसी को जरूरी काम के चलते बस पकडऩी होती है तो किसी को नगर निगम या कलक्ट्रेट पहुंचना होता है।
बहरहाल, समस्या का स्थायी समाधान समय की मांग है लेकिन जिम्मेदार लोग इस समस्या के निबटारे को लेकर न तो गंभीर हैं और न ही एकमत। तभी तो जाम से मुक्ति का मार्ग केवल किन्तु-परन्तुओं में अटका हुआ है। कहीं किसी के हित आड़े आ रहे हैं तो कहीं कुछ ओर। वैसे जाम से सर्वाधिक पीडि़त आमजन ही है। पटरी पार कर जान जोखिम में डालने वाला भी आमजन ही हैं। फाटकों का समाधान हो तो लाभान्वित होने वाला भी आम वर्ग ही होगा। इस तरह के चोर रास्तों पर आवागमन बंद होने की उम्मीद भी तभी की जा सकती है। वरना मौजूदा हालात और सियासी फेर में अटकी इस समस्या पर कवि सुरेन्द्र शर्मा की यह पक्तियां मौजूं हैं 'कोई फर्क नहीं पड़ता इस देश में राजा राम हो या रावण। जनता तो बेचारी सीता है। रावण राजा हुआ तो वनवास से चोरी चली जाएगी और राम राजा हुआ तो अग्नि परीक्षा के बाद फिर वनवास पर भेज दी जाएगी। अब कोई फर्क नहीं पड़ता इस देश में राजा कौरव हो या पाण्डव। जनता तो बेचारी द्रौपदी है। कौरव राजा हुए तो चीरहरण और पांडव राजा तो जुए में हरा दी जाएगी।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 19 मार्च 15 के अंक में प्रकाशित

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