टिप्पणी
जब समूचा शहर मां दुर्गा की आराधना में डूबा हुआ है। शक्ति रूप में कन्याओं की पूजा की जा रही है। ऐसे समय में नाली में कन्या भ्रूण मिलना गंभीर है। एक ऐसी सामाजिक बुराई, जो हमको कचोटती है और झकझोरती भी है। एक ऐसा बदनुमा दाग जो हमको शर्मसार करता है। बीकानेर में एक सप्ताह के भीतर भ्रूण मिलने की यह दूसरी घटना है। बात शर्मनाक इसीलिए भी है कि यह सब हमारे शहर में हो रहा है। हमारा शहर जो छोटी काशी के नाम से विख्यात है। यहां आस्था की प्रगाढ़ता दूसरे शहरों के लिए किसी नजीर से कम नहीं है। धर्म-कर्म व सेवा भावना यहां के खून में है। धार्मिक पदयात्रियों के लिए कदम-कदम पर सेवा शिविर लगाकर खुद को धन्य समझने वाले भी हम ही लोग हैं। आवारा पशुओं के लिए हरा चारा खरीदकर उनकी निस्वार्थ सेवा करने वाले भी बीकानेरी ही हैं। सहयोग व सद्भाव यहां की परम्परा है। भाईचारे एवं इंसानियत के तो यहां कई उदाहरण हैं।
मानवीय संवेदनाओं को सहेजने और महसूस करने वाले हमारे बीकानेर में इस प्रकार का घटनाक्रम निसंदेह घिनौना कृत्य है। बीकानेर जैसे शहर एवं माहौल में ऐसे कृत्य घटित होना शोचनीय भी है। इतना ही नहीं प्रशासन एवं स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं। पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता बदलने तथा बेटा-बेटी को समान समझने के लिए कई तरह की इनामी योजनाएं भी ईजाद की गई हैं। अभी हाल ही में जिला कलक्टर ने तो अभिनव प्रयोग करते हुए किसी के घर में कन्या पैदा होने पर संबंधित दम्पती को बधाई संदेश भेजने का फैसला किया है। इस तरह की कवायद से परिणाम अनुकूल आएंगे। लेकिन शहर एवं जिले के मौजूदा जो हालात हैं वो चौंकाते हैं। जिले की तस्वीर डराती है। सन २००१ की जनगणना के मुकाबले २०११ की जनगणना में जिले में प्रति हजार पुरुषों के पीछे महिलाओं की संख्या में कुछ बढोतरी जरूर हुई लेकिन इस आंकड़े पर हम ज्यादा खुश नहीं हो सकते। क्योंकि ० से छह साल के बच्चों की तुलना करें तो लिंगानुपात कम हुआ है। सोचिए हम इसी रफ्तार से बढ़ते रहे तो बेटियों का अकाल पड़ जाएगा।
बहरहाल, संकल्प करें। इस बात की शपथ लें कि हम बेटियों को भी उतना ही मान-सम्मान, प्यार व स्नेह देंगे जितना बेटों को देते आए हैं। दोनों में किसी तरह का भेद नहीं करेंगे। समय की मांग भी यही है, अगर आज हमने इस मांग को अनसुना कर दिया तो कल कुंवारों की लम्बी चौड़ी फौज खड़ी हो जाएगी। चूंकि हमारा शहर सेवाभावी लोगों का है। यहां मानवीय संवेदनाएं अभी जिंदा हैं। जब नवरात्र में हम कन्याओं को दुर्गा का स्वरूप मान पूजा करते हैं तो बाकी दिनों में क्या यह संभव नहीं? नवरात्र से पुनीत एवं अच्छा मौका और कोई हो भी नहीं सकता। और हां, मां दुर्गा भी तभी खुश होंगी जब हम उनकी प्रतिमूर्तियों को बराबर का हक देकर मान-सम्मान के साथ उनको आगे बढाएंगे। खैर, अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है। हम सब ठान लें और प्रण करें कि इस बुराई को दूर करके रहेंगे तो मुश्किल कुछ भी नहीं है। वाकई मां दुर्गा की सच्ची पूजा भी तभी होगी।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 30 सितम्बर14 के अंक में प्रकाशित
No comments:
Post a Comment