Thursday, July 2, 2020

यह रिश्ता क्या कहलाता है

बस यूं ही
कॉलेज के जमाने में फिल्म देखी थी तेरी मेहरबानिया। फिल्म में कुत्ते के मालिक की हत्या कर दी जाती है और बाद में कुत्ता अपने मालिक की हत्या का बदला लेता है। सच में इस फिल्म के सीन देखकर कई बार भावुक हुआ था। कुत्ते की प्रति पूरी सहानुभूति थी। वैसे भी जीवों से मुझे बेहद प्यार है। इनमें कुत्ता भी शामिल है। बचपन में कम से कम दस कुत्ते पाले लेकिन कोई जिंदा नहीं बचा। उनके मरने पर खूब रोता था। तब मां दिलासा देती थी, बेटा तू पाला मत कर, आवारा कुत्तों को ही अपना समझाकर। बस फिर कुत्ते पालना छोड़ दिए लेकिन कुत्तों को पुचकारने का क्रम कभी नहीं टूटा। श्रीगंगानगर में तीन कुत्तों से एेसा रिश्ता बना कि रात को दूर से ही गाड़ी की लाइट से वह जान जाते और अपनी जगह से खड़े होकर मेरी अगवानी करते। जैसी ही कार रुकती कोई शीशे पर पैर लगाकर खड़ा हो जाता तो कोई बोनट पर पंजे रख देता। जैसे ही मैं कार से बाहर निकलता वो पैरों मंे लोट जाते। वैसे कुत्ता वफादार होता है, उसके कई किस्से व कहानियां आपने भी पढ़ी व सुनी होंगी लेकिन मैंने तो कुत्तों की स्वामीभक्ति एवं वफादारी को साक्षात देखा व महसूस किया है। यह कुत्तों से प्रेम की नतीजा है कि जब कोई कुत्तों को मारता है या उन पर पत्थर फेंकता है तो मुझे बड़ा गुस्सा आता है। कई बार दोस्तों के हाथ से पत्थर गिरवाया भी है, यह कहते कि आप का क्या लेता है। क्यों मार रहे हो। जीवों के प्रति दया का यह भाव मां से ही संस्कार में मिला। मां कहती थी, कुत्ता तो बिना झोली का फकीर है। यह तो अपने कान के बराबर रोटी का टुकड़ा खाकर भी संतोष कर लेता है। यह बात दीगर है कि मुझे कुत्तों से डर भी लगता है, क्योंकि बारहवीं में था तब एक कुत्तिया ने काट लिया था। भले ही डरता रहूं लेकिन कुत्तों को मैंने शायद ही कभी मारा हो।
दरअसल, यह सारी भूमिका बांधने की जरूरत इसलिए पडी कि पिछले डेढ़ माह से जो देखा, वो भी जीव प्रेम की जीती जागती नजीर ही था। एक आवारा कुत्त्ता ससुर जी चहेता कब बना पता नहीं। वह उनके घर आकर बैठने लगा। कुत्ता दमदार था। रात को उसके रहते गली से गुजरना किसी के लिए आसान नहीं था। कोई दूसरा कुत्ता वहां से गुजरे यह तो उसको किसी भी सूरत में गंवारा नहीं था। मैं जब श्रीगंगानगर से जोधपुर आया तब ससुराल ही ठहरा। तब यह कुत्ता बीमार था। घर से बाहर दिन भर लेटा रहता। ससुर जी रात को उसको कपड़ा ओढ़ाते। इसको गोद में लेकर दूसरी करवट लिटाते। सुबह उसको दूध पिलाते। यह क्रम रोज का हिस्सा था। दो युवतियों का दिल भी कुत्ते की इस हालात पर पसीजा। वो भी बीच-बीच में आकर कुत्ते के जख्मों पर दवा लगाकर जाती। लगातार लेटे रहने से कुत्ते के शरीर पर कई जगह जख्म हो गए थे। कुत्ते की हालात में सुधार न देख ससुरजी चिंतित थे, हालांकि उनको एहसास हो गया था कि कुत्ता अब चंद दिनों का मेहमान है। बीच में एक शादी के सिलसिले में वो जोधपुर से बाहर गए तो चिंतित थे, कहने लगे मेरे जाते ही यह मर जाएगा। इसको कौन संभालेगा। खैर, वो वापस लौटे लेकिन कुत्ता जिंदा था। एक दिन कुत्ते को करवट बदलवाते वक्त वो गिर भी गए। हाथों पर खरोंच भी आई लेकिन उनकी सेवा में कोई कमी नहीं आई।
इन सब के बीच रविवार की एक घटना ने मुझे चौंका दिया। मरणासन्न कुत्ते के पास एक बुजुर्ग महिला बैठी थी। धर्मपत्नी ने बताया कि वह कुत्ते को गीता सुना रही है। मैं कई देर तक घर की बालकॉनी से उस महिला को देखता रहा। पहले वह जमीन पर बैठी थी। इसके बाद मैं पास जाकर भी उसको देखकर आया। महिला के हाथ में गीता थी थी और वह जोर-जोर से उच्चारण कर रही थी। आप यकीन नहीं करेंगे, करीब पांच घंटे तक वह महिला गीता पाठ करती रही। पहले वो जमीन पर बैठी थी। बाद में उनको पड़ोसी घर वालों ने कुर्सी दे दी। खैर, ससुर जी कल शाम को शादी के सिलसिले में फिर जोधपुर से बाहर चले गए लेकिन उनका प्यारा डॉगी उनकी अनुपस्थिति में मरणासन्न है।पता नहीं उसके प्राण कहां अटके हैं। वैसे जोधपुर में कुत्तों से प्रेम ज्यादा ही है। इस बात की गवाही गलियों में विचरण करती कुत्तों की लंबी चौड़ी फौज से लगाया जा सकता है। और हां जोधपुर को अपणायत का शहर कहा जाता है, पिछले डेढ़ माह में यह अपणायत मैंने आदमियों के प्रति तो नहीं लेकिन जीवों के प्रति जरूर देखी।

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