Thursday, July 2, 2020

पलायन रुके या प्रबंध हो

टिप्पणी
लॉकडाउन के बावजूद राजस्थान में भी बड़ी संख्या में मजदूर अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। अधिकतर जगह पर यह मेहनतकश लोग गृहस्थी का सामान सिर पर उठाए सपरिवार ही अपने गंतव्य की ओर बढ़ते दिखाई दे जाएंगे। विशेषकर दो राज्यों या दो जिलों की सीमाओं को पार करने वालों में इन मजदूरों की संख्या ही ज्यादा है। रोजगार की तलाश में बड़े शहरों में आए मजदूर लॉकडाउन के बाद बेरोजगार हो गए हैं। संकट का समय अपने गांव व अपनों लोगों के बीच बिताने की मानसिकता लिए यह लोग पैदल ही निकल पड़े हैं। जैसलमेर से बीकानेर तक तथा बीकानेर से श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ होकर पंजाब व हरियाणा जाने वाले कम नहीं है। सप्ताह भर से सिलसिला जारी है। मॉडिफाइड लॉकडाउन के बाद तो पैदल जाने वाले मजदूरों की संख्या यकायक बढ़ी है। बुधवार को श्रीगंगानगर के रावला क्षेत्र में बसों के माध्यम से भी बड़ी संख्या में मेहनतकश लोग जाते दिखाए दिए। बसें खचाखच भरी थीं। एक-एक बस में सौ-सौ के करीब आदमी। सोचिए,बस के अंदर का हाल क्या होगा? सोशल डिस्टेंसिंग की पालना किस तरह की होगी? क्या यह जान से सरासर खिलवाड़ नहीं? खैर, हाल ही में सोशल मीडिया पर चचाज़् बड़ी मौजूं थी। इसका मजमून कुछ इस तरह से था, 'सरकार विदेशों में बैठे लोगों को विमान से भारत ला सकती है तो इन मजदूरों से इस तरह का भेदभाव क्यों? क्या यह इंसान नहीं या भारतीय नागरिक नहीं? देखा जाए तो चर्चा वाकई काबिलेगौर है। क्या इन मजदूरों का कोई धणी धौरी नहीं? या फिर सरकारी सुविधाओं.में भी माथा देखकर तिलक निभाने का दस्तूर निभाया जा रहा है। यह एक तरह का भेदभाव ही तो है, जो हालात से हारे मेहनतकश-मजदूरों की मायूसी को बढ़ा रहा है। जिम्मेदारों को न केवल इस पलायन को रोकने के जो प्रबंध कर रखे हैं उनको फिर से जांचना चाहिए। उनमें कमी है तो सुधार करके भोजन आदि की भी समुचित व्यवस्था भी करनी चाहिए। जरूरतमंदों की सेवा करने वाले संगठन हर जगह हैं, उनका सहयोग लेकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। और अगर ऐसा संभव नहीं है तो फिर मेहनतकशों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए कोई मुफीद विकल्प खोजना होगा, क्योंकि इस पलायन के साथ सीधा-सीधा पेट जुड़ा है। जाहिर सी बात है, पेट के लिए ही यह पलायन हो रहा है। हालात से पस्त लोगों के लिए फिलहाल कोरोना से बड़ा संकट पेट का है। मतलब भूख का है। कहा भी गया है कि भूख आदमी से कुछ भी करवा सकती है। वह आदमी से गद्दारी तक करवा सकती है। बगावत करने पर भी मजबूर कर सकती है। भूख को लेकर कवि गोपालदास नीरज की यह पंक्तियां बड़ी प्रासंगिक हैं।
'तन की हवस मन को गुनाहगार बना देती है, बाग के बाग़ को बीमार बना देती है।
भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालो, भूख इन्सान को गद्दार बना देती है।'
बहरहाल, अभी तो खैर इस बात की मनानी चाहिए कि विकट हालात बने नहीं हैं। फिर भी अगर बने तो समस्या बड़ी होगी, विकराल होगा, भयावह होगी। इसलिए समय पर चेत जाना जरूरी है।
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर, बीकानेर आदि संस्करणों में 23 अप्रेल 20 के अंक में प्रकाशित ...

No comments:

Post a Comment