Thursday, July 2, 2020

काश, मिन्नी लौट आए!

बस यूं ही
देर रात बिल्लियों की झगडऩे की आवाज को अनसुना करने का अपराध बोध मुझे अब कचोट रहा है। बार-बार बस एक ही ख्याल पछतावे का एहसास करा जाता है। काश, रात को मैं उठकर बाहर आकर गैलरी में देख लेता तो शायद वो नहीं होता जो मंगलवार सुबह आखों ने देखा। निर्मल भी आज रसोई की खिड़की को बार-बार देख रही है। रोज की तरह कटोरी में दूध रखा हुआ है लेकिन खिड़की में बैठकर दूध पिलाने के लिए वह मासूम सी म्याऊं-म्याउं वाली पुकार गायब है। जी हां पिछले दस दिन में वह हम सबसे कितनी घुलमिल गई थी। हम सब की चहेती बन गई थी। यूं समझिए कि परिवार का हिस्सा बन चुकी थी। क्या बच्चे और क्या बड़े, वह किसी से भी नहीं डरती थी। वह मस्ती करती, खूब खेलती और प्यार से गुर्राती भी। सच में हम सब के लिए एक खिलौना थी। लॉकडाउन की बंदिशों के चलते हम सब के लिए वह मनोरंजन का हिस्सा बन चुकी थी। वह देखकर पास आती है और फिर इस उम्मीद से कदमों में लेट जाती है कि उसके शरीर पर हाथ फिराए। इसको हाथ फिराना सुकून देता था। बच्चों के साथ तो वह जमकर मस्ती करती थी। गेंद के साथ उनसे घंटों खेलती। सुबह निर्मल को झाडू लगाते वक्त वह बार-बार आगे आ जाती, गोया कह रही हो यह बंद कर दो और उसको पुचकार दो। वह गुस्से में झाडूू को मुंह में दबा भी लेती थी। उसकी अठखेलियां भी गजब की थी। कार्टन के ऊपर रखी दरी के ऊपर चढऩा, उसके अंदर जाकर छिपना, फिर एक पैर बाहर निकालना कितना सुकून देता था। उसकी उपस्थिति भर से ही घर में रौनक थी। मैं तो दिन में न जाने कितनी बार बाहर आकर उसके पास बैठकर उसको सहलाता रहता।
वैसे जीवों से लगाव शुरू से ही है। बचपन में गाय, बकरी व भैंस सभी से वास्ता पड़ा। गाय का बछड़ा हो या बकरी का बच्चा, या भैंस का बच्चा। जब भी उनको बेचा जाता मैं दिन भर रोता। बचपन में एक दर्जन के करीब कुत्ते भी पाले। उनके मरने पर भी जार-जार रोया। श्रीगंगानगर में तो चार-पांच कुत्ते इतने घुलमिल गए थे कि रात को दो बजे भी आता तो दौड़ कर पैरो में लौट जाते। जीवों के प्रति इसी प्रेम ने मुझे बेहद संवेदनशील और अंदर से बेहद कमजोर बना दिया है। तभी तो बिल्ली के इस मासूम बच्चे के लिए सुबह से रोए जा रहा हूं। सुबह जैसे ही निर्मल ने बाहर बुलाया और गैलरी का नजारा दिखाया तो मैं अनिष्ट की आशंका से सहम गया। जगह-जगह बिखरे बाल तथा फर्श व दिवारों पर लगा मल मूत्र उस मासूम के संघर्ष की कहानी को बयां को कर रहा था। मैं कभी कूलर के पीछे तो कभी दरी के पीछे, कभी उस कार्टन के अंदर तो कभी जूतों के स्टेंड के पीछे बदहवास से उसका तलाशता रहा कि काश वो कहीं पर बैठी हुई दिखाई दे जाए लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी। फिर भी दिल यह मानने को तैयार नहीं है, कुछ गलत हुआ है। उम्मीद है वह मासूम डर के मारे कहीं दुबकी हो। काश यह उम्मीद सही हो जाए। मैंने उसे प्यार से नाम दिया था मिन्नी। काश मिन्नी लौट आए। सच में सुबह से घर के सभी लोग बहुत उदास है। लौट आओ मेरी बिल्लो रानी।

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