भारत-पाक विभाजन के साक्षी रहे दो रेलवे स्टेशनों एक श्रीगंगानगर जिले का हिंदुमलकोट है तो दूसरा बाड़मेर का मुनाबाव। दोनों आजादी से पहले के हैं और विभाजन के बाद 18 साल तक आबाद रहे। इनमें मुनाबाव फिर आबाद हुआ लेकिन हिंदुमलकोट वीरान ही रहा। हालांकि, सात माह से मुनाबाव स्टेशन बंद है। सुखद बात यह है कि मुनाबाव के फिर शुरू होने व हिंदुमलकोट के पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने की संभावना है। इन रेलवे स्टेशनों को लेकर पत्रिका की विशेष रिपोर्ट।
फिर छा सकता है हिंदुमलकोट
श्रीगंगानगर. हिंदुमलकोट रेलवे स्टेशन का अतीत समृद्ध रहा है। विभाजन से पहले हिंदुमलकोट बीकानेर रियासत की महत्वपूर्ण मंडी थी। यहां के व्यापारिक रिश्ते बहावलपुर, कराची, लाहौर व क्वेटा से लेकर अफगान, काबुल व कंधार तक थे। ब्रिटिश काल में बम्बई-दिल्ली को कराची से जोडऩे वाले 3 रेल मार्गों में से एक रेलमार्ग दिल्ली से बहावलपुर जाता था, जो बठिंडा और हिंदुमलकोट होकर गुजरता था। भारत-पाक के बीच 1965 के युद्ध के बाद पाकिस्तान क्षेत्र में रेल पटरियां उखाड़ ली गई। इसके बावजूद बठिंडा-दिल्ली रेल 1969 तक भारतीय सीमा तक आवागमन करती रही। 1970 में रेलवे स्टेशन को सीमा से 3 किमी दूर स्थानांतरित कर दिया।
श्रीगंगानगर. हिंदुमलकोट रेलवे स्टेशन का अतीत समृद्ध रहा है। विभाजन से पहले हिंदुमलकोट बीकानेर रियासत की महत्वपूर्ण मंडी थी। यहां के व्यापारिक रिश्ते बहावलपुर, कराची, लाहौर व क्वेटा से लेकर अफगान, काबुल व कंधार तक थे। ब्रिटिश काल में बम्बई-दिल्ली को कराची से जोडऩे वाले 3 रेल मार्गों में से एक रेलमार्ग दिल्ली से बहावलपुर जाता था, जो बठिंडा और हिंदुमलकोट होकर गुजरता था। भारत-पाक के बीच 1965 के युद्ध के बाद पाकिस्तान क्षेत्र में रेल पटरियां उखाड़ ली गई। इसके बावजूद बठिंडा-दिल्ली रेल 1969 तक भारतीय सीमा तक आवागमन करती रही। 1970 में रेलवे स्टेशन को सीमा से 3 किमी दूर स्थानांतरित कर दिया।
हो चुके कई प्रयास
चौकी को पर्यटन स्थल बनाने के लिहाज से वर्ष 2008 से 2012 तक काम हुआ। तत्कालीन बीएसएफ कार्यवाहक समादेष्टा आरके अरोड़ा व कलक्टर आशुतोष एटी पेडणेकर ने बीएडीपी में काम करवाए। वाघा-हुसैनीवाला की तर्ज पर भारत-पाकिस्तान की झंडा उताने की रस्म शुरू करने का प्रस्ताव सिरे चढ़ता नहीं लगा तो इसे इकतरफा शुरू करने पर भी विचार हुआ, लेकिन योजना सिरे नहीं चढ़ी।
चौकी को पर्यटन स्थल बनाने के लिहाज से वर्ष 2008 से 2012 तक काम हुआ। तत्कालीन बीएसएफ कार्यवाहक समादेष्टा आरके अरोड़ा व कलक्टर आशुतोष एटी पेडणेकर ने बीएडीपी में काम करवाए। वाघा-हुसैनीवाला की तर्ज पर भारत-पाकिस्तान की झंडा उताने की रस्म शुरू करने का प्रस्ताव सिरे चढ़ता नहीं लगा तो इसे इकतरफा शुरू करने पर भी विचार हुआ, लेकिन योजना सिरे नहीं चढ़ी।
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श्रीगंगानगर, बीकानेर व बाडमेर संस्करण में 17 फरवरी के अंक में प्रकाशित....
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