Thursday, July 2, 2020

लॉकडाउन कथा-1

बस यूं ही
जीवन में जब कुछ अलग हट कर होता है, अनूठा होता है, अजूबा होता है या फिर उल्लेखनीय होता है तो उसका उल्लेख करना तो बनता ही है। कोरोना वायरस भी एक तरह का अजूबा ही है। अचंभा है। मुआ जब से देश में आया है इससे बावस्ता न जाने कितने ही किस्से, कहानियां, परेशानियां आदि शुरू हो गए। कोई इससे अछूता नहीं है। कल तक जो कहते फिरते थे, मेरे बिना तो काम ही नहीं चलता। वो भी आज लॉकडाउन के चलते घर में कैद होकर काम चलता हुआ देख रहे हैं। खैर, लगातार पन्द्रह दिन घर में बिताने के बाद आज सहसा मुझे भी यह ख्याल आया कि क्यों न इस पखवाड़े भर के अनुभव को कलमबद्ध कर सबसे साझा किया जाएगा। इसमें वो सब बातें शामिल होंगी जो प्रत्यक्ष महसूस की या अप्रत्यक्ष रूप से जानी या सुनी । जीवन की सबसे बड़ी सीख तो यही मिली कि चाहे कुछ भी हो जाए, जिदंगी कभी रुकती नहीं। कल तक सड़कों पर दौड़ रही थी, आज बंद कमरों में रेंग रही है, मगर चल रही है। जीवन चलने का नाम है, लिहाजा रुक या थम सकता भी नहीं। उदरपूर्ति के लिए हाथ-पैर तो हिलाने ही पड़ेंगे। हमको भी 20 मार्च तक तो पता नहीं था कि आगे यह होने वाला है, वरना हम भी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए कुछ अग्रिम तैयारी कर लेते लेकिन आम भारतीय की जैसी धारणा है, वैसी ही हमारी रही और तनिक भी गंभीरता से न लिया न सोचा। लेते भी कैसे, सोचा भी न था एेसा होगा। पहली चिंता तो यही थी कि बीस साल से जो काम आफिस जाकर कर रहे थे, वह घर से कैसे होगा। बस इसी उधेड़बुन में फंस कर रह गए। वैसे बीस मार्च को मामले की गंभीरता को समझ जाते तो काफी परेशानियों से बच सकते हैं, लेकिन एेसा हो न सका और चपेट में आ गए। खैर, पन्द्रह दिन का अनुभव ज्यादा तो नहीं फिर भी कुल मिलाकर सबक देने वाला, कुछ सीखने वाला ही रहा है। कहा भी कहा गया है आवश्यकता आविष्कार ही जननी है। इसी बात को दूसरे शब्दों में समझा जाए तो मरता क्या न करता। जब खुद पर पड़ती है तो रास्ता खुद ब खुद बनाना ही पड़ता है।

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