Thursday, July 2, 2020

इंसानियत

कथा
कोरोना महामारी के चलते लगे कर्फ्यू का आज दसवां दिन था। रसोई घर में सब्जी खत्म हो चुकी थी। श्रीमती जोशी ने रसोई से ही पति को आवाज दी, अजी सुनते हो, जरा बाजार तक हो आना, आज सब्जी बनाने के लिए कुछ नहीं है। श्रीमती की आवाज सुनकर टीवी पर नजर गड़ाए बैठे पुरुषोत्तम जोशी झट से खड़े हो गए। जल्दी में कुर्ता पहना, खूंटी पर टंगा थैला उठाया और चलते-चलते ही चप्पल पहनी और अपने स्कूटर की तरफ लपके। करीब तीन दशक से साथ निभा रहा स्कूटर आज भी पहली किक में ही स्टार्ट हो गया। जोशी जी ने हेलमेट पहना और निकल पड़े सब्जी मंडी की ओर। अभी घर से दो किमी ही चले होंगे कि एक पुलिसवाले ने रोक दिया। कहने लगा कर्फ्यू लगा है आप आगे नहीं जा सकते। जोशी जी ने उससे बहुत मिन्नतें की लेकिन पुलिसवाला टस से मस नहीं हुआ। बुझे मन से पुरुषोत्तम जोशी जी ने अपना स्कूटर वापस मोड़ लिया। वो बामुश्किल आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि सड़क किनारे हरी सब्जियों से भरा मिनी ट्रक खड़ा दिखाई दिया। उसे देख जोशी जी की आंखों में चमक आई और वो बड़ी उम्मीद से मिनी ट्रक की तरफ बढ़े। मिनी ट्रक की केबिन में दाढी वाले व कुर्ता सलवार पहने दो अधेड़ सुस्ता रहे थे। जोशी जी ने उनको आवाज लगाई।
भाईसाहब सब्जी है क्या?
अंदर से आवाज आई, सब्जी तो है लेकिन यह किसी की अमानत है।
जोशी जी- अमानत से मतलब?
ट्रक वाला- अरे भाईसाहब यह ट्रक सब्जी मंडी जाएगा। यह सारी सब्जी बिकी हुई है।
जोशी जी- भाई कुछ तो तरस खाओ। दस दिन से घर में कैद हैं। मुझे मोहल्ले की नहीं अपने घर के लिए सब्जी चाहिए।
ट्रक वाला- भाईसाहब, माफ करें हम आपको सब्जी नहीं दे सकते। हमारे पास तौलने को न बाट है ना ही कोई कांटा। और हमने आपको सब्जी दे भी दी तो यह अमानत में खयानत होगी।
जोशी जी- अरे भाई यह अमानत में खयानत कैसी? यह तो सेवा है। संकट के समय में सेवा करना तो एक तरह का पुण्य ही है।
ट्रक वाला जोशी जी की बात पर थोड़ा गंभीर हुआ। वह केबिन से बाहर आया और ट्रक में रखी सब्जी में दो घीया, मुट्ठी पर भिंडी, मुटठी पर हरी मिर्च व पालक की एक पुली जोशी जी के थैली में रख दी। यकायक यह सब देख जोशी जी चौंके। फिर जेब टटोल कर पर्स निकाला। उसमें सौ रुपए का नोट निकालते हुए ट्रक वाले की तरफ बढ़ाया। यह सब देख ट्रक वाले ने हाथ जोड़ दिए। बोला, भाईसाहब पैसे देकर आप मुझे पाप का भागीदार बना रहे हैं। पैसे लेने का मतलब तो अमानत में खयानत ही हुई ना।
काफी देर तक जोशी जी सोच में डूबे ट्रक वाले का मुंह ताकते रहे। फिर सिर को झटका देकर सामान्य होते हुए ट्रक वाले को धन्यवाद देकर चल पड़े। जोशी जी के जेहन में सवाल जरूर आ रहे थे ना जान, ना पहचान...अजनबी होते भी उसने दर्द को.समझा। ऐसे ही लोगों के दम पर तो इंसानियत जिंदा है। यही तो होती है सच्ची इंसानियत।

No comments:

Post a Comment